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बाईस फरवरी-श्रवणबेलगोल की छटा ही कलशों द्वारा प्रतिमा का न्हवन किया गया। ऐसा निराली थी। उस दिन भगवान बाहुबली की प्रतीत हो रहा था मानों हम क्षीर-समुह के किनारे विशाल भुवनमोहिनी प्रतिमा का महामस्तकाभिषेक आ खड़े हुये हैं। प्रतिमा पर उडेला हुअा क्षीर था। जिसमें सम्मिलित होने हेतु देश-विदेश से ऐसा लग रहा था मानों क्षीर-सागर में लहरे उठ लाखों यात्री आये थे। नगर में विशाल जनसमुदाय रही हों। प्रतिमा क्षीर के संयोग से श्वेत-धवल उमड़ रहा था उन चन्द्रवदन बाहुबली के पूनीत प्राभा बिखेर रही थी। तत्पश्चात् चन्दन, इक्षुग्स, दर्शनों हेतु । भगवान बाहुबली की एक सहस्रवर्ष केशर आदि से अभिषेक किया गया। प्रतिमा क्षण पुरातन प्रतिमा आज भी अपने चिर-युवा रूप में क्षण में नवीन वर्ष युक्त हो रही थी, बार बार स्थित है। भक्तगण श्रद्धा-विनय और उल्हास के नवीन आभा युक्त हो रही थी। जीवन में ऐसे साथ प्रतिमा का अभिषेक करने हेतु विध्यगिरि अवसर बार बार नहीं पाते । जीवन में वह दृश्य की ओर गतिमान थे और दर्शकगण चन्द्रगिरि की अपूर्व है और संभव है भविष्य में भी ऐसा सुयोग पोर।
शायद ही प्राप्त हो, न भूतो न भविष्यति । जीवन दुन्दुभि-ध्वनि व जयघोषों के मध्य प्रारंभ में कृत कृत्य हुआ बाहुबली के चरण-सान्निध्य में । 1008 जलकलशों द्वारा प्रतिमा का अभिषेक किया मन चाहता है जीवन में इन चरणों का सान्निध्य गया। भक्त अपनी श्रद्धा उडेल रहे थे। एक ओर पुनः पुनः प्राप्त होता रहे। प्रतिमा की मनोज्ञता साधू-साध्वी संघ विराजमान था, दूसरी ओर पारणामा म निमलता ला रहा था जिसस नयन सम्मानीय अतिथिगण व दर्शकगण बैठे थे और सजल हो उठे और मुख से निकल रहा थाअभिषेक के मनोहारी-अविस्मरणीय दृश्य का प्रानन्द ले रहे थे। जल-कलश के पश्चात क्षीर- "तं गोमटेशं पणवामि णिच्यं"
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