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प्राचीनकाल में विद्यमान था। विविध तीर्थ-कल्प एक दूसरे प्रायागपट्ट के लेख के अनुसार (चतुरशीति महातीर्थ-संग्रह-कल्प) में कथित है कि लवण शोभिका नाम की गणिका की पुत्री 'वसु' ने 'यमुना-तट' पर भगवान अनन्तनाथ एवं नेमिनाथ इस पायागपट्ट का दान किया था। इस पर स्तूप के मन्दिर थे । श्री सिद्धसेन सरि (12-13 वी. तथा वेदिकानों सहित तोरणद्वार बना हुआ है । श.) रचित 'सकलतीर्थ-स्तोत्र' में वर्णित है कि- यह पायागपट्ट ईसा की दूसरी शताब्दी का अनुमथरा नगर में श्री पार्श्वनाथ और नेमिनाथ भग- मान किया जाता है । लेख छह पंक्तियों में हैं:वान के मन्दिर थे।
1. नमो आरहतो वध मानस दण्दाये गणिका । जैन-पूजा पद्धति में प्रतीकों का पूर्व स्थान है। प्रतिमानों के निर्माण से पूर्व प्रतीक ही पूजे जाते 2. ये लेणशोभिकायेचितु शमण साविकाये। थे। प्रतीकों में पायाग पड़ों का प्रथम स्थान था,
3. नादाये गणिकाये वासये अरहता देविकुला । अन्य प्रतीकों में धर्मचक्र स्तुप, त्रिरत्न चैत्य स्तम्भ चैत्यवृक्ष, सिद्धार्थ वृक्ष, पूर्णघट, श्रीवत्स, शराब
प्रायगसमां प्रपा शीला पटा पतिष्ठापि तं सम्पुट, पुष्प पात्र. पुष्प पडलग, स्वस्तिक, मत्स्य
निगमा। युग्म और भद्रासन ।
5. ना अरहतायतने स (ह) मातरे भगिनियेधितरे प्रायागपट्ट एक चौकोर शिला पट्ट होता है, पत्रेण । उस पर मध्य में तीर्थकर-प्रतिमा का चित्रण होता
6. सविन च परिजनेन अरहत पुजाये। है। प्रतिमा के चित्रण के चारों ओर स्वस्तिक, 6. नन्द्यावर्त, श्री वत्स, भद्रासन, वर्धमानक्य, मंगलघट,
अर्थात्-अर्हत वर्धमान को नमस्कार हो । दर्पण, और मत्स्य-युगल अंकित रहते है । ये चिन्ह
श्रमणों की उपासिका (श्रविका) गणिका नन्दा, (प्रतीक) प्रष्ट मंगल के नाम से प्रख्यात हैं। एक
गणिका नन्दा की बेटी 'वासा', लेणशोभिका ने परपायागपट्ट पर पाठ दिशामों में पाठ नर्तकियां
हन्तों की पूजा के लिये व्यापारियों के अहत नत्य करती उकेरी गयी हैं, वेदिका सहित तोरण
मन्दिर में अपनी मां, अपनी बहन, अपनी पुत्री, और अलंकरण अंकित हैं । कुछ प्रायागपट्टों पर
अपने पुत्र के साथ और अपने सम्पूर्ण परिजनों के ब्राह्मी लिपी में लेख भी खुदे हैं। लेखों से ज्ञात
साथ मिलकर वेदी एक पूजा-गृह, एक कुण्ड और होता है कि-ये पूजा के उद्देश्य से स्थापित किये पाषाणासन निर्माण कराया । (जैन शिलालेख गये थे।
संग्रह. भाग 2 पृष्ठ 15)। 'मथुरा' से कुषाण-कालीन कई मायागपट्ट
कंकाली टीले से प्राप्त एक (दूसरे) शिलापट्ट पर मिले हैं । एक पूर्ण पायागपट्ट है और दूसरा कोने
जो संवत् 72 का ब्राह्मी लेख प्रकित है-इसके से खण्डित है जिस पर तीर्थंकर प्रतिमा अंकित है।
अनुसार स्वामी महाक्षत्रप शोडास (ई. पू. 80पर विशेष महत्वपूर्ण है। समूचेवाले पर जन स्तूप, 50) के राज्य काल में जैन मुनि की शिष्या अमोउसका तोरणद्वार, सोपान-मार्ग और दो चैत्य-स्तम्भ
हिनी ने जैन आयागपत्र की स्थापना की। लेख इस कुरेदे है । क्रमशः धर्म-चक्र और सिंह की प्राकृति ।
प्रकार चार पंक्तियों में है:खुदी हैं । सिंह ती. महावीर स्वामी का लांछन
1. नम अरहतो वर्धमानस ।
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