Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 2007
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 200
________________ था। सुप्रसिद्ध योरुपीय घुमक्कड - इतिहासकार डॉ. बर्नियर उस समय भारत आया हुआ था और उसका उससे वार्तालाप भी हुआ था। सरमद की लोकप्रियता देखकर एक ईर्ष्यालु दरबारी ने औरंगजेब से उस दरवेश को फांसी की सजा सुनाने की प्रार्थना की, किन्तु उसने सरमद को फांसी की सजा न सुनाकर उसे कपड़े पहिनने की सलाह दी। उस सलाह को सुनकर सरमद ने जो सुन्दर तथा निर्भीक उत्तर दिया, वह उसी के शब्दों में देखिए - - " आंकस कि तुरा कुलाह सुलतानी दाद, मारा हम ओ असवाव परेशानी दाद, पोशानीद लवास हरकरा एंवे दीद, बे ऐवारा लवास अर्यानी दाद । " अर्थात् जिसने तुझको सुलतानी ताज दिया, उसी ने हम को परेशानी का सामान भी दे दिया। जिस किसी में कोई ऐब (दोष) पाया, उसको तो उसने लिबास (पोशाक) पहिना दिया और जिसमें कोई ऐब न पाया, उसको खुश होकर उसने नंगेपन (दिगम्बरत्व) का लिबास दे दिया। ग्रन्थ यही नहीं, क्रिश्चियेनिटी (ईसाई धर्म) में तो प्रारम्भ से ही दिगम्बरत्व की बड़ी प्रतिष्ठा रही है । सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. बी. एन. पाण्डेय ने अपने "भारत और मानव-संस्कृति" इसरायल एवं यूनान में सहस्रों की संख्या में दिगम्बर जैन मुनियों की उपस्थिति की विस्तार पूर्वक चर्चा की है। बाइबिल में एक प्रसंग में कहा है - ......And he stripped his clothes also and prophesied before samuel in like manner and lay down naked all that day and all that night. Wherefore they said, is Samual also among the prophes? samuel, XIX-XXIV Jain Education International अर्थात् उसने उनका आदेश सुनते ही अपने वस्त्र उतार फेंके और सेम्युअल के सम्मुख ऐसी घोषणा कर दी और उस दिन पूरे दिन- न-रात वह नग्न ही बना रहा । इस पर उन्होंने कहा 'क्या सेम्युअल भी पैगम्बरों में से है ?” - - उसी समय प्रभु ने अमोज के पुत्र ईसाइया से कहा कि – “जा और अपने वस्त्र उतार दे और अपने पैरों से जूते निकाल डाल और उसने भी तत्काल वही किया भी। उसी समय से वह दिगम्बर (नग्न) होकर नंगे पैरों से ही जगह-जगह विचरने लगा । " At the same time spake the Lord by Isaih the son of Amoz, Saying - ‘Go and Loose the sack....clothe from off thy lions and put off thy shoes from thy foot. And did so walking naked and bare foot. Isaih,XX-2 महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-3/18 - दुर्भाग्य से बीसवीं सदी की विदेशी कृत्रिम संस्कृति इतनी प्रभावक सिद्ध हो रही है कि उसने भारत की अधिकांश जनता को अपनी चपेट में ले लिया है। किन्तु कृत्रिमता कभी भी स्थायी नहीं होती। धीरे-धीरे लोगों में विवेक का भी उदय हो रहा है और सम्भवतः उससे विरक्ति भी होने लगी है, भले ही उसकी गति अत्यन्त धीमी हो किन्तु एक दिन ऐसा भी अवश्य आयेगा कि लोग अपनी सहज स्वाभाविक स्थिति में लौटेंगे। हेम्पशायर के बेडल्स स्कूल के सचिव श्री बरफोर्ड के अनुसार योरुप में अनेक इंजीनियर्स, प्रोफेसर्स, डॉक्टर्स, एडवोकेट्स आदि उच्चशिक्षा प्राप्त व्यक्ति दिगम्बरवेश में रहना अपने लिये अधिक हितकारी मानने लगे हैं। एक प्रसंग में उनका कथन है कि - "Next year, as I say we shall be even more advanced and in time people will get quite used to the idea of mearing no clohes at all in the open and will realise its enormous aslue to health" - Amrita Bazar Patrika - 8 / 8/1931 अर्थात् एक वर्ष के भीतर ही ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नग्न रहने की प्रथा विशेष रूप से विकसित हो जायेगी और कालक्रमानुसार मनुष्यों को खुले रूप से कपड़े पहनने की जरूरत ही नहीं रहेगी। नग्न रहने से उन्हें स्वास्थ्य के लिये जो अचिन्तनीय लाभ मिलेगा, वह उन्हें तभी स्पष्ट ज्ञात हो सकेगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312