Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 304
________________ है, ऐसा किसी भी मनुष्य का अनुभव नहीं। छवि का दर्शन करने से तो स्वयं दर्शक के कारण यही है कि नग्नता प्राकृतिक स्थिति के साथ मनोविकार शान्त हो जाते हैं। अब चाहे वह छवि स्वभाव-शुदा है। मनुष्य ने विकृत ध्यान करके अपने किसी सच्चे साधु की हो अथवा जिनप्रतिमा की विकारों को इतना अधिक बढ़ाया है और उन्हें उल्टे हो। आचार्य सोमदेव कहते हैं कि समस्त प्राणियों रास्तों की ओर प्रवृत्त किया है कि स्वभाव सुन्दर नग्नता के कल्याण में लीन ज्ञान-ध्यान तपः पूत मुनिजन सहन नहीं होती। दोष नग्नता का नहीं, अपने कृत्रिम यदि अमंगल हों, तो लोक में फिर और क्या ऐसा जीवन का है।' है जो अमंगल नहीं होगा। वस्तुत: निर्विकार दिगम्बर सहज वीतराग - शोधादर्श ५९ (जुलाई २००६ ई.) से साभार महावीर गीत जिनके गुण को गाकर प्राणी दूर करें सब दुःख। ऐसे महावीर प्रभु को पाकर, हावें हम सब सुख ॥टेक॥ माँ त्रिशला ने जन्म दिया था सिद्धारथ ने पाला था, तीन लोक का राज दुलारा करता रोज उजाला था। हिंसा छोड़ अहिंसा में रत दूर किये सब दुःख, जिनके गुण को गाकर ॥१॥ तीस वर्ष तक राजपाठ कर दिव्य चक्षु से जान लिया, नश्वर काया जग ये सारा निज में खुद का भान किया। परम दिगम्बर मुद्रा धरिके, बदला अपना रुख, जिनके गुण को गाकर ॥२॥ जंगल में रह घोर तपस्या करके पाप मिटाये हैं, केवलज्ञान ज्योति को पाकर घर-घर दीप जलाये हैं। वाणी जिनकी वीतरागमय देती सबको सुख, जिनके गुण को गाकर ॥३॥ आप जिओ सबको जीने दो यह उपदेश सुनाया है, परम अहिंसा धर्म है सच्चा करके यही दिखाया है। उन जैसा यदि बनना है तो जग से मोड़ो मुख, जिनके गुण को गाकर ॥४॥ - कवि हृदय प्रखर वक्ता परम पूज्य श्री विनम्र सागरजी महाराज संघस्थसंत शिरोमणि वात्सल्यमूर्ति राष्ट्रसंत परमपूज्य आचार्य श्री विरागसागरजी महाराज महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/48 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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