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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ २८५ गूढा कियां रहै । हिवै मालोजीरै बेटा हुवा। सो पिण वडा जोरावर ऊठिया, सु वीरमनू रहण न दै। ताहरां वीरमजी जाइ जोईए रह्यो । रावळ घड़सी पण रावळ मालेरै चाकर रह्यो। विमळादे परणाई । जगमाल मालावत, रावळ घड़सी, हेमो सीमाळोत, ईंयां वडो संतोख । रावळ मालैजी सरब धरती लीवी छै । दोय पातसाह भागा । एक दिलीरै पातसाहरी फोज भागी। एक मांडवरै पातसाहरी फोज भागी। मालो सिद्ध हुवो । नव बेटा हुआ । वडा सिरदार हुवा । राव चूंडैनूं पिण मालैजी ठाकुर कियो । माथै हाथ दिया । ___एकदा प्रस्ताव । कुंवर जगमाल बोलाय हेमै सीमाळोतन कह्यो-'वरसात छ, देस सुहामणो लागै छै। रावळजी हुकम करै तो थळ मांहै सिकार रमां' ।' हेमै रावळजी कना हुकम लियो । त्रै ठाकुर सिकार चढिया । दिन १५ तथा २० कह्यो जी रहिस्यां । ताहरां रावळ घड़सी, जगमाल, हेमो सीमाळोत, सिकारनूं चढ
I वीरम और सोभत ये दोनों भाई भी महेवेके पास ही अपना गुढा बना कर रह रहे हैं। 2 तव वीरमजी वहांसे जाकर जोईयोंके यहां रहा। 3 रावल घड़सी भी मालाका चाकर रह गया और उसे विमलादे व्याह दी गई। 4 इनके परस्पर बड़ा स्नेह । 5 माला भक्ति कर के सिद्ध हो गया। 6 राव चूडके सिर पर हाथ रख कर उसे भी ठाकुर बना दिया। ... 'माला' रावल मल्लिनाथका साहित्यिक नाम है। जैसा कि 'तेरह तूंगा भांजिया माल सलखांणी' सलखाके पुत्र मल्लीनाथने बादशाही सेनाके तेरह दलोंका नाश कर दिया । लोक-मान्यता है कि इनकी रानी रूपांदेकी अडिग भक्ति और चमत्कारोंसे प्रभावित होकर रावल मल्लिनाथ भी उस ओर प्रवर्त हो गये। निरंतर भक्तिमें तल्लीन रहने के कारण इन्हें वचन-सिद्धि प्राप्त थी। लूनी नदीके किनारे तिलवाड़ा ग्रामके सामने तिलवाड़ा-फेयर नामक रेल्वे स्टेशनके पास थान गांवमें रावल मल्लिनाथका बड़ा मंदिर बना हुआ है। रूपांदे रानीका मंदिर भी कुछ दूरी पर मालाजाल गांव में बना हुआ है । रावल मल्लिनाथकी स्मतिमें थान और तिलवाड़ाके वीच लूनी नदीके पाटमें प्रत्येक वर्ष चैत्र कृ० ११से चैत्र श० ११ तक एक बड़ा मेला लगता है, जिसमें लाखों रुपयोंके मूल्य के ऊंट, घोड़े, बैल आदि पशुओंका और वस्त्र प्रादि अन्य व्यापारिक वस्तुओंका क्रय-विक्रय होता है। कहा जाता है कि साधु-संन्यासी और भक्तजनोंकी वार्षिक धार्मिक सत्संगका रूपान्तर यह मेला है। 7 रावलजी यदि शाज्ञा करें तो थल प्रदेशमें (जंगल में) जा कर शिकार खेलें। 8 पास, से। 9 कहा कि १५ तथा २० दिन वहां रहेगे ।