Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 215
________________ वर्णन है। इसके पश्चात् विजयसेनसूरि का रेवंतगिरिरास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। ब्रह्म बूचराज १६वीं (सं. १२८८), सुमतिगणि का नेमिनाथ रास (सं. शताब्दी के प्रसिद्ध कवि थे। मयण-जुज्झ इनकी प्रथम १२७०), विनयप्रभ का गौतमरास (सं. १४१२) आदि रचना थी, जो इन्होंने संवत् १५८४ में समाप्त की थी। कितने ही रास लिखे गये। इनके अन्य ग्रन्थ में संतोष तिलक जयमाल, चेतन१५वीं शताब्दी से तो हिन्दी एवं राजस्थानी पुद्गल धमाल आदि उल्लेखनीय रचनाएँ हैं । ये दोनों साहित्य में रचनाओं की एक बाढ-सी आ गयी। भट्रारक ही रूपक रचनाएँ है, जो नाटक साहित्य के अन्तर्गत सकलकीर्ति ने संस्कृत में रचनाएँ निबद्ध करने के साथ- आती हैं । सन्त विद्याभूषण रामसेन परम्परा के यति थे। साथ कुछ रचनाएँ राजस्थानी भाषा में भी लिखीं, इन्होंने सोजत नगर में भविष्यदत्त रास को संवत् १६०० जिससे उस समय की साहित्यिक रुचि का पता लगता में समाप्त किया था। धर्मसमुद्र गणि खरतरगच्छीय है। सकलकीर्ति की राजस्थानी रचनाओं में आराधना- विवेकसिंह के शिष्य थे, जिन्होंने “सुमित्रकुमार रास” प्रतिबोधसार, मुक्तावलिगीत, णमोकारगीत, सार को जालौर में संवत १५६७ में तथा “प्रभाकर गुणाकर सिखामणि रास आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। सकलकीर्ति चौपई” को संवत् १५७३ में मेवाड़ प्रदेश में समाप्त के एक शिष्य ब्रह्म जिनदास ने ६० से भी अधिक किया है। शकुंतला रास इनकी बहुत छोटी रचना है, रचनाएँ लिखकर हिन्दी साहित्य में एक नया उदाहरण जो संभवतः इस तरह की प्रथम रचना है। पार्श्वचन्द्रसूरि प्रस्तुत किया। इन रचनाओं में कितनी ही रचनाएँ तो अपने समय के प्रभावशाली सन्त कवि थे। इन्होंने ५० तुलसीदास की रामायण से भी अधिक बडी हैं। इनकी से अधिक रचनाएँ राजस्थानी भाषा को समर्पित करके राम-सीता के जीवन पर भी एक से अधिक रचनाएँ हैं। साहित्यसेवा का सुन्दर उदाहरण उपस्थित किया। इनका ब्रह्म जिनदास की अब तक ३३ रासा ग्रन्थ, २ पुराण, जन्म संवत् १५३८ में तथा स्वर्गवास संवत् १६१२ में ७ गीत एवं स्तवन, ६ पूजाएँ और ७ स्फुट रचनाएँ हुआ था। राजस्थान के अन्य सन्त कवियों में विनय उपलब्ध हो चुकी हैं। इन रचनाओं में रामसीतारास, समुद्र, कुशल लाभ, हरिकलश, कनकसोम, हेमरत्नसूरि श्रीपाल रास, यशोधर रास, भविष्यदत्त रास, परमहंस आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । कुशल लाभ खरतरगच्छ रास, हरिवंश पुराण, आदिनाथ पुराण आदि के नाम के सन्त थे। इनके द्वारा लिखी हुई “माधवानल चौपई" उल्लेखनीय हैं। भट्टारक सकलकीर्ति की शिष्य परम्परा (संवत् १६१६) एवं “ढोला-मारवणरी चौपई" में होने वाले सभी भट्टारकों ने हिन्दी भाषा में रचनाएँ राजस्थानी भाषा की अत्यधिक प्रसिद्ध रचनाएँ हैं, लिखने में पर्याप्त रुचि ली। जो लोक-कथानकों पर आधारित हैं। इसी तरह ___ खरतर गच्छ के आचार्य जिनराजसूरि के शिष्य हरिकलश भी इसी खरतरगच्छ के साधु थे जो अपने महोपाध्याय जयसागर १५-१६ वीं शताब्दी के विद्वान समय के प्रसिद्ध विद्वानों में से थे। इनका अधिकतर थे। इन्होंने राजस्थानी भाषा में ३२ से भी अधिक विहार जोधपुर एवं बीकानेर प्रदेश में हुआ और अपने रचनाएँ लिखीं। जिनमें विनती, स्तवन एवं स्तोत्र आदि जीवन में २७-२८ रचनाएँ लिखीं। सभी रचनाएँ हैं। ऋषिवर्धनसूरि की नल-दमयन्ती रास (सं. १५१२) राजस्थानी भाषा की हैं। प्रमुख रचना है। मतिसागर १६वीं शताब्दी के विद्वान १७ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रह्म रायमल्ल एक थे। राजस्थानी भाषा में इनकी कितनी ही रचनाएँ अच्छे संत हुये, जिनकी हनुमत चौपई, भविष्यदत्तकथा, उपलब्ध हैं, जिनमें धन्नारास (सं. १५१४) नेमिनाथ प्रद्युम्नरास, सुदर्शनरास आदि अत्यधिक प्रसिद्ध एवं वसंत, मयणरेहा रास, इलापुत्र चरित्र, नेमिनाथ गीत लोकप्रिय रचनाएँ हैं। इन्होंने स्थान-स्थान पर घूमकर महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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