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राज्याभिषेक के पश्चात् राम शुभ अवसर पर प्रदान नहीं करते। लक्ष्मण बड़े दुःख के साथ सीता के पधारे हुए अतिथियों को भेंट आदि प्रदान कर ससम्मान आश्रम के समीप ले जाकर निवेदन करते हैं - विदा कर देते हैं एवं न्यायपूर्वक शासन करते हैं। इसी सा त्वं त्यक्ता नृपतिना निर्दोषा मम सन्निधौ।१३॥ क्रम में गुप्तचर भद्र से पुरवासियों के विचार जानना
पौरापवादभीतेन ग्राह्यं देवि न तेऽन्यथा। चाहते हैं। यह जानकर कि पुरवासियों में रावण के घर में रही हुई सीता को राम द्वारा स्वीकार कर लेने के विषय
आश्रमान्तेषु च मया त्यक्तव्या त्वं भविष्यसि ।१४।। में इस कारण से रोष है कि हमें हमारी स्त्रियों के विषय राज्ञः शासनमादाय तथैव किल दौहृदम्। में यही सहन करना पड़ेगा क्या ? -
- उत्तर ४७. १३-१५ लंकामपि पुरा नीतामशोकवनिकां गताम्।
सीता की शुद्धता हो जाने पर लोकापवाद के रक्षसां वशमापन्नां कथं रामो न कुत्स्यति ॥१८॥ कारण दी गई राजाज्ञा का पालन करना लक्ष्मण के लिए अस्माकमपि दारेषु सहनीयं भविष्यति ।
आवश्यक है। अपने त्याग के अवसर पर पति के लिए यथा हि कुरुते राजा प्रजास्तमनुवर्तते ॥१९॥
दिया गया वैदेही का संदेश मार्मिक होने के साथ ही उत्तर ४४.
उनकी पतिपरायणता के साथ ही आत्म सम्मान को भद्र के इस कथन के विषय में सहृद सभासदों सूचित करने वाला है। वे राम को राजा के रूप में द्वारा असहमति प्रकट किए जाने पर राम सभा को सम्बोधित करती है - वक्तव्यश्चैव नृपति धर्मण विसर्जित करके तीनों भाईयों को बलवाकर प्रजा में सुसमाहितः (१४)। साथ ही यह भी कि स्त्री के लिए फैले हए प्रवाद के विषय में बताते हैं। साथ ही यह भी पति ही बन्धु, गुरु और देवता होता है, इसलिए स्त्री कि लंका में हुई अग्नि परीक्षा में सभी देवताओं ने उन्हें को अपने प्राणों के द्वारा भी पति के प्रिय कार्य को करना निष्पाप माना था और स्वयं महेन्द्र ने उन्हें पनः सौंपा चाहिए। (चाहे वह स्वयं उसका त्याग ही क्यों न हो) था।"
पतिर्हि देवता नार्याः पतिर्बन्धु पतिर्गुरुः । राम की अन्तरात्मा भी जानकी को निष्पाप प्राणैरपि प्रियं तस्माद् भर्तुः कार्यं विशेषतः॥१७|| समझती है -
- उत्तर ४८ अन्तरात्मा च मे वेत्ति सीतां शुद्धां यशस्विनीम्।
वे यह कहती हैं कि आज वे गर्भवती हैं, इसका ततो गृहीत्वा वैदेहीमयोध्यामहमागतः।
लक्ष्मण विश्वास कर लें (कालान्तर में इस विषय में - उत्तर ४५. १०-११ उनके चरित्र पर फिर कोई लांछन न लगे)। तथापि पुरवासियों के अपवाद के कारण वे वाल्मीकि रामायण में राम के द्वारा सीता त्याग अपनी अपकीर्ति से भयभीत हैं और लोक निन्दा के के मूल काल में भृगु ऋषि द्वारा दिए गए पत्नी वियोग भय से वे अपने प्राणों को अथवा बन्धुओं को भी त्याग विषयक शाप को बताया गया है। (उत्तर ५१ सर्ग) सकते हैं। तो सीता का त्याग कौन सी बड़ी बात है। सीता वाल्मीकि के आश्रम में दो पुत्रों को जन्म देती (वही १२-१५) वे अपने भाईयों से किसी तरह का है। जिनकी शिक्षा-दीक्षा के साथ ही मुनि वाल्मीकि परामर्श किए बिना लक्ष्मण को आज्ञा देते हैं कि दसरे उन्हें रामकथा भी कण्ठस्थ कराते हैं। राम द्वारा अश्वमेध दिन सीता को राम राज्य की सीमा के पार वाल्मीकि यज्ञ के अवसर पर दोनों मुनिकुमार लव और कुश के आश्रम के निकट निर्जन वन में त्याग दें। वे इस विषय रामकथा का गायन करते हैं और उन्हें राम के पुत्र के में उन्हें कुछ कहने या विचार करने की अनुमति भी रूप में पहचाना जाता है। राम सीता को बुलवाकर पुनः
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/46
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