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के विभिन्न अंगों की मांग बढ़ गई है और यही कारण पानी पिलाने वाला भी कोई नहीं है। लेकिन “अब है कि भारत में सरिस्का, रणथम्भौर व काजीरंगा के पछताये का होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।" अभ्यारण्यों में शेर और गैंड़े लुप्त प्रायः हो रहे हैं। अब हमें भविष्य के सुधार के लिए सोच समझकर
हमारे देश के किसानों, कुटीर उद्योगों में मेहनत चलना चाहिए। मजदूरी करने वालों पर कुठाराघात होने से आये दिन जनसंख्या वृद्धि भी इस वातावरण के लिए सैकड़ों लोग बेरोजगारी, मंहगाई के कारण आत्म हत्याएं काफी जिम्मेवार है। इसकी चिन्ता प्रायः शिक्षित व कर रहे हैं। हमारे देश में अंग्रेजी पढ़े नौजवान देश समझदार व्यक्तियों को ही रहती है। अत: वे तो अपनी छोड़कर बाहर जाने में ही अपना भला समझते हैं। संख्या को सीमित रखना चाहते हैं, पर अशिक्षित एवं शिक्षा ही उन्हें ऐसी दी जाती है कि जिससे देश, धर्म जाति परस्त लोग हर प्रकार से अपनी संख्या बढ़ाकर व परिवार के प्रति जिम्मेदारी व आस्था समाप्त हो रही डैमोक्रेसी लोकतंत्र का नाजायज फायदा उठा रहे हैं। है। आज शास्त्रीय संगीत गाने, बजाने व सुनने वालों आज पैसे वाले और अधिक धनी तथा निर्धन और की संख्या प्राय: नगण्य सी रह गई है और विदेशी भौंड़े अधिक निर्धन बनते जा रहे हैं। गाँवों को छोड़ शहरों पॉप संगीत पर अर्द्धनग्न युवक-युवतियाँ थिरकते दिखाई में भागने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। अतः दोनों देते हैं। कंडोम संस्कृति का प्रचार हो रहा है, इससे जगह बेरोजगारी व निठल्लापन बढ़ रहा है, आतंकवाद एड्स की रोकथाम के बहाने अप्राकृतिक यौनाचार को बढ़ने का यह भी एक कारण है, जिससे बड़े-बड़े राष्ट्र प्रोत्साहन मिल रहा है।
प्रभावित हो रहे हैं। पर समस्याएँ हिंसा व युद्ध से नहीं इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी माता-पिता व सुलझ सकती। अहिंसा को सही मायने में समझने की गुरुओं की है। वे चाहें तो अपनी संतानों व शिष्यों को जरूरत है। सही मार्गदर्शन कर सकते हैं। ऐसे कई संपन्न वृद्ध दंपत्ति 0 ७२९, किसान मार्ग, बरकत नगर, जयपुर हैं, जिनकी संतानें विदेशों में जा बसी हैं और यहाँ उन्हें
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सुभाषित वचन १. कषाय अज्ञान से प्रारम्भ होती है और ज्ञान पर समाप्त होती है। २. कण भर भी यदि धर्म जीवन में आ जावे, तो मण भर ग्रंथों से अधिक है। ३. धर्मात्मा का जीवन गुलाब के फूल की तरह है, जो काँटों में पल कर भी सौंदर्य और सुगंधि लुटाता
रहता है। ४. मृत्यु एक अनिवार्य तथ्य है उसे किसी भी प्रकार टाला नहीं जा सकता। उसे सहज भाव से स्वीकार ____ कर लेने में ही शांति है। सत्य को स्वीकार करना ही सन्मार्ग है। ५. लाखों रुपयों का व्यय करने पर हम श्री वीर प्रभु का उतना प्रभाव दिखाने में समर्थ नहीं हो सकते
जितना कि उसके द्वारा प्रतिपादित अहिंसा का पालन करने से दिखा सकते हैं। ६. शान्ति चाहिए तो पर-दोषान्वेषण और आलोचना की आदत छोड़ दो।
- रामबाबू जैन लुहाड़िया, ३ श्रीजी नगर, दुर्गापुरा ,जयपुर
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/45
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