Book Title: Munhata Nainsiri Khyat Part 02
Author(s): Badriprasad Sakariya
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 332
________________ श्री गणेशायनमः अथ अरड़कमलजी चूडावंतरी वात लिख्यते अरड़कमलजीनूं एक दिन नागोर मांहै राव चूंडैजी बोल वाह्यो हुतो । सु अरड़कमलजीरै हीयै खटकतो हुतो। सु अरड़कमलरो हेरो ठांम-ठांम रहतो हुतो जु–'कठे ही रांणंगदे अथवा सादूळ । कुंवर कठे ही आवै, और हूँ मारूं तो धन्य म्हारो जीवियो। मोसूं रावजी वचन कह्यो छ ।' ___एकदा प्रस्ताव । छापर मोहिल राज करै ताहरां मोहिलां नाळेर सादूळ रांणंगदेवोतनूं पूंगळ मेल्हियो।' बांभण नाळेर ले अर पूंगळ गयो। जायनै राव रांणंगदेनूं दियो। कह्यो-'जी, मोहिला . सादूळ कुंवरनूं नाळेर दियो छै। ताहरां रांणंगदे कह्यो-'मांहरै . राठोड़ा सूं वैर; सु परणीजण कोई नो पावै । ताहरां वांभणनूं विदा दीनी । ___ताहरांसादूळ सुणियो-'जु रावजी मोहिलांरो नाळेर घेफे]रियो।' ताहरां सादूळ आदमी म्हेल नै वामण बुलायो । बांभणनूं तेडाय नाळेर .. वांदियो । बांभणनूं घणो खरच दे अर विदा कियो । को रजपूत तेड़ियो । तेडिनै कह्यो-"रावजीनूं कहो, मूंडा दीसस्यो । राठोड़ांसूं ___I नागोरमें एक दिन राव चूंडोजीने अरड़कमलजीको एक ताना मारा था। . ... 2 वह अरड़कमलजीके हृदयमें खटकता था। 3 इसलिये अरड़कमलने स्थान-स्थान पर अपने भेदिये रख छोड़े थे। 4 कहीं भी। 5 और मैं उनको मारदूं तो मेरा जीना धन्य । रावजीने मुझे ताना मारा था। 6 एक समयकी वात। 7 मोहिलोंने रांणग- - . देके पुत्र सादूलसे अपनी कन्याका संबंध करनेके लिये पूगल नारियल भेजा। . 8 ब्राह्मण। तब रांणगदेने कहा-हमारी राठौड़ोंसे शत्रुता है अतः विवाह करनेको नहीं आ सकता। 10 तब ब्राह्मणको रवाना किया। II जब सादूलने सुना कि-'रावनीने मोहिलोंकी ओर से आये हुए नारियल को लौटा दिया। 12 सादूलने तब आदमी भेज कर ब्राह्मणको . वुलवाया । . 13 ब्राह्मणको बुला कर नारियलको सम्मानपूर्वक वंदन कर के ग्रहण किया । . 14 ब्राह्मणको बहुत द्रव्य देकर रवाना किया। 15 किसी राजपूतको वुलवाया। 16 बुला ... कर के कहा कि रावजीको कहदो कि इस प्रकार करनेसे तो अपनी बदनामी होगी। . . . . .

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