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महावीर का श्रावक
नीरज जैन
श्रावकाचारों में श्रावक की जो परिभाषा बताई स्वामी-द्रोह, मित्र-द्रोह, विश्वासघात, चोरी, वंचना गई है उसके अनुसार उसे एक नीति सम्पन्न और सब और कर-अपवंचना आदि निन्दित और वर्जित उपायों प्रकार से प्रामाणिक जीवन जीने वाला आदर्श नागरिक से प्राप्त धन का उपयोग उसके लिए त्याज्य बताया गया होना चाहिए, बारहवीं शताब्दी के महान विद्वान पण्डित है। धर्मकार्यों में ऐसे कलंकित धन के उपयोग का तो आशाधरजी ने अपने ग्रन्थ में आदर्श श्रावक का जो निषेध है ही, परन्तु परिवार पालन के लिए भी उसका प्रभावक शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है, उस पर एक दृष्टि निषेध श्रावक का पहला नियम निरूपित करके उसके डाल लेने से जैन श्रावक की सारी विशेषताएँ हमें स्पष्ट महत्व को रेखांकित किया गया है। हो जायेंगी -
२. गुणगुरून् यजन - न्यायापात्तधना यजन्गुरुगुरुन् सद्गास्त्रिवग भज-
उसे गुणों के प्रति आदर, गुणवान व्यक्तियों के बन्योन्यानुगुणं तदहगृहिणीस्थानालयो ह्रीमयः। प्रति सम्मान और गुरुजनों के प्रति सदा पूज्यता का भाव युक्ताहारविहार आर्यसमितिः प्राज्ञः कृतज्ञो वशी:,
होना चाहिए। श्रण्वन् धर्मविधिं दयालुरघभी: सागारधर्मं चरेत्।।
३. सद्गीः - - पं. आशाधरजी, सागार धर्मामृत - १/११
श्रावक को मीठे और हितकर वचनों का प्रयोग पण्डितजी ने इस श्लोक में श्रावक को आचरण
करने वाला होना चाहिए। समाज में कलह और अशांति करने योग्य चौदह नियम बताये हैं जिन्हें हम जैन श्रावक
फैलाकर सामाजिक वात्सल्य को खण्डित करने वाले के 'चौदह मूलगुण' भी कह सकते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि जो श्रावक इन प्रारम्भिक नियमों के प्रति सचेत
वचनों का प्रयोग उसे नहीं करना चाहिए। रहेगा और उनकी विराधना को पाप मानकर चलेगा. ४. अन्योन्यानुगुणं त्रिवर्ग भजन् - वही पूज्य समन्तभद्राचार्य महाराज के 'गृहस्थो धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थ 'त्रिवर्ग' कहलाते मोक्षमार्गस्थो' की कसौटी पर भी खरा उतर सकता है। हैं। श्रावक को अपनी जीवन पद्धति ऐसी बनानी चाहिए भगवान महावीर के हर आराधक को और हर अनुयायी जिसके माध्यम से इन तीनों पुरुषार्थों की निर्विरोध साधना को सही अर्थों में श्रावक होना चाहिए, इसलिए आइये संभव हो सके। एक बार इन नियमों को समझ लें।
यहाँ तात्पर्य यह है कि गृहस्थ जीवन में इतना १. न्यायोपात्त धनम् -
धर्मरहे जो श्रावक के अर्थ और काम पुरुषार्थ को नियंत्रित यह श्रावक का पहला नियम है। शायद यही करते हुए भी उनका विघातक या बाधक न हो। सबसे कठिन भी होगा। श्रावक को न्यायपूर्वक अर्जित श्रावक का अर्थ पुरुषार्थ । ऐसी मर्यादाओं से किये गये धन से ही अपनी आजीविका चलाना चाहिये। नियंत्रित होना चाहिए, जिससे उसके धर्म की हानि न
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-119
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