________________
गत पाँच वर्षों से पं. श्री ज्ञानचन्दजी बिल्टीवाला सा. के निर्देश एवं प्रेरणा तथा राजस्थान जैन सभा के अध्यक्ष प्रसिद्ध समाज सेवी एवं इतिहास लेखक आदरणीय श्री महेन्द्र कुमारजी पाटनी सा. एवं मंत्री श्री कमलबाबू जी जैन के अनुरोध पर मैं स्मारिका के सम्पादन कर्म में प्रविष्ट होकर प्रवृत्त हूँ । इस गुरुतर दायित्व के निर्वहन में गुरुतुल्य प्रधान सम्पादकों का ही प्रेरणारूप सम्बल है ।
'महावीर जयन्ती स्मारिका' के प्रकाशन का उद्देश्य जैनाजैन जनता में भगवान महावीर के जीवन, दर्शन और उनके सर्वोपयोगी उपदेशों का प्रसार कर जैन साहित्य, इतिहास, संस्कृति, पुरातत्त्व आदि विषयों पर शोधपूर्ण सामग्री प्रस्तुत करना रहा है। साहित्य शब्द से तात्पर्य ऐसी रचनाओं से है जो पाठकों में सद्भाव जागृत करें, जिसमें मानव-मात्र का हित - चिन्तन निहित हो । सत्यं शिवं सुन्दरम् से समन्वित उदात्त भावों का संचरण हो । इसी दृष्टि से स्मारिका में रचनाओं का चयन कर प्रकाशन किया गया है।
तीर्थंकर महावीर के शाश्वत हितकारी उपदेशों / संदेशों को जन-जन तक पहुँचाने की दृष्टि से स्मारिका में पूज्य आचार्यों, मुनिराजों, सन्तों, विद्वान् मनीषियों एवं सामाजिक चिन्तकों के सर्वोपयोगी आलेखों का चयन कर प्रकाशित किया गया है । इस अंक में नवीन लेखों के साथ ऐसे दुर्लभ एवं बहुमूल्य लेखों को भी प्रकाशित किया गया है जो आज से 40-45 वर्ष पूर्व जैन विद्या के प्राच्य-वरिष्ठ विद्वानों द्वारा लिखे गये थे, जिनकी आज भी प्रासंगिकता एवं समाजोपयोगी आवश्यकता है। जिनका अभिज्ञान कराना आज भी अपेक्षित और हितावह है। आचार्य श्री विद्यानन्दजी मुनिराज और आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की प्रेरणा से प्राकृत विद्या एवं जिन भाषित में भी ऐसे ही प्राच्य एवं बहुमूल्य लेखों को जन हिताय प्रकाशित किया जा रहा है। निश्चित ही ये रचनाएँ मानवीय समाज को विविध क्षेत्रों में दिशाबोध प्रदान करती हैं।
Jain Education International
इनमें उल्लेखनीय हैं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् का तीर्थंकर महावीर, क्षुल्लक श्री जिनेन्द्र वर्णी कृत अध्यात्म और अहिंसा, पं. कैलाशचन्दजी शास्त्री द्वारा रचित अध्यात्म और सिद्धान्त, पं. चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ का भक्ति का फल, डॉ. कस्तूरचन्दजी कासलीवाल का राजस्थानी जैन सन्तों की साहित्य साधना, राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर रचित जैन संस्कृति वेदपूर्व है, पं. श्री भंवरलालजी न्यायतीर्थ रचित जयपुर के जैन दीवान और डॉ. ज्योतिप्रसादजी जैन का दिगत्वरत्व का महत्व ।
चार खण्डों में विभक्त स्मारिका के प्रथम खण्ड भगवान महावीर : जीवन एवं दर्शन में सर्वप्रथम आचार्य भगवन्त श्री कुन्दकुन्द द्वारा प्राकृत में रचित चौबीस तीर्थंकरों की भक्तिपरक गाथाएँ और संस्कृत में रचित मंगलाष्टक का हिन्दी गद्यानुवाद मंगलाचरण स्वरूप है। जैन विद्या के प्रसिद्ध वरिष्ठ विद्वान डॉ. महेन्द्रसागरजी प्रचण्डिया की दो गद्य गद्य रचनाएँ मर्मस्पर्शी और सारगर्भित हैं। इस खण्ड के अन्य आलेखों में पूर्वराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन का तीर्थंकर महावीर, श्री नीरजजी जैन का महावीर का श्रावक, श्री चंचलमल चौरडिया का महावीर का वीतराग दर्शन, डॉ. नरेन्द्र भानावत का वर्तमान में भगवान महावीर के चिन्तन की सार्थकता, डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल का महावीर का घटना प्रधान जीवन नहीं, डॉ. दयानन्द भार्गव का भगवान महावीर की साधना आदि भगवान महावीर के जीवन एवं दर्शन को विशेष उद्घाटित करते हैं।
द्वितीय खण्ड : अध्यात्म और सिद्धान्त में आचार्य श्री सन्मतिसागरजी का मोक्ष पदार्थ मुक्ति मार्ग में पाथेय है। क्षुल्लक श्री जिनेन्द्रजी वर्णी का अध्यात्म
अहिंसा और पं. कैलाशचन्दजी शास्त्री का अध्यात्म और सिद्धान्त, आर्यिका शीतलमति का द्रव्य गुण, पण्डित श्री शिवचरणलालजी का निश्चय - व्यवहार, श्री बिल्टीवालाजी का अन्तरात्मा की अन्तर्मुखता आदि महावीर जयन्ती स्मारिका - 2007
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org