Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 281
________________ जैन संस्कृति संरक्षण एवं संर्वद्धन पाण्डुलिपि/प्राचीन मूर्तियां/ शिलालेख/ चित्रकला 0 सुरेश चन्द्र जैन बारौलिया संस्कृति मानव के भूत-वर्तमान और भावी धरोहर व विरासत को सुरक्षित संरक्षित कर भावी जीवन का सर्वांगीण विकास है। यह मानव जीवन की पीड़ियों को हस्तान्तरित करना ही अपना परम कर्तव्य एक प्रेरक शक्ति है। जीवन की प्राण वायु है जो चैतन्य है। धार्मिक प्रभावना एवं जीवन के विकास का निर्माण भाव को साक्षी प्रदान करती है। राष्ट्र का लोक हितकारी करने हेतु समाज का विश्वास प्राप्त कर जैन आचार्यों तत्त्व संस्कृति है। संस्कृति का अर्थ संस्कार सम्पन्न ने सबसे बड़ा कार्य साहित्य के निर्माण में तथा उनके जीवन है। यह जीवन जीने की कला पद्धति है। विश्व धर्मानुयायिओं ने उसके प्रचार-प्रसार में प्राचीनकाल से की प्रचीनतम संस्कृतियों में जैन संस्कृति का अपना ही सक्रिय योगदान किया है और आज भी कर रहे हैं। विशेष महत्व रहा है। इसके उदात्त सिद्धान्तों में उन्होंने सहस्रों ग्रन्थ, ताडपत्र, भोजपत्र, कपड़े एवं प्रायोगिकता व्यावहारिकता और व्यापकता के सनातन कागज पर लिखकर भारतीय ज्ञान की परम्परा को तत्त्व सतत विद्यमान हैं। अपने विराट स्वरूप में अद्वितीय सुरक्षित रखा है। आज भी अनेकों मन्दिरों में वृहद और अप्रितम रही है। भारतीय धर्म और संस्कृति की ग्रंथगार सुरक्षित है। उससे जैन धर्म की तथा उसके मौलिक विशेषताओं में जैन धर्म का अवदान सर्वाधिक अनुयायिओं की कला की अभिलाषा एवं अनेकों रहा है। यही भारत का प्राचीनतम धर्म है। ज्ञानानुराग का परिचय मिलता है। वर्तमान में उपलब्ध __जैन कला साहित्य एवं संस्कृति को सुरक्षित ऐतिहासिक तथ्यों एवं अन्य विवरणों से यह स्पष्ट है रखने व इसकी निरन्तरता को बनाये रखने में जैन कि जैन आचार्य एवं विद्वानों के द्वारा रचित ग्रन्थों की तीर्थक्षेत्रों मन्दिरों साधु-साध्वियों विद्वानों, गुरुकुल संख्या प्रचुर मात्रा में है। इनकी विशालता का आभास शिक्षण संस्थाओं तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक स्तर इससे सहज हो जाता है कि जैन आचार्यों द्वारा प्रामाणिक पर किये गये प्रयत्नों तथा स्वाध्याय, प्रवचन, शास्त्र ग्रन्थ जो प्रकाश में आये हैं उनमें उनसे पूर्ववर्ती आचार्यों भण्डारों आदि की अहम भूमिका रही है, किन्तु इन द्वारा रचित ग्रन्थों के सन्दर्भ या उदाहरण प्रचुरता से प्रयत्नों के बाद भी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व मिलते हैं। जिन ग्रन्थों के सन्दर्भ मिलते हैं उनमें से की बहुत सी अमूल्य सामग्री की उचित संरक्षण व अधिकांश अप्रकाशित दुर्लभ या अप्राप्त हैं। अनेकों देखरेख के अभाव में यत्र-तत्र विखरी हई है। हमारी हस्तलिखित ग्रन्थ पाण्डुलिपियाँ आज सुलभ नहीं हैं। महत्वपूर्ण मूर्तियां दुर्लभग्रन्थ व कलात्मक सामग्री उचित अथवा उनके अनुवाद प्रकाशन की व्यवस्था नहीं हुई एवं वैज्ञानिक रीति के संरक्षण के अभाव में या तो नष्ट है। हमारी अज्ञानता, अदूरदर्शिता, उदासीनता के कारण हो रही हैं अथवा क्षीण हो रही हैं ऐसे समय में हमारा अपनी अमूल्य धरोहर काल के गाल में समा चुकी है। कर्तव्य है कि हमारी कला व संस्कृति की इस अमूल्य भगवान महावीर स्वामी एवं गौतम गणधर द्वारा महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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