Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 237
________________ के साथ-साथ स्वयमेव शरीर भी क्षीण होता है। आत्महत्या के लिए करता है ? स्व-पर संपूर्ण जीवों अतिवृद्ध, अतिरोग की अवस्था में शरीर क्षीण/दुर्बल से तीन काल संबंधी क्षमा प्रदान एवं क्षमा याचना पूर्वक होने के कारण चलना-फिरना, उठना-बैठना आदि मन-वचन-काय, कृत-कारित-अनुमत से संपूर्ण हिंसा करने में पीड़ा होती है, रोग बढ़ जाता है। इसलिए से निवृत्ति होने के लिए समाधि को स्वीकार किया एक योग्य स्थान में एक संथारा (शयन के योग्य चटाई जाता है तो समाधि आत्महत्या या सती प्रथा के समान आदि) में समाधि साधक आध्यात्मिक साधना करते अपराध या सामाजिक बुराई अथवा कानूनी अपराध/ हैं। अतिवृद्ध, अतिरोगी अवस्था में गरिष्ठ-अति असंवैधानिक कैसे हो सकता है ? भारतीय संविधान भोजन करने से अपच आदि के कारण रोग में वृद्धि के अनुसार प्रत्येक नागरिक को धर्म और उपासना की की संभावना रहती है। इसलिए सुपाच्य-अल्पाहार स्वतंत्रता का अधिकार है। यथा - का विधान है। इस बाह्य (गौण) कारण के साथ- We, THE PEOPLE OF INDIA, havसाथ अंतरंग कारण इन सबका यह है कि स्व-पर ing solemnly resolved to constitute India को, सूक्ष्म से स्थूल जीवों को बाधा नहीं पहुँचे, भाव into a (SOVEREIGN SOCIALIST SECU LAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to में निर्मलता आवे, मरण में पीड़ा न हो। secure to all its citizens; आवश्यकतानुसार नियम की मर्यादा में मरण के अन्तिम दिन तक औषधि-पानी आदि के भी प्रयोग हम भारत के लोग, भारत को एक (संपूर्ण का विधान है। प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों जैन धर्म में अहिंसा, सत्य, अनेकान्त, उदारता, को - कर्म-सिद्धान्त के साथ-साथ १. आहार दान, २. JUSTIC, Social, economic and po ___litical, LIBERTY of thought, expression, दान, ४ या belief, faith and worship, EQUALITY of दत्ती (करुणा से रोगी, गरीब आदि की सहायता) का status and of oppartunity, and to promote among them all FRATERNITY assuring the जब विधान है तथा आत्मा में मलिन भाव को ही महान dignity of the individual and the sunity and आत्म हत्या माना गया, तब कैसे कोई प्रवृद्ध/जागरुक integrity of the nation]; वरिष्ठ नागरिक से लेकर साधु-संत तक आत्महत्या कर सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, सकते हैं ? भावात्मक आत्महत्या को जब जैन धर्म में महान हिंसा/पाप मान कर उससे दूर रहने का विधान विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की है, तब स्व-आत्महत्या के साथ-साथ स्व-शरीर हत्या स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और (राष्ट्र एक सच्चा जैन कैसे कर सकता है ? जब संविधान की एकता और अखण्डता) सुनिश्चित करने वाली के अनुसार १८ (२१) वर्ष का व्यक्ति स्व-विवेक से अपना धर्म, कर्तव्य का चयन कर सकता है. तब क्या बन्धुता बढ़ान के लिए एक वरिष्ठ व्यक्ति (वृद्ध-विवेकी-धर्मात्मा-अहिंसक) IN OUR CONSTITUENT ASSEM BLY this twentysixth day of November 1949 पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक आदि समस्याओं के do HEREBY ADOPT ENACT AND GIVE बिना स्व-विवेक के रहते हुए स्वेच्छा से आध्यात्मिक TO OUR SALVES THIS CONSTITUTION. उन्नति के लिए मरण को वरण करता है तो क्या वह दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/55 आषा ie Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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