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जैन एवं जैनेतर साहित्य में सीता निर्वासन
- डॉ. (श्रीमती) बीना अग्रवाल
रामायण हमारे देश का राष्ट्रीय महाकाव्य है। का एक अंश है। भविष्य पुराण के अनुसार रामशर्मन् न केवल हमारे देश के विभिन्न प्रान्तों की अलग-अलग अथवा रामानन्द इसके रचयिता हैं। उस काल में भाषाओं में रामकथा की रचना हुई अपितु सम्पूर्ण पूर्व वेदान्तादि दर्शनों का बोलबाला था, इसलिए इस ग्रन्थ एशिया में भी रामकथा का प्रचार-प्रसार पाया जाता में राम का दार्शनिक सत्ता ब्रह्म के रूप में चित्रण किया है। देश, काल और भाषा की सीमाओं का अतिक्रमण गया है। इस ग्रन्थ में ज्ञान, कर्म, भक्ति का समन्वय कर रामचरित जन जन के मानस में प्रतिष्ठित होने के देखने को मिलता है। साथ ही व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय
कम्ब रामायण - दक्षिण भारत में महाकवि जीवन को नैतिक मूल्यों एवं आदर्शों से अनुप्राणित कर
कम्बन द्वारा ११७८ ई. में तमिल भाषा में रचित रहा है। वाल्मीकि रामायण भारतीय संस्कृति में आदि
रामायणम् के अनुसार राम विष्णु के अवतार हैं, वे ही काव्य के रूप में स्वीकृत है, तथापि विद्वानों के अनुसार
प्रणव से वाच्य हैं, समस्त विश्व के आदि कारण हैं। इसकी रचना और संकलन काल में कम से कम दो तीन
सीता लक्ष्मी की अवतार हैं। भगवान से अभिन्न होने शताब्दियाँ लगी होंगी व कालान्तर में भी इसमें प्रक्षेप होते रहे। रामायण के सात काण्डों में से प्रथम बालकाण्ड
के कारण वे जगत् का सर्जन करने वाली एवं मोक्षदात्री
हैं। सीता त्याग का प्रसंग इस ग्रन्थ में उपलब्ध नहीं। और अन्तिम उत्तरकाण्ड को कई भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने प्रक्षिप्त माना है। इस प्रकार प्रामाणिक
रामराज्य का भी विस्तृत वर्णन नहीं है। रामचरित राम के राज्याभिषेक तक ही माना जाता है।
रंगनाथ रामायण - गोनबुद्धा रेड्डी द्वारा १३०० लोकमानस तथा जनजीवन को आध्यात्मिक आदर्श ई. में तेलुगु में रचित है। पिता की इच्छापूर्ति के लिए एवं भक्ति के रंग में रंगनेवाले लोकनायक तुलसी ने रामकाव्य का निर्माण करके और पिता विठ्ठलनाथ के अपने रामचरितमानस में भी राम के राज्याभिषेक व नाम के पर्याय द्वारा श्री रंगनाथ रामायण नाम दिया। रामराज्य का ही वर्णन किया है। भारत के विभिन्न रमणीय भावुकता से ओतप्रोत होने के साथ ही यह प्रदेशों में विभिन्न कालों एवं भाषाओं में रची हुई अनेक सरस, सुगम व सुगेय भी है। सीता निर्वास इसमें भी रामकथाओं में भी सीता का निर्वासन चित्रित नहीं वर्णित नहीं है । रामेश्वरम् में शिवलिंग की स्थापना और किया गया है। प्रस्तुत लेख में जैन एवं जैनेतर साहित्य अयोध्या में राम के राजतिलक से काव्य की समाप्ति में सीता निर्वासन की उपलब्धि एवं स्वरूप का विवेचन होती है। किया गया है।
तोरवेरामायण - नरहरि द्वारा १५०० ई. में विभिन्न भाषाओं में रचित रामकथायें और उनमें प्रस्तुत वाल्मीकि रामायण का कन्नड रूपांतरण है। सीता निर्वासन की स्थिति -
वाल्मीकि रामायण में लवकुश राम को कथा सुनाते हैं, अध्यात्म रामायण (१५०० ई.) ब्रह्माण्ड पुराण जबकि इस काव्य में महर्षि वाल्मीकि कुश और लव
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/40
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