Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 238
________________ में आज तारीख २६ नवम्बर, १९४९ ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी संवत् २००६ विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं । समाधि मरण एवं आत्महत्या में और भी अनेक अन्तर निम्न प्रकार से हैं - समाधि एक धार्मिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जबकि आत्महत्या एक भौतिक / शारीरिक क्रिया है। समाधि संपूर्ण रूप से स्वैच्छिक है तो आत्महत्या के पीछे कोई न कोई विवशता या बाध्यता होती है । समाधि का प्रमुख लक्ष्य आत्म-कल्याण, मोक्ष प्राप्ति होता है तो आत्महत्या का मुख्य कारण तात्कालीन कष्टों से पीछा छुड़ाना या दुःखों से पलायनवादी होना है । समाधि में अवश्यंभावी मरण के समय में भोजनपानी का त्याग शक्ति के अनुसार स्वैच्छिक होता है तो आत्महत्या किसी भी विष, अस्त्र, शस्त्र, अग्नि, पानी, श्वासरोध, फांसी, यान- वाहन, उच्च स्थान से गिरना आदि से की जा सकती है। समाधि में मृत्यु एकदम नहीं होती है। इसकी प्रक्रिया १२ वर्ष तक शनै: शनै: होती है। यम समाधि को त्यागकर सामान्य जीवन भी जिया जाता है, जब मरण के कारण रूप रोग, विपत्ति, हिंसपशु आक्रमण, विषाक्त जीवों के द्वारा दंश, दूसरों के द्वारा विष पान आदि कारक दूर हो जाते हैं, परन्तु आत्महत्या / सतीदाह एकदम होता है। समाधि का भाव स्वयं के निर्मल परिणाम से उत्पन्न होता है, जबकि आत्महत्या का भाव एक आवेग, आवेश, विवशता, उत्तेजना, संक्लेश, पीड़ा आदि का परिणाम होता है। समाधि जीवन के अन्त में की जाती है जब सभी भोगों, वासना, इच्छा पूर्ति के कार्य करने के पश्चात् इनसे मुक्ति पाने का भाव उत्पन्न होता है । Jain Education International मेडिकल साइन्स के अनुसार भी जिनके प्राकृतिक रूप से मृत्यु का प्रॉसेज प्रारम्भ हो चुका है, जहाँ पर मृत्यु होना अवश्यंभावी है। यदि कोई व्यक्ति टर्मिनली इल है अर्थात् उसके जीवन का अन्त अवश्यंभावी है। यदि ऐसे व्यक्ति की ब्रेन डेड हो चुकी हो तो उसके लाइफ सपोर्ट को हटाया जा सकता है। हॉलैण्ड विश्व का पहला देश है, जहाँ व्यक्ति को यह कानूनी अधिकार प्राप्त है कि वह इच्छा मृत्यु प्राप्त कर सकता है। आस्ट्रेलिया आदि कुछ देश में भी ऐसा कानून है। वैदिक धर्मानुसार श्रीराम ने भी जल समाधि ली थी। इसी प्रकार विवेकानन्द ने भी । राष्ट्रसंत विनोबा भावे ने तो जैन धर्म की विधि के अनुसार समाधि-मरण को वरण किया था । वैदिक धर्म ग्रन्थ मनुस्मृति में भी विस्तार से संन्यास एवं संन्यास मरण का जो वर्णन है उस की अधिकांश प्रक्रिया जैन समाधि-मरण प्रक्रिया से समानता रखती है । विस्तृत ज्ञान के लिए समाधि संबंधी मेरे अन्य लेख एवं साहित्य का अध्ययन करें। * विश्वकल्याण के लिए वैदिक ऋषि दधिची ने स्वेच्छा से अन्न-जल त्याग करके शरीर त्याग किया था। जिनकी अस्थि से इन्द्र ने वज्र तैयार करके वृत्रासुर को मारा था । महात्मा बुद्ध ने भी अन्तिम में समाधिमरण पूर्वक परिनिर्वाण प्राप्त किया था। वैदिक, बौद्ध आदि धार्मिक परंपरा में यह प्राचीन आध्यात्मिक समाधि-मरण प्रक्रिया सर्व साधारण में बहु प्रचलित नहीं होने के कारण तथा विदेश में प्राय: यह प्रथा नहीं होने के कारण वर्तमान में भारत में भी इससे सर्व साधारण जन अनभिज्ञ हैं । परन्तु जैन धर्म में अति प्राचीन काल से लाखों-करोड़ों वर्षों से यह प्रथा है और अभी भी प्रचलित है । इस दृष्टि से यह प्रक्रिया जैन स्वीय विधि (पर्सनल लॉ) है और उनके अपने कस्टम ( रुढ़ि, परंपरा) है। आत्महत्या एक इम्पलिसव प्रक्रिया है, जबकि समाधि मृत्यु- महोत्सव, वीर मरण है, जिससे समाज में ज्ञान, वैराग्य, त्याग, आध्यात्मिता, निस्पृहता, अनासक्त, आध्यात्मिक - शहीद का पाठ पढ़ाने वाले होने से लोक-हितकारी है । अतः समाधि-मरण सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल है न कि विरुद्ध है। क्योंकि इससे समाज को शिक्षा मिलती है, प्रेरणा महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/56 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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