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मुंहता नैणसीरी ख्यात
श्रीगणेशायनमः
अथ रावजी श्री सीहैजीरी बात लिख्यते
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राजा सिंघसेन' कनवज' सूं जात्रा करण द्वारकाजीने पथारिया | श्राप गोत्र-कदंब' वहुत कियो हुतो, ते मन विरक्त हुवो। राज बेटानूं सूंप श्रर ग्राप कापड़ीरं रूप हुवा " । साथै श्रादमी १०१ हुवा आप जात्रा चालिया । रजपूत ठाकुर साथै हुवा | पगँ प्यादी हालियो सरब साथ' । कोस-कोस ऊपर सौ-सौ गाय दान देवे है । जठ डेरो हुबै तठे वावड़ी' अथवा कुवो करावे । ईयै जिनस ग्राप तीरथ पधारिया |
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आगे सोळंकी' गुजरात मांहै. राज करें । चावड़ा' पण गुजरात मांहै राज करै । पाट - तखत वैसणी पाटण* । मोह लाखो जांम सिध राज करै'" । सु चावड़ा ने लाख बैर । एक धरतीरो वैध
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| आपमें
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सीम ऊपर युद्ध हुतो रहै । वीजो" राखाइतरो' बाप लाख
1 राव सीहाका पर नाम । 2 उत्तर-प्रदेश के फर्रुखाबाद जिलेका कन्नोज नगर । 3 गोत्र हत्या, वंश-संहार । 4 जिससे 5 पुत्रको राज्य सौंप कर खुदने साधुका रूप धारण कर लिया । 6 सभी साथ पैदल चला । 7 बावली, वापिका । 8 इस प्रकार | 9 सोलंकी एक क्षत्रीवंश, जिसका राज्य काठियावाड़ (सौराष्ट्र), गुजरात और राजस्थानमें था । 10 'चावड़ा' या 'चावोड़ा' = एक क्षत्रीवंश, जिसका राज्य दक्षिण, गुजरात, सौराष्ट्र और राजस्थानमें था । शिलालेख र संस्कृत ग्रन्थोंमें 'चालुक्य', 'चापोत्कट' और 'चावोटक' नाम भी लिखे मिलते हैं । सांभर में ( राजस्थानमें) 'मूलराज चालुक्य' का एक शिला लेख प्राप्त हुआ है, जो सम्वत् ६६८का है । इस शिलालेखसे (जिसमें 'वसुनंद निघौ' = ६६८, सम्वत् उल्लिखित है) वाम्वे-गेजेटियर में उल्लिखित मूलराजका समय सन् १६१ = (वि० सम्वत् १०१७ ) ठीक नहीं प्रतीत होता । II पट्ट-सिंहासन (राजधानी) श्ररण हिलपुर - पाटण में । 'अणहिलपुरपट्टन' उत्तर-गुजरातका सरस्वती नदीके किनारे पर बसा हुआ इतिहास प्रसिद्ध प्राचीन नगर है । इसे वनराज चावड़ाने हवीं शतीमें बसाया था । आजकल केवल 'पाटण' नामसे ही यह नगर प्रसिद्ध है | पश्चिम रेलवे के महसाना- जक्शन से रेलकी एक शाखा पाटनको जाती है । 12 मारू लाखा-जाम सिंघमें राज्य करता है । (सिंध के कुछ भागके प्रतिरिक्त लाखाका कच्छ में भी राज्य था। सिंध और कच्छ के मरु प्रदेशों पर अधिकार होनेसे लाखाको मारू लाखा कहा गया है ।) J3 ( १ ) शत्रुता, (२) टंटा, झगड़ा 1-14 सीमा । 15 नाम है । 16 राखायत लाखाका भानजा था ।