Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1981
Author(s): Gyanchand Biltiwala
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 251
________________ भगवान गोम्मटेश्वर का महामस्तकाभिषेक तथा संत समागम और वैयावृत्त्य योगेन्द्रकुमार जैन AMARIA लेख बताता है कि महामस्तकाभिषेक के इस पूण्य अवसर ने नवयुवकों को श्रमण परम्परा के दीर्घ इतिहास में अन्तदृष्टि प्रदान की है। लेखक ने वहां आये मुनिजनों की वैयावत्ति भी की है और वह समाज का उस और ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं । -सम्पादक रत्नत्रय के महान् साधक प्राचार्य भद्रबाहु मुनि कम मिलता है। कन्नड़ कवि शिवकोट्याचार्य ने श्रवणबेलगोला के संस्थापक हैं। इ. स. 600 के प्राचार्य भद्रबाहु मुनि के जीवन का विस्तृत वर्णन लगभग के दो शिलालेखों से ज्ञात होता है कि सम्राट किया है। चन्द्रगुप्त और उनके गुरू प्रा. भद्रबाहु मुनि के प्राग बाल ब्रह्मचारी प्राचार्य भद्रबाहु मुनि को जो मन से यह अज्ञात कोना धर्मनिष्ठ संतों का प्रिय पारा- श्रतकेवली थे मनिसंघ की चर्या व साधना की धना स्थल हुअा होगा। चन्द्रगिरि जिसका एक प्राचीन देखभाल का दायित्व सौंप कर गोवर्धन मुनि ने नाम 'कलबप्पु' पहाड़ भी है ई० पू० 3री और समाधिमरण प्राप्त कर लिया था। ग्राम में एक ई० सं० 12वीं सदियों के बीच श्रवणबेलगोला के । रात, शहर में पांच रात, जंगल में दस रात बिताने इतिहास पर छा गया था। इस प्रदेश को, जो ('ग्रामेकरात्रं, नगरे पंचरात्रं, अरण्यां दशरात्रं') एक घना जगल था, रहने योग्य बनाने के प्रवर्तक __ के मुनि नियम के अनुसार वे ग्राम-ग्राम, नगरप्रा० भद्रबाह मुनि हैं तथा 'जिन' धर्म के दक्षिण नगर में विहार करके अपने मूनि समुदाय के साथ में हुए प्रसार के आधार भी है। अपने शिष्य । उज्जियिनी नगरी पहुंचे और नगर के बाहर के गरणों के साथ 'कलबप्पू' पहाड़ पर आकर उन्होंने उद्यान में ठहर गये। प्राचार्य भद्रबाहु मुनिराज समाधिमरण प्राप्त किया जिससे यह पर्वत के के आगमन की खबर सुनकर सम्राट चन्द्रगुप्त पवित्र बन गया, वहाँ का समूचा वातावरण उनके दर्शनों के लिये आये और मुनि से प्रभावित शुभ परमाणुओं से व्याप्त हो गया। इनसे शुरू न होकर, धर्मोपदेश सूनकर उनने भी श्रावक व्रत के की गयी समाधिमरण की परम्परा को सैकड़ो सन्यासिनियों, श्रावक-श्राविकाओं ने जारी रखा। लेकिन इस महान व्यक्ति के बारे में उल्लेख बहुत एक दिन प्राचार्य भद्रबाहु पाहार के लिये 5/14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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