Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1981
Author(s): Gyanchand Biltiwala
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 253
________________ सिद्ध व अरहंत देव की परम्परा के निर्वाहक उनके समागम से उपस्थित भक्त-जन समुदाय कृत साधु ही हैं । प्राचार्य (गुरू) और भगवान गोम्मटे- कृत्य हो रहा था। इस काल में इतने दिगम्बर श्वर इसके जीते जागते उदाहरण हैं; जय धवला साधु-साध्वी के संघ का एक स्थान पर एकत्रित और महाधवला जैसी अनुपम कृतियाँ हैं । जहाँ होने का यह अपूर्व अवसर था ओर भक्त श्रावक कला और शिल्प का सम्बन्ध है भारत का दक्षिण जन सब की भक्ति बड़े मनोयोग व भाव विभोर प्रदेश अद्वितीय है । वह उसकी खान है, वहाँ उसका होकर कर रहे थे। वे अपने आपको धन्य समझ अनमोल खजाना है। श्रवणबेलगोल तो इन सबमें रहे थे । इतने बड़े संत समुदाय के साथ उनका सिरमौर है, चिर-स्मरणीय है। भारत में ऐसे समागम हो रहा है और इस पुण्य अवसर को स्थान बहुत कम हैं-जहाँ पर शक्ति, शील, श्रम, वह अपने हाथ से जाने नहीं देना चाह रहे थे। श्रुत, सौंदर्य आदि श्रमण परम्पराओं के तत्वों का इस अवसर पर उपस्थित होने के लिये लगभग इतना संतुलित समन्वय प्रकट हुआ हो । गोम्मटे सभी सन्तों को स्वयं बहत परिश्रम करना पड़ा श्वर को नि शल्य करने में ब्राह्मी एवं सुन्दरी की था। उन्हें एक दिन में 20-20 मील तक चलना गाथा, गोम्मटेश्वर की विशाल प्रतिमा के निर्माण पड़ा और कभी-2 तो बिना आहार के ही चलना में माता काललादेवी की व्रत साधना, अरिष्टनेमि . के स्थितिकरण में उसकी पूज्य माता, प्रथम महा पड़ा। उन्हें कैसी भी तकलीफ क्यों न सहनी पड़ी मस्तकाभिषेक की सफलता में बुढ़िया गुल्लिका . हो लेकिन वे उन सभी तरह की विपत्तियों को यज्जी की भूमिकाएं, उनकी गाथाएं अब भी स्मति सहते हुये जल्दी से जल्दी इस शुभ अवसर पर पटल पर सहसा प्रतिविम्बित हो उठती हैं। उपस्थित होना चाहते थे और समय पर पहुंचने की मानवता एक तरह से श्रव गबेलगोल की सभी को उत्सुकता थी। यह महामस्तकाभिषेक सभी को इतना आकर्षित कर रहा कि उसके इस पावन भमि में बिना किसी भेदभाव के सामने सारी समस्याएं गौण हो रही थी। अर्जुन बंद्धमूल हैं। की चिड़िया की प्रांख की तरह सभी का एक लक्ष्य विश्व के इतिहास में ऐसी विशाल अन्य कोई था-सहस्राब्दि महामस्तकाभिषेक दर्शन । प्रतिमा देखने में नहीं पायी जिसके साथ नर-नारी दोनों की गरिमा, इतने वैभव के साथ जूडी हो। 20-20 मील बिना आहार के चलते रहने गोम्मटेश्वर जहाँ एक अोर शक्ति व स्वस्ति के से साधु-संतों को कई रोगों ने ग्रसित कर लियाप्रतिबिम्ब हैं वहीं ---नारी की शक्ति महान् है, वह जिसका मूल कारण थकान था; निराहार अवस्था प्रेरणा की स्रोत है और पुरुष की त्रुटियों के में ऊष्मा की वृद्धि थी; ये ज्यादा चलने से व शोधन में उनका महान योगदान है। आहार नियमित न होने से उत्पन्न गर्मी द्वारा हए थे। इस सहस्त्राब्दि महामस्तकाभिषेक के अवसर विहार व महोत्सव के कारण सन्तों के पर प्रमुखतः तीन प्राचार्य ससंघ उपस्थित थे- अध्ययन-मनन-चिन्तन में पाए अन्तर के कारण आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज, वात्सल्य अपने मानसिक भोजन की कमी अनुभव कर मूर्ति प्राचार्य श्री विमल सागर जी महाराज एवं रहे थे। स्वास्थ्य के बारे में भी स्वयं भी सिद्धांत चक्रवर्ती एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्दजी कुछ नहीं समझ पाते थे कि उन्हें क्या तकलीफ तथा अन्य मुनि संघों के साधु-साध्वी उपस्थित थे। क्यों कर हो रही है ? स्वाध्याय की कमी व 5/16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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