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भगवान महावीर के सिद्धांत : आज के परिवेश में
ललित कुमार जैन
जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर देना, पुरुष के समान स्त्री को भी प्रतिष्ठा देना, यहाँ तक का जन्म वैशाली गणराज्य के राजा सिद्धार्थ की रानी कि किसी प्राणीमात्र को भी नहीं सताना अहिंसक त्रिशला की कुक्षि से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन आज समाज तैयार करना है। से लगभग २६०६ वर्ष पूर्व वैशाली के कुण्डग्राम में अपरिग्रह - आज संसार में प्रत्येक मनुष्य के हुआ। भगवान महावीर के जन्म से पूर्व पृथ्वी पर सामने भोजन, वस्त्र, आवास की मुख्य समस्या है। इस अत्याचार-अनाचार, शोषण, हिंसा, संघर्ष एवं समस्या का समाधान अपरिग्रह के द्वारा संभव है। आज कुरीतियों का साम्राज्य था। धर्म के नाम पर पशुवध के समय में परिग्रह ने तीन बुराइयों को जन्म दिया है। किया जाता था, नारी दासता के बन्धन में कैद थी। १. विषमता, २. विलासिता, ३. करता। जब वस्तुओं ऐसे समय में भगवान महावीर ने संसार के प्राणिमात्र का संग्रह एक स्थान पर हो जाता है, तब दूसरे उनके के कल्याण हेतु संसार को असार जानकर ३० वर्ष की अभाव में दुखी हो जाते हैं। गरीबी-अमीरी, ऊँच-नीच युवावस्था में वैराग्य धारण कर १२ वर्ष तक कठोर तप आदि समस्याएँ इसी का परिणाम है। परिग्रह के सब कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त किया। भगवान साधन सामाजिक जीवन में करता, घणा और शोषण महावीर ने ३० वर्ष तक भारत में विहार कर प्राणिमात्र को जन्म देते हैं। अत: अपने पास उतना रखना जितना के कल्याण हेतु जैन धर्म का उपदेश जनभाषा में दिया। आवश्यक है, बाकी शेष समाज को समर्पित करना ही
भगवान महावीर ने अपने उपदेश में जिओ और अपरिग्रह है। जीने दो एवं मित्ति मे सव्व भूएसु अर्थात् संसार में सभी अतः भगवान महावीर ने भ्रमित एवं अज्ञानी प्राणियों से मेरी मैत्री का संदेश दिया। यह आज के प्राणियों को अपरिग्रह का दिशा बोध दिया। यदि समय में जहाँ विश्व आतंकवाद और संप्रदायवाद से सम्पूर्ण मानव समाज सुख व शांति चाहता है तो त्रस्त है, उनसे मुक्ति का मार्ग प्रदर्शित करते हैं। अपरिग्रह को अपनावे। भगवान महावीर ने जिस सामाजिक क्रान्ति को भोमानता ।
अनेकान्तवाद - मानवीय एवं आर्थिक जन्म दिया, उसमें अहिंसा, अपरिग्रह एवं स्याद्वाद- असमानता के साथ-साथ वैचारिक मतभेद भी समाज अनेकान्तवाद के सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं। जो वर्तमान में द्वन्द्व को जन्म देते हैं, जिसके कारण समाज रचनात्मक समय में भी प्रासंगिक हैं।
प्रवृत्तियों को विकसित नहीं कर सकता। मानव के अहिंसा- भगवान महावीर ने कहा कि ऊँच- आपसी मतभेद संकुचित संघर्ष के कारण बन जाते हैं, नीच हिंसा की पराकाष्ठा है । प्रत्येक मनुष्य का अस्तित्व इससे सामाजिक समरसता नष्ट हो जाती है। ऐसी गौरवपूर्ण है, उसकी गरिमा को बनाये रखने, वर्ग- स्थिति से छुटकारा प्राप्त करने हेतु भगवान महावीर ने शोषण नहीं करने, दलित लोगों को सामाजिक सम्मान अनेकान्तवाद का संदेश सभी को दिया तथा स्पष्ट किया
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/21
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