Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 300
________________ बदलती जीवन शैली - अहिंसा एकमात्र विकल्प 0 हेमन्त कुमार जैन अनादि काल से यह संसार और जीव की जाती थी, अब तो केवल पैसा बनाने के लिए। परिवर्तनशील है, पर विगत कुछ वर्षों से जीवन शैली कन्याओं की गर्भावस्था में ही हत्या कर दी जाती है, में बड़ी तेजी से बदलाव आये हैं। सामाजिक, आर्थिक, इससे लिंगानुपात में भयंकर अन्तर आ गया है। अब राजनैतिक, धार्मिक आदि सभी क्षेत्रों में ऐसा हुआ है। विवाह योग्य लड़कियाँ आसानी से नहीं मिल पाती हैं। घर का रहन-सहन, बुजुर्गों के प्रति व्यवहार. अब तो हालात इतने बदतर हो गये हैं कि विदेशों से सादगी व अनुशासन का वातावरण विकृत हो रहा है। अनेक प्रकार के अभक्ष्य पदार्थ उदारीकरण और परिवार बिखर रहे हैं, संसार सागर में हिचकोले खाती वैश्वीकरण के बहाने भारत के बाजारों में खुले आम पारिवारिक जीवन नैया को संभालने वाले बड़े बुजुर्गों : आने लगे हैं। इसी संदर्भ में कुछ समय पूर्व लगभग रूपी लंगर उखड़े जा रहे हैं। १४०० वस्तुओं पर मात्रात्मक प्रतिबंध पूर्णरूप से हटाकर सभी प्रकार के अभक्ष्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, सामाजिक एवं धार्मिक आयोजनों में सीमा से हाईब्रिड (संकर) बीज, काठ कबाड, जहरीले ज्यादा आडम्बर प्रदर्शन व फिजूलखची बढ़ गई है। कीटनाशक, रासायनिक खाद, बेरोकटोक हमारे देश स्वाध्याय में रुचि नहीं, पर अखबार हाथ में आ जाने में आने शुरु हो गये हैं। बाजारू खाद्य पदार्थों को खाकर पर पूरा पढ़कर ही छूट पाता है। अहिंसा का पूर्ण रूप से पालन करना असंभव है। श्रम करने का महत्व नहीं रहा, पहले सभी अपवाद रूप से कुछ समझदार शिक्षित डॉक्टर परिवार गृहकार्य अपने हाथों से ही सम्पन्न करते थे। जैसे पानी मैंने देखे हैं जो यथाशक्ति कोई भी बाजारू खाद्य पदार्थ भरना, चक्की चलाना, घर की सफाई, कपड़े, बर्तन नहीं खाते। आदि करते हुए भी प्रसन्नचित्त एवं स्वस्थ रहते थे। आज गलत सरकारी नीतियों के कारण जगहमीलों पैदल चल लेते थे, पर काश ! आज अनेक जगह शराब, गुटखा, सिगरेट, मांस, अंडे की दुकानें प्रकार की सुविधाएँ होते हुए भी मानसिक तनावों से खुलती जा रही हैं। बड़े-बड़े पाल्ट्री फार्म खोले जा रहे त्रस्त स्त्री-पुरुष अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हैं और प्रायः विदेशी मुर्गियाँ भी चोरी छिपे भारत में रहते हैं। देशी दवायें व प्राकृतिक रहन-सहन छोड़कर लाई जा रही हैं। उनमें कुछ रोगग्रस्त भी होती हैं और मंहगी डाक्टरी दवाओं के चक्कर में फँसकर अपना जब यहाँ मुगियाँ को संक्रमण फैलता है, तो लाखों की स्वास्थ्य एवं धन लुटा रहे हैं। संख्या में सभी मुर्गियाँ मार दी जाती है। ऐसे ही मैडकाउ __पहले गुरु-शिष्य संपर्क बराबर रहने से विद्यार्थी बीमारी की वजह से इंग्लैण्ड में कुछ वर्ष पूर्व ६० लाख अनुशासित एवं चारित्रवान होते थे, गुरु एवं माता- दुधारू गायों का कत्लेआम कर दिया गया था। यह पिता का पूरा आदर होता था। अब तो बताने में भी बीमारी गायों को मांस खिलाने से हुई थी। कामशर्म आती है। पहले शिक्षा जीवन बनाने के लिए ग्रहण वासना प्रदीप्त करने हेतु चीन आदि देशों में शेर व गैंड़े महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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