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जैन समाज - जागो !
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- ऐलक श्री धैर्यसागर जी (संघस्थ मुनि श्री सुधासागरजी)
सभ्य मनुष्यों के समूह का नाम है समाज । एक बैठे हैं या मंदिर व मूर्तियों के प्रति हमारी भक्ति, श्रद्धा निश्चित-नियम, मर्यादाओं, सदाचार, सांस्कृतिक व समर्पण नष्ट हो गए हैं ? मात्र पूजा, पाठ, दर्शन कर रीति-रिवाजों की कल्पना के विचारों में एकमत होकर लेने से कल्याण नहीं हो जाता है, हमें इसके साथ मूर्ति, संगठनात्मक दायित्व को पूरा करने वाला समूह समाज मंदिर, पंच परमेष्ठी की भक्ति सेवा के रूप में सुरक्षा के नाम से जाना जाता है। विभिन्न विचारों के भिन्न- संवर्धन भी करना होगा। भारत वर्ष में आज सबसे भिन्न समूहों ने अपनी पहचान के लिए अलग-अलग अधिक यदि किन्हीं मन्दिरों से मूर्ति आदि चोरी हो रही नाम से समाज गठित कर ली है।
हैं तो हैं दिगम्बर जैन मन्दिरों से। आखिर ऐसा क्यों? जैन तीर्थंकरों के द्वारा प्रतिपादित धर्म संस्कति कभी विचार किया? विचार करना होगा चोरी के कारणों के अनुसार चलने वाला समूह जैन समाज के रूप में पर, चोरी के रास्तों पर और चोरी के रोकथाम के लिए। पहचाना जाता है। जैन अनुयायियों ने धर्म संस्कृति के इतिहास समाज का मुखड़ा होता है। प्राचीन अनुरूप अपने सामाजिक कायदे-कानून बनाए और ऐतिहासिक सुकृत प्रेरणादायक इतिहास प्राणों के समान आत्म कल्याणक पंच परमेष्ठियों की आराधना के लिए होता है। जिससे किसी भी समाज की गौरवशाली जिनमन्दिर बनाये और उनमें जिनप्रतिमाएं स्थापित परम्परा का ज्ञान होता है । जीवनादर्श की पहचान होती की। भगवान जिनेन्द्र की वाणी जो जैनाचार्यों द्वारा है। जिन्हें अपनाकर व्यक्ति जीवन, समाज, देश में संकलित शास्त्ररूप ग्रन्थों में लिपिबद्ध कराया। शान्ति-आनंद स्थापित कर सकता है। इतिहास व
भारत भूमि पर सर्वाधिक प्राचीन मंदिर व मूर्तियाँ ऐतिहासिक धरोहर प्रतिस्पर्धा की चपेट में आते रहे जैन समाज की धरोहर के रूप में सर्वाधिक और प्राचीन हैं तो संरक्षण-संवर्धन की सुखद छाया तले अपने वजूद हैं, जिन्हें देखने से लगता है कि जैन समाज के पूर्वजों से दुनिया को प्रेरणा भी देते रहे हैं। में अगाध श्रद्धा-भक्ति समर्पण थी। उन्होंने हमें जिसप्रकार मंदिर-तीर्थक्षेत्र-मूर्तियों पर कब्जा आत्मशक्ति-कल्याण के लिए ऐसी अद्भुत धरोहर जमाने के लिए विधर्मियों की मुहिम चल रही है और सौपी है, जिसकी सुरक्षा एवं संवर्धन करना जैन समाज हमारी अदूरदर्शिता, असंगठन, एकता शक्ति का अभाव, का दायित्व बनता है।
समयोचित कार्यवाही का अभाव, पूर्व सुरक्षा कारणों वर्तमान परिप्रेक्ष्य में जहाँ देखो, वहाँ मर्ति आदि का अभाव, सुरक्षा योजना का अभाव, जागरुकता का चोरियाँ आये दिन देखने-सनने में आ रही हैं। क्या अभाव, एक अच्छे नेतृत्व का अभाव, कार्य-कर्ताओं वजह है कि हम अपने पूर्वजों की थाती को सुरक्षा प्रदान का असहयोग, निष्क्रियता की सक्रियता के चलते नहीं कर पा रहे? क्या ऐसा मानना उचित होगा कि हमारे प्रतिस्पर्धी बन सफल हो रहे हैं। ठीक इसीप्रकार चोरी पूर्वजों ने हमें यह थाती सौंपकर उचित नहीं किया? क्या में भी पूर्व नियोजित षड्यन्त्र तो नहीं हैं। इस संबंध में बनिया समाज के नाम पर हम अपने पुरुषत्व को खो काफी कुछ लिखा जा सकता है।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-4/7
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