________________
१८९
२९. भागचन्द पुत्र सीताराम - सं. १८४२ से १८४६। ४२. अमोलक चन्द खिन्दूका पुत्र नोनदराम – सं. ३०. श्योलाल खिन्दूका पुत्र रतनचन्द - सं. १८३४ १८८२ से १८८६। से १८६७।
४३. संघी झुथाराम पुत्र मोतीराम – सं. १८८१ से ३१. भगतराम बगड़ा पुत्र सुखराम – सं. १८४२ से १८९१। १८८५।
४४. संघी हुकमचन्द पुत्र मोतीराम – सं. १८८१ से ३२. भवानीराम पांड्या पुत्र फतेहराम – सं. १८४३ से १८५५।
४५. बिरदीचन्द पुत्र हुकमचन्द संघी – सं. १८८६ ३३. सदासुख छाबड़ा पुत्र जयचन्द – सं. १८५७ से से १८९९ । १८६४।
४६. संपतराय खिन्दूका पौत्र आरतराम -सं. १८९१ ३४. राव जाखीराम पुत्र भवानीराम -
से १८९६। ३५. अमरचन्द पाटनी - सं. १८६० से १८९२। ४७. मानकचन्द ओसवाल - सं. १९०६ से १९१२। ३६. श्योजीलाल छाबड़ा पुत्र चैनराम – सं. १८६५ ४८. संघी नन्दलाल गोधा पुत्र अनूपचन्द-सं. १८१३ से १८७५।
ये १८२८ ३७. मन्नालाल छाबड़ा पुत्र रामचन्द – सं. १८६६ ४९. किशोरदास महाजन - सं. १७४९ से १७७९ । से १८६९।
५०. गंगाराम महाजन पुत्र कालूराम – सं. १८४० से ३८. कृपाराम छाबड़ा पुत्र जयचन्द – सं. १८६९ से १८४५। १८७५।
५१. कृपाराम छाबड़ा रामचन्द के भतीजे-सं. १८६९ ३९. लखमीचन्द छाबड़ा पुत्र जीवनराम - सं. १८७४ से १८७५ । से १८८१।
५२. रायचन्द - ४०. लखमीचन्द गोधा पुत्र भगतराम - सं. १८७४ ५३. प्यारेलाल कासलीवाल – सं. १९७६ से से १८८१।
१९७९। ४१. नोनदराम खिन्दूका पुत्र आरतराम - सं. १८७४ ५४. नथमल गोलेछा – माधोसिंहजी के समय में से १८८१।
दीवान थे। 0 वीर प्रेस, मनिहारों का रास्ता, जयपुर
दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगत स्पृहः । वीतराग भयक्रोधः स्थिति धीर्मुनिरुच्यते॥
- दुःखों की प्राप्ति होने पर, जिसके मन में उद्वेग नहीं होता, सुखों की प्राप्ति में जो सर्वथा निस्पृह है तथा जिसके राग, भय और क्रोध नष्ट हो गये है - ऐसा स्थिर बुद्धि मुनि कहा जाता है।
- गीता २/५६
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/34
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.