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प्राचीनतम उल्लेख । न कहीं देवी-देवताओं जैसी कि चाहे स्वयं को कितना भी कष्ट हो किन्तु किसी छोटे अलौकिक शक्तियों का दखल, न नरक-स्वर्ग जैसी से छोटे प्राणी को रंचमात्र भी कष्ट देना उन्हें स्वीकार्य नहीं परोक्ष अवधारणाओं का उल्लेख, न कहीं भगवान महावीर था। उन्होंने पाया कि अहिंसा और सुख-भोग-सुविधा की किसी ऐसी शक्ति का उल्लेख जो सहसा अविश्वसनीय एक साथ नहीं रह सकते। अत: उन्होंने कष्ट-सहिष्णुता हो। सम्पूर्ण जीवन-वृत्त ऐसा है मानों स्वयं भगवान और कठोर तपश्चर्या के द्वारा अहिंसा को साधा, महावीर ने अपने मुख से ही सुधर्मा स्वामी को सुनाया आरामतलबी द्वारा नहीं। वे विलासिता से तो कोसों दूर हो। भगवान महावीर की उपरोक्त जीवनचर्या एक ऐसे रहे। उन्होंने अपनी पैनी अन्तर्दृष्टि से पृथ्वी, जल, अग्नि पुरुषार्थमय जीवन की गाथा है जो हमें भी पुरुषार्थ के और वायु तक में चेतना को देख लिया। वनस्पति की लिए प्रेरित करती है। वह न अविश्वसनीय है, न ऐसी तो बात ही क्या ? अत: उनकी अहिंसा इतनी व्यापक कि हम उसका अनुसरण न कर सकें। __ थी कि वे भूतमात्र के प्रति करुणा से भरे थे।
____ महावीर का एक ही लक्ष्य था। उस लक्ष्य को भगवान महावीर के उपदेशों को आज नए सत्य का साक्षात्कार कहें, आत्म-साक्षात्कार कहें, संदर्भो में देखने की आवश्यकता है। हम जहाँ-तहाँ मुक्ति कहें, कषाय-विजय कहें या और कोई भी नाम खनिजों की खोज में पृथ्वी को खोद डाल दे रहे हैं, दें। उस लक्ष्य के पीछे उन्होंने सुख-सुविधा छोड़ी और जल को और वायु को प्रदूषित कर रहे हैं। पर्यावरणविद् प्रतिकूलता स्वेच्छा से ओढ़ी भी। इसे लक्ष्यैकचक्षुष्कता स्थावरों की इस हिंसा से चिन्तित हैं। विकास के नाम कहें या तप। उन्होंने उपादान को ही महत्व दिया, पर विलासिता बढ़ रही है और साथ ही अमीर और निमित्तों को नहीं। सतत् जागरुकता उनका एकमात्र गरीब के बीच की खाई भी बढ़ रही है। बड़े कष्टों की ध्येयवाक्य था। प्रमाद को उन्होंने विषधर सर्प की भाँति कौन कहे, हम तो अहंकार पर छोटी सी चोट पड़ने पर त्याज्य माना। जिन भोगों के पीछे सामान्य व्यक्ति संसार को सिर पर उठा लेते हैं ? पचासों बातें हैं, दौड़ता है, उन भोगों से वे इस तरह दूर रहे जैसे प्रज्वलित महावीर जयन्ती पर उनमें से कोई पाँच बातें ही तो ग्रहण दावानल से दूर रहा जाता है।
करें। ऐसा करके हम अपना कल्याण करेंगे, कोई महावीर उन्होंने अहिंसा का इस दृढ़ता से पालन किया स्वामी पर अहसान नहीं करेंगे।
- डी-१४८, जी-१, पैराडाइज अपार्टमेन्ट, दुर्गामार्ग, बनीपार्क, जयपुर
धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमस्संति जस्स धम्मे सयामणो॥
- धर्म ही उत्कृष्ट मंगल है, जो अहिंसा, संयम और तपरूप है। जिसका मन उस धर्म में संलग्न है, उसे देवता भी प्रणाम करते हैं।
- सूत्रांग-आचारांग
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/36
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