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वैशाली में अनुभूत करें महावीर दर्शन
0 डॉ राजेन्द्र कुमार बंसल
.. श्रद्धा के दीपक कई प्रकार के होते हैं। कुछ यह बात अलग हैं कि जिसको वे दैनिक जीवन जलते ही बुझ जाते हैं, कुछ अधजले बुझ जाते हैं और में जीते हैं या अपनाये हुए हैं, उसे वे उन शब्दों या कुछ ऐसे अद्भुत होते हैं जो सदियों तक एक दीप से संज्ञाओं में अभिव्यक्त नहीं कर सकते, जो शास्त्रों में दूसरे दीप को जलाते हुए पीढ़ी दर पीढ़ी अनवरत जलते निहित है। ही रहते हैं और भविष्य में भी जलते रहेंगे। इसीप्रकार
इस विवाद को दृष्टि ओझल कर कि भगवान कुछ जन्म जयन्तियाँ या विशिष्ट दिवस (जैसे दीक्षा या
महावीर की जन्मभूमि विदेह-कुण्डपुर कहाँ है? लेखक आचार्यारोहण आदि) केन्द्रित होते हैं, जहाँ-जहाँ व्यक्ति
श्री अखिल बंसल तथा डॉ. ऋषभ चन्द्र फौजदार ने जाता है उसकी उपस्थिति में वहाँ मनाते हैं। कुछ जन्म निर्णय किया कि वैशाली के जन जीवन पर महावीर जयन्तियाँ पंथ या सम्प्रदाय के विशेष के सदस्य मनाते
के प्रभाव का मूल्यांकन किया जाये। इस दृष्टि से दिनांक हैं। जैसे कबीर, हनुमान, बुद्ध जयन्तियाँ आदि तथा
१३ एवं १४ फरवरी २००४ को वासोकुण्ड वैशाली के कुछ जन्मजयन्तियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें सभी वर्ण और जातियों के व्यक्ति स्व- प्रेरणा से प्रतिवर्ष पीढ़ी दर पीढ़ी
बुद्धजीवियों, राजनियकों और विविधस्तरीय नागरिकों
का साक्षात्कार किया और वैशाली जनों की सभ्यता मनाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी जलने वाले श्रद्धा के दीप और
संस्कृति, सधर्मपना, प्राकृतिक मनोहारी पर्यावरण आदि पीढ़ी दर पीढ़ी सभी के द्वारा मनाई जाने वाली जन्म
के आह्लादकारी अनुभव सर्व-हिताय प्रस्तुत हैं। जयन्तियाँ या अन्य उत्सव उस महान व्यक्तित्व की विराटता के सचक हैं. जिसने अपनी आत्मीक शक्ति १. महावीर सब के थे, सब के लिये थे और के दिव्य साये में अनवरत प्रवाह रूप से सभी जीवों सर्व काल सब के रहेगे- इसकी पुष्टि हुई दो वीघा पवित्र की पीड़ा को अपने में छुपा कर समानता, भ्रातत्व भाव, अहिल्य भूमि से जो महावीर की जन्म स्थली के रूप समता, सहिष्णुता, संयम, त्याग, अविरोध समर्पण में वासोकुण्ड में लगभग डेढ सौ पीढ़ियों से बिनासहजता का संदेश दिया है। ऐसा विराट व्यक्तित्त्व है जुती, पावन, पीडाहारी मानी जाती है। इस पवित्र भूमि वर्द्धमान-महावीर का जिसका, अनुभव होता है वैशाली पर चैत्र सुदी तेरस के दिन सैकड़ों नागरिक जाति-भेद जिला स्थित वासोकण्ड, और वैशाली जिला वासियों भूलकर जलूस रूप में जाते हैं, अक्षत अर्पित कर वहाँ के हृदय पटल पर जो सदियों से वर्ण-जाति का भेद की पावन मिट्टी मांथे पर लगाते हैं और अपने श्रद्धाभुला कर अपने आराध्य वर्द्धमान-महावीर को जीवन सुमन अपने आराध्य महावीर को समर्पित करते हैं। की श्वासों में स्पंदित होते देखे जाते हैं। जैनत्व कहिये इसमें सभी वर्ण के व्यक्ति सम्भवित होते हैं। यह जानने या महावीर के दर्शन-सिद्धान्तों को यथार्थ जीवन में योग्य है कि ७ वीं शताब्दि के वाद वहाँ कोई जैनधर्मी उतारने की सहजकला, वैशाली वासियों में सहज देखी निवास नहीं करता। सन् १९४५ से जन्म-जयंति की जा सकती है।
शोभायात्रा महावीर भक्तों द्वारा बौना (बावन) पोखर
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/18
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