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भी होना चाहिए। मात्र सौ डेड सौ रुपये का आता है।
३. प्रत्येक मंदिर में सेन्सर लगना चाहिए, प्रत्येक दरवाजे पर सेन्सर चिप लगना चाहिए और सेन्सर से १२-१५ फोन जुड़ना चाहिए । जिससे कोई भी घुसा तो तत्काल सेन्सर का सायरन चालू हो जाएगा और फोन बज उठेंगे। तत्काल लोग दौड़ पड़ेंगे। चोर स्वतः ही आवाज (सायरन) सुन भागेगा । मात्र १०-१२ हजार का खर्चा आयेगा ।
४. थोड़ा और खर्चा करें तो कैमरे लगायें । मात्र २-३ हजार का कैमरा, एक छोटी टी. वी., चौकीदार, माली, व्यास के कमरे में फिट करें तो उस पर देखरेख हो जायगी और साथ में सूटिंग रिकार्ड हो जाती है, जिससे चोर तक पहुँच शीघ्र हो जाती है। आज इतने अच्छे वैज्ञानिक उपकरण आ गये हैं, फिर क्यों न अपनाये जायें।
५. प्रत्येक मंदिर की प्रत्येक वेदी पर काँच के दरवाजे लॉक सहित लगावें ।
६. छोटी प्रतिमायें (९ इंच तक) को गोदरेज की तिजोरियाँ फिट कराकर रखें। खास तौर पर धातु की प्रतिमाएँ ।
७. प्रत्येक मंदिर के चौक में लोहे के जाल लगायें, क्योंकि चोर आजू-बाजू से चढ़कर चौक में कूँ जाते हैं।
८. मंदिर में कौन आ रहा है, कौन जा रहा है इस पर नजर रहे। इसके लिए चौकीदार, माली, व्यास को ताकीद करें। इसके लिए उसके वेतन में बढोत्तरी करें। तो वो सावधानी से इस कार्य को करेगा ।
९. मंदिर समय पर खुलें, समय पर बन्द हों, ताला लगे और खोलने - बन्द करते समय मंदिर कमेटी के कोई भी सदस्य उपस्थित रहें । कमेटी भगवान की सेवक / सुरक्षक होती है, मालिक नहीं; क्योंकि भगवान का कोई मालिक नहीं होता है। सेवक के रहते चोरी होना, सेवक का दोष है, पाप है।
माली को रखा जाये, जिससे उसके परिवार के सदस्यों की नजर रहेगी या फिर मंदिर की दीवाल से सटे आजूबाजू में रखा जाये। तभी मंदिर पर नजर रखी जा सकती है। साथ ही चौकीदार - व्यास पर भी नजर रखें, उनके किनसे संबंध हैं, कौन उनके पास आ जा रहे हैं।
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११. चौकीदार - व्यास - माली जवान लगाने चाहिए । १२. चौकीदार व्यास- माली के पास टार्च, डण्डा, सीटी होना ही चाहिए । १३. मंदिर में परिचित कारीगर, मजदूर, पेन्टर, बढ़ई ( कारपेन्टर), बिजली मिस्त्री आदि को ही प्रवेश देवें। भले पैसा ज्यादा लग जाए लेकिन परिचितों से ही कार्य कराना चाहिए ।
१४. मंदिर के आस-पास सूना नहीं होना चाहिए। पुजारी - माली - चौकीदार समाज के लोगों को रहना चाहिए - ऐसी व्यवस्था हो ।
१५. यदि कहीं की समाज स्थानान्तरित हो अन्यत्र चली गई है तो उसे जिनप्रतिमाओं को साथ ले
ना चाहिए। या किसी सुरक्षित जगह पर विराजमान करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया है तो आसपास की समाज को चाहिए कि वो उस मंदिर की प्रतिमाओं को सुरक्षित करें । अन्यत्र स्थापित करें। या फिर वहाँ पर किसी गरीब जैनों को आजीविका देकर बसावें । प्रतिमाएँ उठाने के बाद वहाँ पर चरण चिन्ह स्थापित कर दें और एक शिलालेख लिखा दें कि यहाँ की प्रतिमाएँ वहाँ पर गई हैं तथा जहाँ पर जाएँ, वहाँ पर भी लिखा दें कि ये समस्त प्रतिमाएँ वहाँ से लायी गई हैं। इससे इतिहास सुरक्षित रहेगा ।
१६. मंदिरों में भक्तों की संख्या बढ़े, इसके प्रयास किये जाने चाहिए। प्रत्येक शहर की बहुसंख्यक समाज को चाहिए कि वो एक ऐसी टोली बनाये जो हर रविवार को अलग-अलग मंदिरों में पूजा-अभिषेक का कार्यक्रम रखें। ऐसा करते हुए पूरे जिले के मंदिरों में जाना चाहिए । इससे वहाँ के निवासी जागृत होते हैं, कमेटियाँ जागृत होंगी। समाज तथा कमेटी के जागरण से मंदिरों की सुरक्षा
१०. मंदिर परिसर में ही चौकीदार - व्यास- व्यवस्थाएँ चुस्त-दुरुस्त होंगी ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/9
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