Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1981
Author(s): Gyanchand Biltiwala
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 225
________________ 2. गृहस्थ अपना आत्म कल्याण करते हुए ही संस्थाओं के पास लाखों रुपये का मुद्रित साहित्य अपने न्यायीपार्जित धन का ज्ञान-प्रचार, पात्र व पड़ा हुआ है, वह बिकता नहीं है। अगर वह दीन दुखी की सहायता एवं आवश्यकतानुसार बिक जाय तो दो लाभ हों, एक तो उस साहित्य की स्थापना-संरक्षण प्रादि सत्कार्यों में उपयोग का उपयोग हों एवं दूसरे अन्य साहित्य और प्रकाश करें इसी से जैन धर्म की प्रभावना होगी। गाजे में आवे । बाजे, हाथी घोड़े, हेलीकोप्टरों के प्रदर्शन से कोई टोडरमल स्मारक भवन के प्रभावना प्रेमीप्रभावना नहीं होती। सम्भव है आज भी कूछ । लोग इनसे प्रभावित हो सकते हैं किन्तु उनकी । __ कर्मठ का र्यकर्ताओं ने बाहुबलि महामस्तकाभिषेक के अवसर पर बिक्री के लिए लाखों रुपये का संख्या नगण्य ही होगी जब कि इससे कुप्रभावना साहित्य विशेषतौर पर प्रकाशित कराया, किन्तु अधिक होगी। वहां केवल बीस हजार रुपये का साहित्य बिका। 3. ज्ञान प्रचार में भी यह देखना चाहिये कि इससे ज्यादा खर्च तो वहां की व्यवस्था में ही हो वह जैन परम्परा एवं सिद्धान्त के अनुरूप हो। गया होगा। इस मेले में समस्त जैन समाज का यदि उससे विपरीत हा तो धर्म प्रचार के स्थान 100 करोड़ रुपये खर्च हुअा होगा। और वहां पर भ्रम प्रचार अधिक होगा। अभी lllustrated केवल 20 हजार रुपये का साहित्य बिके, यह Weekly (15-2-81) में लिखा है कि चामुण्डराय विचारणीय बात है। ने दूध, दही, शहद के हजारों कलशों से बाहबली का अभिषेक किया। शहद ? जैसे अखाद्य पदार्थ अतः प्रत्येक साधु एवं गृहस्थ का कर्तव्य है से अभिषेक करने के कथन से भ्रम प्रचार होगा कि वह अपना आत्म कल्याण करते हुए यथा या नहीं ? पाठक विचार करें। अतः प्रकाशित शक्ति औरों के अज्ञान को दूर कर जैन शासन अप्रकाशित साहित्य की विद्वानों द्वारा जांच भी की प्रभावना में योगदान देते हुए मोक्ष मार्ग में होनी चाहिये कि उनमें जैन सिद्धान्त एवं परम्परा आगे बढ़े एवं बाहरी अनावश्यक प्रदर्शनों से दूर के विरूद्ध तो नहीं लिखा गया हो । रहे । उक्त सारे विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि 4. उदार मना साहु शांतिप्रसादजी, ब्र० जीव- मोक्ष मार्ग में मिठाई, हाथी, घोड़ों, हेलीकोपटरों राजजी आदि ने आज के युग की आवश्यकतानुसार से पूष्प वर्षा, बाजा-गाजा आदि प्रदर्शनों से प्रभाजैन साहित्य को सुसंपादित रूप से प्रकाशित कराने वना मान्य नहीं है अोर न उनका प्रभाव, यदि की महान योजना बनाई थी । इन दोनों की कुछ हो भी तो, अस्थायी होता है । जब कि ज्ञान संस्थानों से अनेक अलभ्य ग्रन्थ प्रकाशित होकर का प्रभाव स्थायी होता है जैसे भगवान महावीर सुलभ हो गए। आज नई पीढ़ी के धनिकों का के ज्ञान से गौतम एवं समयानुसार से श्री कानजी कर्तव्य है कि वे इन ग्रन्थों का अधिकाधिक प्रचार स्वामी प्रभावित हए और उन्होंने न केवल अपना करे ताकि नए-नए प्रकाशन और हों। आज दोनों अपितु अन्य लाखों का कल्याण किया । . . 4/16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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