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ने भी इसी स्थान को अपना स्थायी निवास बना सितम्बर 1970 में मेला भूमि के विवाद में उसने लिया था। वे अब हमारे बीच नहीं है परन्तु उल्लेखनीय कार्य किया था। अनेकों ने सत्याग्रह उनकी स्मृति चिरकाल तक बनी रहेगी। इनके कर जेल यात्रा तक की थी और विजय श्री प्राप्त अतिरिक्त मोहल्ला चन्द्रप्रभु में दिग० जैन पाठशाला की थी। उन दिनों का जोश देखते ही बनता था। के संस्थापक पं० धुरीलाल जी शास्त्री, धर्मरत्न ऐसी जीवटता का उदाहरण शायद ही अन्यत्र पं० लालारामजी शास्त्री कुशल लेखक कवि व मिले । वक्ता नई बस्ती स्थित जैन मन्दिर के प्रणेता पं० कुजबिहारीलाल जी शास्त्री, श्री चन्द्रप्रभु जैन मंदिर-मूर्तियां यहां का जैन समाज जहां मन्दिर में नित्य प्रति शास्त्र प्रवचनकार पं० ज्योति संस्कृति और उद्योग को अपना अनुपम योग देरहा प्रसाद जी तथा पं० सुमतिचन्द जी शास्त्री यहां हो है, वहीं वह जैन कला को भी विकसित कर अपना
चुके हैं। वर्तमान में पं० श्यामसुन्दरलाल जी जैसे संरक्षण दे रहा है। यहां लगभग दो दर्जन विशाल विद्वान और श्री नरेन्द्रप्रकाश जी जैसे कुशल शिक्षक जैन मन्दिर हैं। इनमें जो मूर्तियां विराजमान हैं लेखक व वक्ता, पाण्डे श्री निवास जी सरलस्वभावी उनमें कई अतिशय क्षेत्र चन्द्रवाड़ की चतुर्थकालीन पं० रामस्वरूप जी, पं० कुजीलालजी, पं० जगरूप भव्य मूर्तियां भी सुरक्षित हैं। यहां के चन्द्रप्रभु सहाय जी जैन एम.ए., साहित्यरत्न और प्रो० मन्दिर का अपना अलग ही इतिहास है। विक्रम पी० सी० जैन यहां की कीर्ति को बनाये हुए हैं। सं० 1052 में बसा यहां से दक्षिण में चार मील
दूर यमुना किनारे किसी समय एक समृद्ध राज्य कर्मठ कार्यकर्ता भी–सन्तों और विद्वानों था, चन्द्रवाड़। वहां के राजा चन्द्रपाल पल्लीवाल के अतिरिक्त यहां और भी कई जैन रत्न हो चुके जैन थे। ई. सं. 1194 में शहाबुद्दीन गौरी ने हैं। उनमें मृत्यु की जोखिम से खेलने वाले अपूर्व आक्रमण कर उसे ध्वस्त कर दिया था। जिसके सेवाभावी हकीम श्री नोबतराय जी, दरिद्रों के अवशेष आज भी अपने पुराने वैभव की याद दिला मसीहा स्वाध्याय प्रेमी सेठ अमृतलालजी रानी वाले रहे हैं। उस नगर के किले के भीतर जिनालय में राष्ट्रवादी बा० हजारीलाल जी. शिक्षा प्रेमी मुनीम स्फटिक मरिण की एक हाथ ऊंची 1008 श्री जयन्तीप्रसाद जी, ला. खूबचन्दजी, हकीम बाबूराम चन्द्रप्रभु भगवान की अमूल्य अलौकिक-सातिशय जी, अहिंसा प्रेमी सेठ मनोहरलालजी, धर्माभिमुख पद्मासन प्रतिमा थी। आतताइयों से बचाने के सेठ हुलासराय जी, कर्मठ कार्यकर्ता श्री कुन्दनलाल लिए उसे यमुना नदी में पधरा दिया गया जी, भा. हरिप्रसाद जी, बा. सुनहरीलाल जी, था। कालान्तर में वह वहां से निकाली गई जो श्री केसरमल जी खरिया, भू पू चेयरमैन हकीम एक चमत्कारिक घटना थी । वही मूर्ति आज गुलजारीलाल जौ और नगर के प्राण श्रावक चन्द्रप्रभू मन्दिर में विराजमान है। वह न केवल शिरोमणि सेठ छदामीलाल जी के नाम उल्लेखनीय इस नगर के जैनियों की श्रद्धा और उपासना का है। आज भी यह नगर कई कर्मठ समाज सेवियों से केन्द्र है, बल्कि देश के जैनियों का एक प्रमुख अलंकृत है । उनमें से कुछ हैं श्री विमलकुमार जी आकर्षण केन्द्र बना हुआ है। चरित्र चक्रवर्ती जैन, चन्द्रभान जी मुख्तार, श्री माणकचन्दजी वैद्य, तपोनिधि प्राचार्य 108 श्री शान्तिसागर जी महाअद्भुत जीवन्त के धनी हकीम प्रेमचन्द जी और, राज ने इस मूर्ति के दर्शन कर भाव विव्हल हो श्री प्रेमचन्द जी खरिया आदि । वास्तव में तो यहां कहा था "यह नगर धन्य है । भारत में इस प्रकार की सारी जैन समाज ही बड़ी कर्मठ है । अगस्त- की दूसरी मूर्ति नहीं है ।" यदि मैं कहू कि माज
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