________________
[ २४६
मुंहता नैणसीरी ख्यात तिण वातरी साखरो गीत वारहट ईसर कहै'
. गीत पंख किसू भखै, की अगन प्रकास, लाऔ किसूं संकर गळ लेन। वप जसराय तणो घाय वहंतां, लोह धार रहियो लागेन । १ अमिख अमिखचर मंगन आई, उतवंग ईस न उपगरियो । सांमा तणो सरीर सरब ही, आवध धारां ऊतरियो ।। २ विहंगां हुवो न चीनो विसनर, भव ही तणे न पायो भाग। अंग जसराज तणौ आफळतां, लिख-लिख गयो अंगारां लाग ।। ३'
वात
जसानूं रायसिंघ मारियो, जिण ऊपर जाड़ेचा ठाकुर सको भेळा होयनै नवानगर जांमजी तीरै गया । प्राय कह्यो-'राज
I इस युद्ध-वार्ताकी साक्षीका गीत बारहठ ईश्वरदास इस प्रकार कहते हैं। 2 गिद्ध आदि पक्षी क्या भक्षण करें और अग्नि क्या जलाये ? शंकर अपनी रुंडमालाके लिये किसका सिर प्राप्त करें ? शरीरका कोई भी अंग किसीके हाथ नहीं लगा। जसराजके शरीर पर इतने अधिक शस्त्रों के प्रहार लगे हैं कि उसके शरीर का प्रत्येक अवयव छोटे-छोटे टकड़े हो कर शस्त्रोंसे ही लगा रह गया ॥ १ ..गिद्धिनी और चील आदि मांसभक्षी पक्षी मांस भक्षणके लिये आये। शिव अपनी रुंडमालाके लिये सिर लेनेको आये । परंतु किसीको कुछ भी हाथ नहीं लगा। सामा जसराजका समस्त शरीर शस्त्रोंकी धाराओंसे ही लगा रह गया ॥ २
पक्षियोंको उसके शरीरका कुछ भी भाग प्राप्त नहीं होने से निराशा हुई । वैश्वानर उसके शरीर को देख ही नहीं पाये और भगवान् शंकरको अपना भाग-वीरका मस्तक भी
प्राप्त नहीं हो सका । जसराजके अंगके युद्धमें शस्त्रोंके प्रहारोंसे हुए छोटे-छोटे टुकड़े जो शस्त्रों .. ही में लगे रहे, उन्हें छुड़ा कर, मात्र उनका ही दाह-संस्कार किया गया ।। ३
3 जिस पर, जिस बातके लिये। 4 सभी। 5 पास गये।