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मुंहता नैणसीरी ख्यात
[ २.६७ हेमो अजूस जीवै छै । इतरै साथ महेवैरो आयो । कह्यो-'जी साथ आयो ।' हेमो बोलियो-'रे कुणं छै ?' कह्यो-'जगमाल छ ।' ताहरां हेमै कहाड़ियो-'राज ! किसै वासते ?' कह्यो-'जगमाल ! तोमें दोय चूक छै । म्हारो जीव नीसरे ताहरां आए।' ताहरां कह्यो-'जी, किसो चूक मोमें। ताहरां कह्यो-'एक तो तैं मो सारीखो रजपूत घोडैरै वासतै काढियो, सु सात ७ वरस तांई” महेवैरी धरती वसण न दीधी। नहीं तो सातवीस गांव महेवै वांस हुता । अर वळे घणी धरती वांस घालत । राज वधण न दीधो । बीजो, तें कुंभैरी मानै दोहाग दीधो । जे तें कूभैरी मानें रात दीनी हुवंत. तो इसड़ा रतन २।४ पैदा हुवंत, तो घर भलो दीसंत | तोमें मोटा दोय अवगुण हुआ । जे प्रांपा मेळ हुवंत तो कितरी धरती लेवंत'1 ।' इतरै हेमैरो ही हंस उडियो । जगमालजी उतरिया। साथ सोह उतरियो । दाग दियो ।
एकठा हुयनै महेवै पाया14 । हेमैरै बेटैनू तेड़नै वास वसायो। - . . कुंभै सोढी परणी हुती सु सेजवाळो आयो। सोढी महेवै आयनै
सती" हुई । जगमाल महेवै सुखसू राज करै छ ।
हेमो होठ डसेह", खड़ग जु अाछंटयां' खत्री । yहारा भांजेह, कुंभ कांणेढ़ गई ॥ १
J हेमा तो अभी तक जीवित हैं। 2 अरे ! कौन है ? 3 आप किसलिये आये हैं ? 4 जगमाल ! तेरे दो अपराध हैं। तू मेरा जी निकल जाय तव आना। 5 मेरेमें कौनसा अपराध है ? 6 एक तो तूने मेरे जैसे राजपूत को एक मात्र घोड़की बातके लिये निकाल दिया । 7 तक। 8 और और भी बहुतेरी भूमि महेवेके अधिकारमें डालता। तुम्हारा
राज्य बढने नहीं दिया। 9 दूसरी वात, तूने कुंभेकी माताको अमान्य कर दिया। 10 जो तूने कुंभेकी माताको सम्मान्य करके ऋतुदान दिया होता तो ऐसे २१४ रत्न और पैदा हुए होते और जिससे तुम्हारा घर शोभा पाता। II जो अपने आपसमें मेल होता तो कितनी ही धरती और अधिकारमें कर लेते । 12 इतनेमें हेमेके प्राण-पंखेरू उड़ गये। · [3 अग्नि-संस्कार किया। 14 सभी इकट्ठे होकर महेवे आये। 15 हेमाके वेटेको बुला करः अपने यहां रखा। 16 सोढी, महेवे प्राकर सती :- हुई । 17 होंठ डसते हुए । 18 प्रहार किया। 19 भौंहें। 20 कनपटी ।...