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भगवान महावीर का जीवन घटना प्रधान क्यों नहीं?
डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल, जयपुर
भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त दर्शन ने अनेकों की शंकाएँ ममाप्त की हों, अनेकों को जितने गूढ, गंभीर व ग्राह्य हैं, उनका वर्तमान जीवन सन्मार्ग दिखाया हो, सत्पथ में लगाया हो, उनकी (भव) उतना ही सादा, सरल एवं सपाट है, उसमें महानता को किसी एक की शंका को समाप्त करने वाली विविधताओं को कोई स्थान प्राप्त नहीं है। उनका वर्तमान घटना कुछ विशेष व्यक्त नहीं कर सकती। जीवन घटना-बहुल नहीं है । घटनाओं में उनके व्यक्तित्व बढ़ते तो अपूर्ण हैं, जो पूर्णता को प्राप्त हो चुका को खोजना भी व्यर्थ है।
हो - उसे 'वर्द्धमान' कहना कहाँ तक सार्थक हो घटना समग्र-जीवन के एक खण्ड पर प्रकाश सकता है? इसी प्रकार महावीर की वीरता को सांप और डालती है। घटनाओं में जीवन को देखना उसे बाँटना हाथी वाली घटनाओं से नापना कहाँ तक संगत है? है। भगवान महावीर का व्यक्तित्व अखण्ड है, यह एक विचारने की बात है। अविभाज्य है, उसका विभाजन संभव नहीं है। उनके यद्यपि महावीर के जीवनसंबंधी उक्त घटनाएँ व्यक्तित्व को घटनाओं में बाँटना, उनके व्यक्तित्व को शास्त्रों में वर्णित हैं, तथापि वे बालक वर्द्धमान को खण्डित करना है।
वृद्धिंगत बताती हैं, भगवान महावीर को नहीं। सांप से ___अखण्डित दर्पण में बिम्ब अखण्ड और विशाल न डरना बालक वर्द्धमान के लिए गौरव की बात हो प्रतिबिम्बित होते हैं, किन्तु कांच के टूट जाने पर सकती है, हाथी को वश में करना राजकुमार वर्द्धमान प्रतिबिम्ब भी अनेक और क्षुद्र हो जाते हैं। उनकी के लिए प्रशंसनीय कार्य हो सकता है, भगवान महावीर एकता और विशालता खण्डित हो जाती है। वे अपना के लिए नहीं। आचार्यों ने उन्हें यथास्थान ही इंगित वास्तविक अर्थ खो देते हैं।
किया है। वन-विहारी पूर्ण अभय को प्राप्त महावीर एवं भगवान महावीर के आकाशवत विशाल और पूर्ण वीतरागी सर्वस्वातंत्र्य के उद्घोषक तीर्थंकर भगवान सागर से गंभीर व्यक्तित्व को बालक वर्द्धमान की बाल- महावीर के लिए साँप से न डरना, हाथी को काबू में सुलभ क्रीड़ाओं से जोड़ने पर उनकी गरिमा बढ़ती नहीं, रखना क्या महत्व रखते हैं? वरन् खण्डित होती है।
___ तीर्थंकर महावीर के विराट व्यक्तित्व को समझने 'सन्मति' शब्द का कितना भी महान अर्थ क्यों के लिए हमें उन्हें विरागी-वीतरागी दृष्टिकोण से देखना न हो, पर केवलज्ञान की विराटता को वह अपने में नहीं होगा। वे धर्म क्षेत्र के वीर, अतिवीर और महावीर थे, समेट सकता। केवलज्ञानी के लिए सन्मति नाम छोटा युद्धक्षेत्र में पर को जीता जाता है और धर्मक्षेत्र में स्वयं ही पड़ेगा, ओछा ही रहेगा। वह केवलज्ञानी की महानता को। युद्धक्षेत्र में पर को मारा जाता है और धर्मक्षेत्र में व्यक्त करने में समर्थ नहीं हो सकता। जिनकी वाणी एवं अपने विकारों को।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/31
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