Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 310
________________ यह पावन पवित्र भूमि सैंकड़ों वर्षों से अपने उन्होंने इस क्षेत्र का नाम श्री दिगम्बर जैन भूगर्भ में पवित्र तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा भव्योदय अतिशय क्षेत्र रैवासा रखा तथा शेखावटी के को सुरक्षित किए हुए थी। भव्यजनों को सम्बोधित किया कि भूगर्भ से प्राप्त इस अलौकिक अतिशयकारी असाधारण सुमतिनाथ भगवान की प्रतिमा का इतना अतिशय है जिनप्रतिमा ने भी फाल्गुन शुक्ला दूज वीर निर्वाण संवत् कि यह क्षेत्र श्री महावीरजी, तिजारा, पदमपुरा के २४७४ की रात्रि को ब्रह्ममुहर्त में सुदर्शन नामक एक समान अतिशयकारी क्षेत्र बनकर भव्य जीवों की आधिसाधारण व्यक्ति को दर्शन दिये तथा स्वप्न में ही यक्ष व्याधि, ताप-संताप को दूरकर अतिशय पुण्यार्जन प्रान ने इस व्यक्ति के लिए उस स्थान पर दिग्दर्शन किया जिस करने में निमित्त बन सकता है। भूगर्भ में यह प्रतिमा विराजमान थी। क्षेत्र पर दिनांक २८/१०/९८ से ५/११/९८ प्रात:काल उठकर उस व्यक्ति ने समाज के तक अष्टाह्निका पर्व में वृहद्स्तर पर श्री १००८ सिद्धचक्र श्रेष्ठियों को स्वप्न के अलौकिक दृश्य का बखान किया महामण्डल विधान के शुभ अवसर पर भूगर्भ से प्राप्त तदनुसार उस भूमि का पूजन आदि करके खुदाई शुरु सुमतिनाथ भगवान की स्वर्ण जयन्ती महोत्सव विशाल की गई। पाँच-सात फीट खोदने के बाद फाल्गुन शुक्ला स्तर पर मुनि श्री के सानिध्य में मनाया गया। इस तीज वीर निर्माण संवत् २४७४ की दोपहर के समय अवसर पर अतिशयकारी चमत्कारी प्रतिमा का प्रथम में पाँचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ भगवान की मनोहारी बार १००८ कलशों से महा-मस्तकाभिषेक कर नवीन प्रतिमा का दर्शन हआ। चारों तरफ लोगों में हर्ष की वेदी पर विराजमान की गई तथा इसी अवसर पर लहर फैल गई। हजारों व्यक्ति दर्शन को आने लगे। महाकवि आचार्य ज्ञानसागरजी का स्टेच्यु भी विराजमान लेकिन राजकीय सत्ता की प्रतिकूलता के कारण उसका किया गया। सुमतिनाथ भगवान की चरण स्थली अधिक प्रचार-प्रसार न करके उसे मंदिर की परिक्रमा स्थापित की गई। में स्थित तलघर में विराजमान कर दी गई। पंचकल्याणक व गजरथ महोत्सव १५ अगस्त १९४७ को जैसे ही आजादी का मुनि पुंगव १०८ श्री सुधासागरजी महाराज के शंखनाद हुआ वैसे ही लोगों ने अपने आराध्य को सानिध्य में दिनांक २४ फरवरी से १ मार्च ०१ में यहाँ तलघर से निकाल कर मन्दिर की वेदी पर विराजमान जिनबिम्ब पंचकल्याणक महोत्सव सम्पन्न हुआ, जिसमें कर स्वतंत्रतापूर्वक पूजन करने लगे। ___ सवा सात फुट की पद्मासन सहस्रफणी पार्श्वनाथ, हमारे सातिशय पुण्य से सन्त शिरोमणि आचार्य शांतिनाथ व चौबीसी की स्थापना हुई। विद्यासागर महाराज के परम शिष्य श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर एवं ज्ञानोदय तीर्थ नारेली के प्रेरक आध्यात्मिक सन्त परम पूज्य मुनि श्री सुधासागरजी - १५२ नेमीसागर कालोनी, महाराज, क्षुल्लक द्वय श्री गम्भीरमलजी एवं श्री जैन मंदिर के पास, वैशाली नगर, जयपुर धैर्यसागरजी महाराज के पावन चरण इस क्षेत्र पर पड़े। दिनांक १ जून से ३० जून तक संघ क्षेत्र पर विराजमान रहा। महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/54 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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