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लेख जैन दर्शन के सिद्धान्तों का मार्मिक विवेचन प्रस्तुत नतमस्तक हैं, जिनके आलेखों एवं शुभाशीर्वादों से करते हैं।
स्मारिका गौरवान्वित हुई है। विद्वान लेखक मनीषियों ततीय खण्ड: भक्ति और साहित्य-साधना के प्रति कृतज्ञ हैं, जिनसे स्मारिका संदर्भ ग्रन्थ बनता में आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज और आचार्य श्री
यी है। उपराष्ट्रपति श्री भैरोसिंहजी शेखावत, राजस्थान विद्यासागरजी महाराज के क्रमश: भक्ति में मक्ति का विश्वविद्यालय के कुलपति श्री एन. के. जैन एवं अंकुर और आचार्य साधुस्तुति तथा पं. चैनसुखदासजी।
तथापं. चैनसखदासजी मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री एन. न्यायतीर्थ का भक्ति का फल और डॉ. भंवरदेवी पाटनी के. जैन के प्रति शुभकामना सन्देश हेतु अनुगृहीत हैं। का जिनेन्द्र भक्ति लेख परक महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। जो राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष श्री महेन्द्र मुक्ति मार्ग को प्रशस्त करती हैं। इस अंक में कुमारजी पाटनी, मंत्री श्री कमलबाबूजी जैन, प्रबन्ध डॉ. कासलीवालजी के जैन संतों की साहित्य साधना संपादक श्री जयकुमारजी गोधा एवं कार्यकारिणी के के अतिरिक्त सल्लेखना से संबंधित तीन आलेख सामयिक सभी सदस्य साधुवाद के पात्र हैं, जो प्रतिवर्ष स्मारिका शंकाओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं।
प्रकाशन में सक्रिय रहते हैं। स्मारिका सम्पादन में पं. चतर्थ खण्ड : संस्कति और इतिहास में श्री ज्ञानचन्दजी बिल्टीवाला के निरन्तर मार्गदर्शन एवं आचार्य श्री कनकनन्दीजी का प्राचीन भारत के गणतंत्र. श्री डॉ. जिनेश्वरदासजी जैन एवं श्री महेशचन्दजी श्री रामधारी सिंह दिनकर का जैन संस्कृति वेद पर्व है. चांदवाड़ा के सहयोग के लिए आभारी हूँ। स्मारिका डॉ. राजेन्द्र बंसल का वैशाली में महावीर दर्शन, के समय पर शुद्ध एवं सुन्दर मुद्रण हेतु श्री रमेशचन्दजी श्री महेन्द्र कुमारजी पाटनी का ऐतिहासिक अतिशय जैन शास्त्री, जैन कम्प्यूटर्स को भूरिश: धन्यवाद है। क्षेत्र घोघा, पं. भंवरलालजी न्यायतीर्थ का जैन दीवान, महावीर जयन्ती स्मारिका का यह 44वाँ अंक डॉ. शैलेन्द्र रस्तोगी का जिन छत्र आदि लेख जैन भगवान महावीर के सर्वोदयी सिद्धान्तों को समाहित संस्कृति की प्राचीनता एवं प्रभाव से परिचय कराते हैं। करता हुआ सभी जन-मन के लिए मंगलकारी होवे।
स्मारिका में आचार्य श्री सन्मतिसागरजी सभी को सौख्यकारी होवे। सभी आत्मोत्थान में जयेन्द्र महाराज, आचार्य श्री विद्यानन्दजी मनिराज. आचार्य व जयवन्त हो। इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ वीर श्री विद्यासागरजी महाराज, आचार्य श्री कनकनन्दीजी प्रभुः पातुनः। महाराज, आचार्य श्री निर्भयसागरजी महाराज एवं मुनि
- डॉ. प्रेमचन्द रांवका श्री पावनसागरजी और विनम्रसागरजी के चरणों में
22, श्रीजी नगर, दुर्गापुरा, जयपुर
दूरभाष : 0141-2545570
महावीर जयन्ती स्मारिका-2007
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