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काव्य रचना की और जन साधारण का इस ओर ध्यान भट्टारक एवं सन्त राजस्थान प्रदेश को भी पवित्र करते आकृष्ट किया। इन्होंने गढ़ हरसौर, गढ़ रणथम्भौर एवं अपने चरण कमलों से। यहाँ साहित्य रचना करते एवं सांगानेर आदि स्थानों का अपनी रचनाओं में अच्छा अपने भक्तों को उनका रसास्वादन कराते। इन सन्तों वर्णन किया है। आनन्दघन आध्यात्मिक सन्त थे। में भ. रत्नकीर्ति, भ. अभयचन्द्र, भ. अभयनन्दी, भ. इनकी आनन्दघन बहोत्तरी एवं आनन्दघन चौबीसी शुभचन्द्र, ब्रह्म. जयसागर, मुनि कल्याणकीर्ति, श्रीपाल, उच्च स्तर की रचनाएँ हैं। विद्वानों के मतानुसार इनका गणेश आदि संस्कृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा के जन्म संवत् १६६० एवं मृत्यु संवत् १७३० में हुई। ब्रह्म अच्छे विद्वान थे। इनकी कितनी ही रचनाएँ रिखवदेव, कपूरचंद ने संवत् १६९७ में पार्श्वनाथरासो को समाप्त डूंगरपुर, सागवाडा एवं उदयपुर के शास्त्र भण्डारों में किया था। इनके कितने ही पद मिलते हैं। इनका जन्म उपलब्ध हुई हैं। रत्नकीर्ति के नेमिनाथ फाग, नेमिनाथ आनन्दपुर में हुआ था। हर्षकीर्ति भी १७वीं शताब्दी बारहमासा एवं कितने ही पद उल्लेखनीय हैं। उनके के प्रसिद्ध राजस्थानी कवि थे। “चतुर्गति वेलि” इनकी पदों में मिठास एवं भक्ति का रसास्वादन करने को प्रसिद्ध रचना है, जिसे इन्होंने संवत् १६८३ में समाप्त मिलता है। नेमि-राजुल के विवाह से सम्बन्धित प्रसंग किया था। इनकी अन्य रचनाओं में षट्लेश्याकवित्त, पर ही इनकी रचनाओं का एवं पदों का मुख्य विषय पंचमगति बेलि, कर्महिंडोलना, सीमंधर की जकड़ी, है। एक पद देखिये - नेमिनाथ राजमती गीत, मोरडा आदि उल्लेखनीय हैं।
राग - देशाख इनके कितने ही पद भी मिलते हैं, जो भक्ति एवं वैराग्य
सखि को मिलावो नेमि नरिंदा ।। रस से ओत-प्रोत हैं।
ता बिन तन-मन-यौवन रजत है, “समयसुन्दर” राजस्थानी भाषा के अच्छे
चारु चन्दन अरु चंदा।। सखि. ।। विद्वान थे। “श्री हजारीप्रसादजी द्विवेदी” के शब्दों में।
कानन भुवन मेरे जीया लागत, कवि का ज्ञान-परिसर बहुत ही विस्तृत है। वह किसी
दुसह मदन को फंदा। भी वर्ण्य विषय को बिना आयास के सहज ही संभाल
तात मात अरु सजनी रजनी लेता है। इन्होंने संस्कृत में २५ तथा हिन्दी-राजस्थानी
वे अति दुख को कंदा। सखि. ।। में २३ ग्रन्थ लिखे। इन्होंने सात छत्तीसियों की भी रचना
तुम तो संकर सुख के दाता, की। कवि बहुमुखी प्रतिभा एवं असाधारण योग्यता
. करम काट किये मंदा। वाले विद्वान थे। इन्होंने सिन्ध, पंजाब, उत्तरप्रदेश,
रतनकीरति प्रभु परम दयालु, राजस्थान, सौराष्ट्र, गुजरात आदि प्रान्तों में विहार किया
सेवत अमर नरिंदा ।। सखि. ।। और उनमें विहार करते हुए विभिन्न ग्रन्थों की रचना भी
कुमुदचन्द्र की साहित्य-साधना अपने गुरु की। राजस्थान में इन्होंने सबसे अधिक भ्रमण किया
रत्नकीर्ति से भी आगे बढ़ चुकी थी। ये बारडोली के और अपने समय में एक साहित्यिक वातावरण-सा
__ जैन सन्त के नाम से प्रसिद्ध थे। इनकी अब तक कितनी बनाने में सफल हुए। ये संगीत के भी अच्छे जानकार
ही रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं। इनकी बड़ी रचनाओं में थे और अपनी रचनाओं को कभी-कभी गाकर भी
आदिनाथ विवाहलो, नेमीश्वर हमची एवं भरतसुनाया करते थे।
बाहुबली छन्द हैं। शेष रचनायें पद, गीत एवं विनतियों राजस्थान का बागड प्रदेश गुजरात प्रान्त से के रूप में हैं। इनके पद सजीव हैं। उनमें कवि की लगा हुआ है। इसलिए गुजरात में होने वाले बहुत से अन्तरात्मा के दर्शन होने लगते हैं। शब्दों का चयन एवं
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/34
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