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क्षेत्र दर्शन - नगर के मध्य में जो जिनालय प्राचीन समय में इन प्रतिमाजी पर भक्त जन है, उसमें प्रवेश करते ही धातु के पंच सहस्रकूट चैत्यालय बरतन भर-भर के दूध चढ़ाते थे। कहा जाता है कि के दर्शन होते हैं। इसकी ऊँचाई साढ़े तीन फुट है। इन पर आस्था रखने से मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध हो चौड़ाई एक फुट सवा इंच है। यह सहस्रकूट चैत्यालय जात है। १५४१ का प्रतिष्ठित है। इस मंदिर में १००८ श्री
घोघा के मंदिरों में जिन प्रतिमा की पीठासन पर अजितनाथ भगवान और १००८ चन्द्रप्रभु भगवान की
प्रतिष्ठा काल अंकित नहीं है, इन्हें चतुर्थ काल की पाषाण प्रतिमाएँ चौथे काल बताई जाती हैं। मंदिर के प्रतिमा मानते हैं । सम्भवतः ऐसी प्रतिमाएँ ११-१२वीं कम्पाउंड में भगवान आदिनाथ की श्वेत पाषाण की
शताब्दी की हो सकती हैं। पद्मासन प्रतिमा है। इसके समवशरण में एक स्फटिक
यहाँ भी पाषाण मूर्तियों के ऊपर समुद्र की की मूर्ति तथा ३० धातु की प्रतिमाएँ हैं। क्षारयुक्त वायु का दुष्प्रभाव पड़ा है। मूर्तियों पर धब्बे
पड़ गये हैं। तथा पाषाण के पालिश की चमक भी दांडिया देरासर में मूलनायक भगवान आदिनाथ
धुंधली पड़ गयी है। की १५३७ में प्रतिष्ठित मूर्ति है। यहाँ पर भट्टारकजी की
घोघा हमारा प्राचीन क्षेत्र है। गुजरात की यात्रा गद्दी भी है। भगवान आदिनाथ की यह मूर्ति अत्यन्त
करने वालों को घोघा की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। अतिशय सम्पन्न है।
डाक बंगलों से समुद्र के दृश्य का भी अवलोकन करना चौपड़ा देरासर में मूलनायक श्री १००८ चाहिए। तथा वहाँ आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध करवाने चंद्रप्रभुजी की भव्य पद्मासन पाषाण प्रतिमा चतुर्थ के लिए यथोचित दान भी देना चाहिए। कालीन बताई जाती है। इसके अलावा इसमें भगवान घोघा का पता इसप्रकार है - शान्तिनाथ की सफेद पाषाण की १४९२ में प्रतिष्ठित - श्री दिगम्बर जैन मंदिर हुम्मड़ डेला घोघा प्रतिमा भी है। १००८ भगवान नेमिनाथ की श्याम
पोस्ट-घोघा-३६४११० पाषाण की १४४३ में प्रतिष्ठित प्रतिमा भी विराजमान
जिला भावनगर (गुज.) है। यह प्रतिमा भी बहुत ही भव्य व आकर्षक है।
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नमि जिन-प्रतिमा जिन-भवन, जिन-मारग उरु आनि। पंच परम पद पद प्रणमि प्रणमि जिनेश्वर वाणि॥ जिन-प्रतिमा अरु जिन-भवन, कारण सम्यक् ज्ञान । कृत्रिम और अकृत्रिम तिनहिं नमूं धरि ध्यान ॥ वृषभ आदि अति वीर सों, चौबीसों जिनराय । विघन हरण मंगल करण, वन्दूं शीश नवाय ॥
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/24
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