Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 283
________________ गया, जो कुछ बच पाया उसका जीर्णोद्धार करते समय हमारे प्राचीन तीर्थों मन्दिर-मूर्तियों के प्रति हमने असावधानी अविवेक और अज्ञानता के कारण संहारात्मक अपराध किये जा रहे हैं, हमारे इतिहास व उनके शिला लेखों आदि को मिटा दिया। आज भी प्राचीन परम्परा को विंध्वसित किया जा रहा है। इससे प्रतिमाओं के प्रक्षालन आदि करते समय वालाकूची अनेकों प्रश्न खड़े हैं। जैनत्व की सुरक्षा का प्रश्न भी से मूर्ति के लेख घिस जाने दिये गये हैं। अनेकों मूर्तियाँ खड़ा है। प्राचीन तीर्थ या मन्दिर नहीं हों तो हम प्राचीन अन्य धर्मियों के हाथ में चले जाने से अन्य देवी नहीं कहला सकते। प्राचीन तीर्थ मन्दिर जैनत्व को देवताओं के रूप में पूजे जाने से जैन इतिहास पुरातत्व प्रगट करते हैं। इनसे हमारी सुरक्षा है, जैनत्व की सुरक्षा एवं कला सामग्री की भारी क्षति पहुंची है। पुरातत्व- है प्राचीन तीर्थ का नाश हमारे प्राचीन इतिहास को नष्ट वेत्ताओं की अल्प अज्ञानता पक्षपात तथा उपेक्षा के कर देगा और भविष्य में भी करता रहेगा। यह आज कारण भी जैन पुरातत्व सामग्री को अन्य की मान कर चिन्ता का विषय है हमें उनकी सुरक्षा, संरक्षण कैसे हो जैन इतिहास के साथ खिलवाड़ किया गया हैं। जाये, विचार करना होगा तभी हमारा अस्तित्व बना जैन संस्कृति व कला के क्षेत्र में महान योगदान रहेगा। है। विश्व प्रसिद्ध श्रमणवेलगोला में गोमटेश्वर तथा आज हमारे अनेकों संत, आचार्य संगोष्ठियों, मूडबद्री में कारकल में बाहुवलि की विश्व की आश्चर्य- साहित्यक एवं शैक्षिणिक स्तर पर महत्वपूर्ण कार्य कर जनक मूर्तियां हैं। आबूपर्वत पर देलवाड़ा जैन मन्दिर रहे हैं। इनमें भाग लेने वाले विद्वान आपस में सम्पर्क में ११वीं शताब्दी के जैन मन्दिर भारतीय कला प्रतिभा कर पुरानी जिज्ञासाओं को संतुष्ट तथा नई जिज्ञासाओं शिल्पी की अंलकृत पाषाण आकृतियों में अपनी चरम को जन्म देते हैं। ये संगोष्ठियां संस्कृति के संरक्षण एवं पराकाष्ठा पर मिलती है। कला मर्मज्ञों की नजर में उनके विकास में स्थायी महत्व के कार्य करती हैं। ताजमहल की समानता रखता है। बड़वानी नगर के सामान्य श्रावक को इसका तत्काल कोई फल नजर पास चूलगिरी में ८४ फीट ऊंची जैन तीर्थंकर आदिनाथ नही आता है, लेकिन उनको ज्ञात होना चाहिये कि जैन की विशालकाय प्रतिमा आज भी विद्यमान है। संस्कृति का इतिहास और महत्व ऐसे ही परोक्ष प्रयासों पालीताना में २८०० जैन मन्दिर पर्वत पर शोभायमान से प्रकाशित होता रहा है और संस्कृति के संरक्षण में हैं। ग्वालियर के गोपाचल पर्वत पर चट्टानों में जैन सहभागी बनता रहा है। मूर्तियों के नमूने हैं वे १५वीं सदी के हैं। उड़ीसा की - सुरेश चन्द जैन बारौलिया हाथी गुफा कन्दरा आदि मिलते हैं। मथुरा में पाये जाने बी- ६७७, कमला नगर, आगरा (उ.प्र.) वाले जैन स्तूप सबसे पुराने हैं। प्राचीन काल में भी मन्दिरों की सुरक्षा की जाती रही है। जैन साहित्य तृणं लघु तृणात्तूलं, तूलादपि च याचकः । मूर्तियों की सुरक्षा और संरक्षण के प्रमुख उदाहरण हैं वायुना किंन नीतोऽसौ, मामयं याचयिष्यति ॥ कि सगर चक्रवर्ती के ६० हजार पुत्रों ने भरत चक्रवर्ती ___ तृण सब से हलका होता है, तृण से रूई द्वारा बनाये हुये ७२ जिनालयों की मन्दिरों की रक्षा के हलकी होती है, रूई से भी हलका मांगने वाला लिये भारी उद्योग किया था और उनके चारों ओर खाई होता है। फिर भी उसे हवा क्यों नहीं उड़ा ले खोद कर भागीरथी के जल से उसे पूर्ण कर दिया था। जाती, इसलिये कि शायद वह मुझसे भी कुछ ताकि वह सुरक्षित रह सकें। लंकाधिपति रावण भी इन मांगे। मन्दिरों के दर्शन के लिये कई बार आया था। __ - नीति शतक महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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