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महावीर : सम्प्रदायवाद से आवृत्त एक ज्योति पुंज
0 कपूरचन्द जैन
महावीर जैसे महापुरुष किसी सम्प्रदाय विशेष के दायरे में कैद नहीं किये जा सकते; पर सामान्यत: जैन और अजैन आज भी उन्हें जैनों का ही मानने की गलती कर रहे हैं । लेखक इस गलती को दूर करना चाहते हैं ।
प्र० सम्पादक
महावीर का जन्म क्षत्रिय वंश में हुआ, उनके थे। क्योंकि महावीर ने आत्म-धर्म की बात प्रधान गणधर गौतम, ब्राह्मण थे। शिष्य और कही है। साधु समुदाय में सभी वर्गों और जातियों के लोग
प्रश्न उठता है प्रात्मधर्म क्या है ? धर्म का थे, यहाँ तक कि हरिकेशी चाण्डाल भी। इस प्रकार
अर्थ है स्वभाव । कुन्द-कुन्द कहते हैं----'वत्थु सहावो महावीर किसी सम्प्रदाय विशेष से सम्बद्ध नहीं
धम्मो' अर्थात् वस्तु का स्वभाव ही धर्म है । प्रात्मा थे। उनकी वाणी समग्र मानव जाति के लिए
का स्वभाव-प्रात्मधर्म । आत्मा का स्वभाव है उसी प्रकार सुलभ है जैसे हवा और पानी।
हिंसा न करना, झूठ न बोलना, चोरी न करना महावीर ! एक ऐसा ज्योतिपुंज है यह जिससे आदि । ये आत्मा के स्वभाव इसलिए हैं क्यों कि आबाल-वृद्ध, ऊँच से नीच, गरीब से अमीर, इनके बिना प्रात्मा की स्थिति ही नहीं हो सकती। स्थावर से जंगम, मनुष्य से देव तक सभी आलो- क्षणमात्र को भले ही वह होती सी दिखाई दे जाय कित हो रहे हैं।
किन्तु स्थायी रूप से आत्मा इनसे अलग होकर अभी तक महावीर को जैनधर्म के प्रवर्तक के नहीं रह सकती। रूप में जाना जाता था किन्तु यह मान्यता अब अमान्य प्रथम अहिंसा को ही लीजिये, क्या सदा हो चुकी है। महावीर जैनधर्म के चौबीसवें और हिंसक होकर मानव रह सकता है । जब-जब अन्तिम तीर्थङ्कर थे। वस्तुत: देखा जाये तो महा• अहिंसा की बात कही जाती है लोग उसे जैनों का वीर जैनियों के नहीं, दिगम्बरों के नहीं, श्वेताम्बरों एक सिद्धान्त मात्र मानकर उसकी उपेक्षा करते हैं। के नहीं, हिन्दू, मुसलमान और ईसाइयों के नहीं- किन्तु कल्पना कीजिए यदि अहिंसा जैन मात्र की वे किसी के भी नहीं थे और सबके थे। जैनियों रह जाये तो बाकी लोग हिंसक होंगें और हिंसक के भी 'दिगम्बरों के भी, श्वेताम्बरों के भी', हिन्दू होकर उनका जीवन कितना दूभर हो जायगा मुसलमान और ईसाइयों के भी, वे प्राणिमात्र के कितनी सामाजिक अव्यवस्था फैल जायगी, मानव
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