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१७. प्रत्येक जिले स्तर पर एक कमेटी गठित तभी उनके अस्तित्व का वास्तविक उद्देश्य सार्थक होना चाहिए। उसमें प्रत्येक गाँव-शहर के मंदिर का होगा। यदि ऐसे संगठनों के रहते सांस्कृतिक धरोहर नष्ट एक सदस्य होना चाहिए। कहीं भी मूर्ति चोरी होवे तो होती रही तो दोष इनका ही होगा। पीढियाँ इन्हें माफ वो सदस्य तत्काल कमेटी को सूचित करें। और कमेटी नहीं करेंगी। समाज भी लानते देगी। चोरों से खतरा अपने बेनर तले प्रशासन पर जबरदस्त दबाब बनाये। कम है और अपनी निष्क्रियता से खतरा ज्यादा है। विधिवत् योजनाबद्ध तरीके से आन्दोलन करे। ऐसा न उपरोक्त उपायों पर विचार कर शीघ्र अपनाये जाने की होने पर समस्त जिलों की कमेटियों से सम्पर्क करे और आवश्यकता है, वरना जितना विलम्ब से कदम उठेगा। प्रदेश स्तर पर कार्यवाही करे। शासन से बातचीत कर उससे कई गुना हानि हो चुकी होगी। ध्यान रहे ! एक दबाब बनाये। ऐसा करने से पुलिस वालों की नींद दिन करना यही होगा। खुलती है। तब आपके भगवान मिल सकते हैं। ध्यान विचारणीय बात है कि जब कहीं चोरी हो जाती रहे ! ज्यादा लम्बा समय निकलने से चोर एवं प्रतिमा है. तो दःख होता है। लोग भगवान की उपासना शरु तक पहुँच बनाना मुश्किल होता है।
कर देते हैं, व्रत, नियम, उपवास करते हैं, एक-दो बार १८. एक चोर पकड़े जाने के बाद पुन: मंदिरों धरना-प्रदर्शन करके शान्त हो जाते हैं। शक्ति और धन की चोरी करता है या दूसरे करते हैं। इसका कारण है खर्च करके कुछ नहीं पाते हैं। इधर-उधर दौड़-धूप सजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है। जिससे चोरों करके थक जाते हैं। मूर्ति आदि मिलना भाग्य भरोसे को कोई खोफ हो। अत: जैन समाज को सरकार से रह जाता है। क्यों न सुरक्षा की नसीहत लेकर कुछ इसमें कोई उचित कार्यवाही की माँग करना चाहिए। इन्तजाम कर लिए जाएँ। क्योंकि प्रतिमाएँ एक जीवित भगवान के समान मानी घर-दुकान की सुरक्षा के लिए सारे उपाय यहाँ जाती हैं, प्रतिष्ठित होती हैं। भारतीय संस्कृति में प्रतिष्ठा तक की स्वयं ही लगे रहते हैं, तो फिर मर्तियों की क्यों में प्राण-प्रतिष्ठित किये जाते हैं । अतः उनका अपहरण नहीं? क्या वो जड, पाषाण या धातु है? क्या श्रद्धा करना या क्षत-विक्षत करना हत्या के समान श्रेणी का समर्पण भक्ति पर चोट नहीं पहँचती? क्या मर्ति के अपराध बनता है, अत: दण्ड व्यवस्था भी वैसी होनी नाबालिग श्रेणी में आने से सुरक्षा करने का हमारा चाहिए। प्रचार-प्रसार ऐसा होना चाहिए कि आमजन दायित्व नहीं बनता? क्या निष्क्रियता नपुंसकता नहीं को राहत हो जाए कि मंदिर मूर्ति भी एक जीवित तत्त्व है? चोर भगवान की प्रतिमा को कहाँ-कहाँ डालता है? है। उनके साथ छेड़खानी करना भारी अपराध-दण्ड का क्या यह विचार कर आपकी आत्मा नहीं काँपती है? भागीदार होना है। सरकार से चोरी रोकने के लिए यदि आपके उत्तर नकारात्मक हैं तो आप जैन नहीं हैं, कानन को कठोर करने की मांग के लिए भारत में जहाँ- जिनेन्द्र भक्त नहीं हैं। जहाँ चोरियाँ हुई हैं उनकी जानकारियाँ एकत्रित करके
प्रत्येक व्यक्ति समाज की एक इकाई है। उसे दिखाना चाहिए। जैनपत्र-पत्रिकाओं में सूचना देकर ये
इकाई बनकर आगे आकर इस विषय में अपना तनजानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं।
मन-धन-समय का अंशदान करके दूसरे को बिना बोले १९. दिगम्बर जैन समाज की पंचायते, दिगम्बर ही प्रेरणा देना चाहिए तभी दहाई, फिर सैकड़ा-हजारजैन महासमिति, जैन महासभा, जैन सोश्यल ग्रुप, लाख की संख्या में लोग जुड़ते जायेंगे। दिगम्बर जैन युवा परिषद्, वीरसेवा दल महाराष्ट्र, "धर्मो रक्षति रक्षितः", स्थानीय संस्थाएँ आगे आकर अपनी संस्कृति के मुख्य । प्रतीक मंदिर मूर्तियों की रक्षा के क्षेत्र में आगे आयें। “प्रभु बचेंगे तो हम बचेंगे"
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/10
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