Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1981
Author(s): Gyanchand Biltiwala
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 230
________________ कुछ हैं दो चिथड़ों के 'क्षुल्लक', 'एलक' एक वसन का योग । पाया केवल ज्ञान आपने, नाश कर्म घातिया चार । बने विज्ञ तुम केवल ज्ञानी, गई कुमति आया सुविचार | पर्दा हटा मोह का तत्क्षण, फैला केवल ज्ञाना लोक । उपदेशों का पान किया भवि, सारी दुनियां हुई अशोक । है यह कलियुग का कालापन, कालेपन से घिरे केवल ज्ञान मिला न हमको, हुए । किन्तु केवलाज्ञान लिए । भाप, तेल, विद्य ुत परमाणु, ये सब उसके रूप अनेक । किए अविष्कृत शस्त्र अनेकों, घातक रहे एक से एक । क्या शोभा प्रभु समोशरण की, छत्र चँवर भामण्डल रूप | निज में रत निर्लिप्त विभव में, मेरे मन्दिर को प्रभु देखो, रत्न जटित भामण्डल छत्र । वैभव का जो अनुपम संग्रह, अनगिनते सुन्दरतम चित्र । केवल मूर्ति तुम्हारी प्रभुवर, है विरक्त अपने में लीन । पर मन्दिर का कोना कोना, देखो, वैभव में तल्लीन । सामायिक चिंतन अरु अध्ययन, हो जाता है किंचित पर । Jain Education International हर संध्या को सजति वीरणा, उठते रहते नूपुर स्वर 1 लेकर चंदन, चांवल, श्रीफल, सजा थाल का नव नैवेद्य । दो पूजा के प्रतिफल में प्रभु, संतति, दौलत, शक्ति प्रभेद्य । आठों कर्म नाश कर तुमने, मोक्ष लक्ष्मी ली सत्वर । क्षण भर में लोकांत विराजे, आप विराजे जगत-स्वरूप | बूतों से हम विरत रहेंगे, पाया सिद्ध लोक प्रभुवर । काल चक्र का ऐसा फेरा । दुखमां और पांचवां काल । मोक्ष नहीं पा सकते मुनि तक, हम गृहस्थों का कौन हवाल | दृढ़ संकल्प किया है हमने, हो निषिद्ध मोक्ष का पाना, जिस पर हम चल सकते हैं । 4/21 धन से बल से और पाप से, पर लक्ष्मी पा सकते हैं । हम लक्ष्मी को जोड़ेंगे । सफल पंच कल्याणक उत्सव, इस पथ को न छोड़ेंगे । For Private & Personal Use Only सारी दुनियां जाए भाड़ में, हुआ सफल अपना जीवन । मेरे घर में पाँच पंच हैं, निज समृद्धि बढ़े हर दिन । मात पिता जो आश्रित मेरे, मैं, पत्नि, मेरी संतान । हो जावे उनका कल्याण । शा० उ० म० शाहपुर (सागर) www.jainelibrary.org

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