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अध्ययन प्रस्तुत किया। इधर सुप्रसिद्ध साहित्य सेवी मेरे उक्त इतिहास प्रस्तुत करने का अर्थ स्वयं श्री अमरचन्द जी नाहटा ने जैन हिन्दी साहित्य पर के कार्य पर प्रकाश डालने का नहीं है लेकिन अपने पचासों लेखों में विस्तृत प्रकाश डाला और विद्वानों को हिन्दी जैन साहित्य की विशालता के उससे भी हिन्दी जैन साहित्य के प्रति विद्वानों का दर्शन कराने का है। ध्यान प्राषित करने में सफलता मिली। श्री महावीर क्षेत्र की ओर से ही राजस्थान के
हिन्दी जैन साहित्य की विशालता में किसी जैन सन्त एवं महाकवि दोलतराम कासलीवाल को सन्देह नहीं हो सकता लेकिन प्रश्न उठता है व्यक्तित्व एवं कृतित्व इन दो पुस्तकों के प्रकाशन से उसके मूल्यांकन एवं प्रकाशन का। इसके अतिरिक्त हिन्दी जैन साहित्य की विशालता को देखने का यह साहित्य किसी विधा विशेष पर लिखा हया नहीं विद्वानों को अवसर प्राप्त हया और विश्वविद्यालयों है किन्तु वह साहित्य के विविध रूपों में निबद्ध है में जैन हिन्दी साहित्य एवं कवियों पर पी० एच० जो अनुसंधान के महत्वपूर्ण विषय हो सकते हैं । डी० की उपाधि के लिये विषय स्वीकृत होने लगें। यह साहित्य स्तोत्र, पाड, संग्रह, कथा, रासो, रास, अब तक महाकवि बनारसीदास, भूधरदास, बुधजन, पूजा, मंगल जयमाल, प्रश्नोत्तरी, मंत्र, अष्टक, भगवतीदास, ब्रह्म जिनदास जैसे कुछ कवियों पर सार, समुच्चय, वर्णन, सुभाषित, चौपई, त्रिसानी, शोध प्रबन्ध विश्वविद्यालयों द्वारा स्वीकृत हो चुके जकडी, व्याहलो, बधावा, विनती, पत्री, आरती, हैं । लेकिन हिन्दी जैन साहित्य की विशालता को बोल, चरचर, विचार, बात, गीत, लीला, चरित्र, देखते हुए हमारे प्रयास पाटे में नमक बराबर है। छंद, छप्पय, भावना, विनोद, काव्य, नाटक,
प्रशस्ति, धमाल, चौठालिया, चौमासिया, बारासन् 1977 में जयपुर में सम्पूर्ण हिन्दी जैन मासा, बटोई, बेलि, हिंडोतणा, चूनडी, सन्झाय, साहित्य को 20 भागों में प्रकाशित करने के लिये बाराखडी, भक्ति, वन्दना, पच्चीसी, बत्तीसी, श्री महावीर ग्रन्थ अकादमी की स्थापना हिन्दी पचासा, बावनी, सतसई, सामायिक, सहस्यनोम जैन साहित्य के प्रकाशन के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण नामावली, गुरुवावली, स्तवन, संबोधन, मोडलो, कदम हैं जिसकी सफलता के लिये सभी विद्वानों
आदि विभिन्न रूपों में मिलता है। इन विविध का सहयोग अपेक्षित हैं। अकादमी की ओर से साहित्य रूपों में किसका कब प्रारम्भ हुआ और करीब 500 जैन हिन्दी कवियों के व्यक्तित्व एवं किस प्रकार विकास और विस्तार हुआ ये शोध कृतित्व पर प्रकाश डाला जावेगा तथा 50 प्रमुख के लिये रोचक विषय हो सकते हैं और इन सबकी कवियों का विस्तृत अध्ययन एवं उनकी कृतियों का सामग्री जैन ग्रंथागारों में मिल सकती हैं। प्रकाशन किया जावेगा। अकादमी की ओर से अब तक प्रकाशित तीन भाग-महाकवि ब्रह्म राय
विभिन्न विषयों के अतिरिक्त अभी तो सैकड़ों मल्ल एवं त्रिभुवनकीति, कविवर बूचराज एवं उनके ऐसे कवि हैं जो विद्वानों के लिये अज्ञात बने हुए समकालीन कवि तथा महाकवि ब्रह्म जिनदास- हैं । ऐसे कवि 14 वीं शताब्दि से लेकर 19वीं व्यक्तित्व एवं कृतित्व-प्रकाशित हो चुके हैं जिनका शताब्दि तक इतनी अधिक संख्या में हैं कि यहां सभी ओर से स्वागत हुआ है । अकादमी का चतुर्थ पर उनका नाम मात्र उल्लेख करना भी सम्भव भाग भट्टारक रत्न कीति एव कुमुन्दचन्द होगा जिसमें नहीं हैं। सबसे अधिक कवि 17 वीं, 18 वीं एवं 70 अन्य कवियों का भी परिचय रहेगा।
19 वीं शताब्दि में हए। इसके अतिरिक्त जितने
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