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महिमा गाई गयी है और उस धर्म के स्वीकृत सिद्धान्तों पूरा कार्य नहीं हो सका है। फिर भी जितनी संख्या के आधार पर ही जीवन बिताने का उपदेश दिया में अपभ्रशं साहित्य सामने आया है वह अपने प्राप गया हैं । परन्तु इस कारण से इन पुस्तकों का में महत्वपूर्ण हैं। डा० देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने महत्व कम नहीं हो जाता। परवर्ती हिन्दी साहित्य अपभ्रंश के 150 कवियों की तीन सौ रचनाओं के काव्य रूप से अध्ययन करने में ये पुस्तकें बहुत और विभिन्न भण्डारों में संग्रहीत उनकी एक सहस्त्र सहायक हैं।"
प्रतियों का विवरण संकलित किया है। साथ ही में
इन्होंने अपभ्रंश भाषा से सम्बन्धित और प्रकाशित डा० द्विवेदी जी की उक्त धारणा के पश्चात सामग्री का उल्लेख "अपभ्रश भाषा और साहित्य अपभ्रश साहित्य की ओर विद्वानों का और अधिक
की शोध प्रवृत्तियां" पुस्तक में किया है । ध्यान जाने लगा और सर्व प्रथम इतिहास के रूप
इधर विश्वविद्यालयों में अपभ्रंश साहित्य पर । में डा० हरिवंश पोछा ने "अपभ्रंश साहित्य" जो शोध कार्य हो रहा है इसकी गति बहुत ही शीर्षक से शोध कार्य किया और पामेर शास्त्र
धीमी हैं । इसलिए अपभ्रश साहित्य पर शोध कार्य भण्डार के प्रशस्ति संग्रह को ही अपनी खोज का
के लिये विशाल क्षेत्र शोधार्थियों के समक्ष पडा मुख्य आधार बनाया। यही नहीं डा० रामसिंह।
हुमा है । अभी तो अधिकांश उपलब्ध कृतियों का तोमर, डा० देवेन्द्र कुमार इन्दौर, डा० देवेन्द्र कुमार
सामान्य अध्ययन भी नहीं हो सका हैं क्योंकि जो नीमच, एवं पं० परमानन्द शास्त्री देहली एवं डा०
कुछ अध्ययन सामने पाया है वह सब प्रायः ग्रंथ नेमीचन्द शास्त्री, डा० राजाराम जैन ने अपभ्रंश
प्रशस्तियों के आधार पर लिखा हुआ है। अपभ्रंश साहित्य को प्रकाश में लाना अपने जीवन का
साहित्य चरित प्रधान साहित्य है । उसमें अधिकांश मुख्य लक्ष्य बनाया। और समय समय पर अपभ्रंश
रचनाएं नायक के समग्र जीवन को प्रस्तुत करती हैं कृतियों पर लेख लिखकर विश्वविद्यालयों में शोध
इसलिये उसमें प्रबन्ध काव्य अधिक है खण्ड काव्य छात्रों का इस ओर ध्यान आकृष्ट किया। अब तक
कम हैं। 8वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक अपभ्रश की जिन कृतियों का प्रकाशन हो चुका है
अपभ्रश में साहित्य निर्माण की जो धारा बही और उनमें महा कवि पुष्पदंत के महापुराण, जण्सहर उसमें महाकवि स्वयम्भू, पुष्पदंत, वीर, नयनन्दि, चरिय, कुमार चरिय, स्वयूभू का पउमचरिय, वीर
धवल, धनलाल, गरिगदेवसेन, यशकीर्ति एवं रइधू का जम्बू सामिचरिउ, धनलाल का भवियन्तचरिउ,
जैसे महाकवि हए जिनके काव्यों की तुलना, किसी अमरकीति का छकम्मोपएस । महाकवि रइधू की भी अन्य भाषा के काव्यों से की जा सकती है लेकिन रइधू ग्रंथावली आदि के नाम उल्लेखनीय है । ये अभी तक इन महाकवियों में से 2-3 को छोड़कर सभा अपभ्र श भाषा का उच्च स्तराय रचनाय हशेष का अभी पूरा मूल्यांकन भी नहीं हो पाया जिनके अध्ययन एवं मनन से भारतीय संस्कृति एवं में विशेषतः श्रमण संस्कृति का परिज्ञान होता है । अपभ्रंश साहित्य एवं काव्यों की विशाल संख्या को अभी तो हम प्रशस्ति संग्रहों के आधार पर देखते हुए ये सभी प्रकाशन आटे में नमक बराबर उनकी कृतियों के नाम मात्र जान सके हैं । इसलिये हैं । वास्तव में देखा जावे तो अपभ्रंश भाषा की अपभ्रंश साहित्य में शोधार्थियों के लिये विपुल क्षेत्र कृतियों का अभी तो पूरा सर्वे भी नहीं हो सका हैं पड़ा हुआ है जिनमें कवियों का विस्तृत जीवन वृत्त क्योंकि राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं इनका काव्य निर्माण की दृष्टि से मूल्यांकन, अन्य देहली के शास्त्र भण्डारों की सूचीकरण का अभी कवियों से तुलनात्मक अध्ययन उनके काव्यों का
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