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मङ्गलाष्टक (भाषानुवाद)
अणिमादि अनेक ऋद्धियों से युक्त तथा नमन से सम्पन्न हैं, तीन प्रकार के बल से युक्त हैं और बुद्धि करते हुये सुरेन्द्रों और असुरेन्द्रों के मुकुटों में लगे हुये आदि सात प्रकार की ऋद्धियों के अधिपति हैं, वे जगत्पूज्य कान्ति युक्त रत्नों की प्रभा से जिनके चरणों के नख रूपी गणधर देव सबका मंगल करें ।।५।। चन्द्र भासमान हो रहे हैं, जो प्रवचन रूपी वारिधि को ऋषभ जिन की कैलाश, वीर जिन की पावापुर, वृद्धिंगत करने के लिये चन्द्रमा के समान हैं, जो सदा वासुपूज्य की चम्पा, नेमीश्वर की ऊर्जयन्त और शेष अपने स्वरूप में स्थित रहते हैं और जिनकी योगीजन जिनों की सम्मेद शिखर निर्माण भूमियाँ हैं। विभव सम्पन्न स्तुति करते हैं, वे अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय वे निर्वाण भूमियाँ मंगल करें॥६॥ और साधु सब का मंगल करें ।।१।।
__ज्योतिषी, व्यन्तर, भवनवासी और वैमानिकों निर्दोष सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र के निवास स्थान में तथा मेरु कुलाचल, जम्बूवृक्ष, यह पवित्र रत्नत्रय है। श्री सम्पन्न मुक्ति नगर के स्वामी शाल्मलीवृक्ष, चैत्यवृक्ष, वक्षारगिरि, विजयार्धगिरि, भगवान जिनदेव ने इसे अपवर्ग को देने वाला धर्म कहा इक्ष्वाकारगिरि, कुण्डलगिरि, नन्दीश्वरद्वीप और मानुषोत्तर है। इस प्रकार जो यह तीन प्रकार का धर्म कहा गया है पर्वत पर स्थित जिन चैत्यालय आपका मंगल करें॥७॥ वह तथा इसके साथ सूक्ति सुधा, समस्त जिन प्रतिमा देवों ने समस्त तीर्थंकरों के जो गर्भावतार
और लक्ष्मी का आकार भूत जिनालय मिलकर चार महोत्सव, जन्माभिषेक महोत्सव, परिनिष्क्रमण उत्सव, प्रकार का धर्म कहा गया है - वह मंगल करे ॥२॥ केवलज्ञान महोत्सव और निर्वाण महोत्सव किये, वे
तीन लोकों में विख्यात जो नाभेय आदि चौबीस पञ्चकल्याणक सकल का निरन्तर मंगल करें।।८।। तीर्थंकर हुए हैं, अनेक प्रकार की विभूति से युक्त जो भरत इस प्रकार तीर्थंकरों के पाँच कल्याणक महोत्सवों
आदि बारह चक्रवर्ती हुए हैं, जो सत्ताइस - नारायण, के समय तथा प्रात:काल जो बुद्धिमान हर्षपूर्वक सौभाग्य प्रतिनारायण और बलभद्र हुये हैं, वे तीनों कालों में और सम्पत्ति को देने वाले इस जिन-मंगलाष्टक को प्रसिद्ध त्रेसठ महापुरुष सकल का मंगल करें॥३॥ सुनते हैं और पढ़ते हैं, वे सज्जन पुरुष धर्म, अर्थ और
___ काम पुरुषार्थ से युक्त लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं और अन्त जयाटिक आठ देवियाँ, सोलह विद्या दवता, अपाय रहित मोक्ष लक्ष्मी को भी प्राप्त करते है।॥९॥ तीर्थंकरों की चौबीस माताएँ और चौबीस पिता तथा उनके चौबीस यक्ष और चौबीस यक्षिणी, बत्तीस इन्द्र,
मनोरथाः सन्तु मनोज्ञ-सम्पदः,
सत्कीर्तयः सम्प्रति सम्भवन्तु । तिथि देवता, आठ दिक्कन्यायें और दस दिक्पाल ये सब
व्रजन्तु विघ्नानि धनं वलिष्ठं, देवगण आप सब का मंगल करें।।४।।
जिनेश्वरश्रीपद पूजनाद्वः ।। जो उत्तम तप से वृद्धि को प्राप्त हुई पंच सर्वोषधि
श्री जिनेन्द्र देव के चरणों के अर्चन से आप सब ऋद्धियों के स्वामी हैं, जो अष्टांग महा निमित्तों में कुशल के मनोरथ सिद्ध हों, मनवांछित सम्पत्ति, धन, यश प्राप्त हैं. आठ चारण ऋद्धियों के धारी हैं, पांच प्रकार के ज्ञान हों तथा समस्त विघ्न दूर हों।
महावीर जयन्ती स्मारिका 2007-1/2
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