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उत्तर भारत का एक आकर्षक जैन केन्द्र-फीरोजाबाद
प्रतापचन्द्र जैन
ई० सन 1566 में बसा अकबर कालीन एक और कलाकार आते हैं। उन दिनों की धार्मिक छोटा सा गांव, जहां पक्का कुआ तक नहीं था चेतना देखते ही बनती है। सम्मेलनों, समारोहों और जहां की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति और गोष्ठियों की धूम मचती है। यह मेला लगबंजारों के काफिलों के आने पर ही हो पाती थी, भग 150 वर्ष पुराना है, जो रामलीला ग्राउन्ड के अाज दिल्ली कानपुर रेल मार्ग एवं ग्रान्ड ट्रक रोड़ पास ही विशाल भूखण्ड पर लगता है और पाठ पर आगरा से 28 मील फिरोजाबाद के नाम से दिन चलता है। इसका शुभारम्भ कलकत्ता वाले भारत के मानचित्र पर एक दर्शनीय उद्योग एवं श्री हरसहाय हुलासरामजी ने किया था । सांस्कृतिक नगरी के रूप में दैदीप्यमान है। अब तो वह आगरा जनपद ही नहीं, सम्पूर्ण उत्तर इस मेले के अतिरिक्त और भी कई भव्य भारत के प्रमुख नगरों में एक है। यहां डेढ़ हजार समारोहों का आयोजन किया जाता है। लघु से भी अधिक जैनियों के घर हैं। उनमें अग्रवाल,
'जिगों के घर हैं। उनमें अग्रवाल. धार्मिक गोष्ठियां भी होती रहती हैं। यह सब यहां पद्मावती पुरवाल, खरौना, पल्लीवाल और लमेंचू की जैन समाज की सम्पन्नता का द्योतक तो है ही प्रमुख हैं । फिरोजाबाद-आगरा रोड़ पर एक ताल उसकी धार्मिक अभिरुचि और चेतना का भी है, जिसे इसी वर्ष (1566 में) राजा टोडरमल ने परिचायक है। खुदवाया था। वह राजा का ताल के नाम से
संत विद्वानों की भूमि-यहां की भूमि को विख्यात है।
उद्योगपतियों और धनपतियों को जन्म देकर ही यहां का जैन सांस्कृतिक मेला अपनी सन्तोष नहीं हुआ, अनेकों सन्त भी यहां हुए हैं। गरिमा, शालीनता, सजधज और चहल पहल के परमपूज्य ब्रज गुलाल मुनिराज की यह तपो भूमि लिए सारे भारत में विख्यात है। वह यहां की है। मुनिश्रेष्ठ प्राचार्य 108 श्री महावीरकीतिजी शान है, जिसमें दूर दूर से हजारों जैन स्त्री-पुरुष महाराज इसी नगर की देन हैं। जैन विद्वानों की आते हैं और यहां के बन्धुत्व भाव से गद्गद हो सतत धारा भी यहां प्रवाहित होती रही है। अपने अपने घरों को लौटते हैं। बाहर के अनेक मन्दिरों में पण्डाल भी लगते हैं, जो इस मेले की जैनागम के निष्णात विद्वान, कुशल वक्ता और विशेषता है। इस मेले में यहां के जैनेतर समाज महान तार्किक पं० पन्नालालजी न्याय-दिवाकर का भी जी खोलकर अपना सहयोग प्रदान कार्य क्षेत्र होने का गौरव इसी नगरी को है । करता है। इस अवसर पर एक विराट प्रदर्शनी संस्कृत, व्याकरण, जैन दर्शन और न्याय के एकभी लगती है जिसमें दूर दूर के सैकड़ों व्यापारी · निष्ठ धुरंधर विद्वान पं० माणकचन्दजी न्यायतीर्थ
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