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किये हैं लेकिन क्या कोई विद्वान बंधु यह बताने की कृपा करेंगे कि उसका कौनसा ऐसा श्लोक हैं जो ताला तोड़ने की क्षमता रखता हो। यदि कोई महानुभाव अड़तालीस तो क्या, मंत्र द्वारा या श्लोक पाठ द्वारा पाँच-सात ताले भी तोड़ कर यह चमत्कार बता सकें तो वह महान प्रभावना होगी ।
गुजर
अपनी
करीब सौ सवासौ वर्ष पहिले राजस्थान के एक प्रमुख नगर में भट्टारकों की मंत्र शक्ति के चमत्कारों के विषय में कई किंवदंतियां प्रचलित थी। उनमें एक यह भी थी कि भट्टारक जी जब । पालकी में बैठ कर दरगाह के सामने से रहे थे तो दरगाह में बैठे एक पीर साहब ने करामात से भट्टारक जी के कमंडलु में मछलियाँ पैदा कर दीं, यह दिखाने के लिए कि ये कैसे अहिंसावादी हैं। इस पर भट्टारकजी ने मंत्र शक्ति के प्रभाव से कमंडलु को उलटा किया तो वे मछलियाँ फूलों में परिवर्तित हो गई। पीर साहब ने इस पर पैंतरा बदला जिससे पालकी उठाने वाले "भाईयों के पाँव जमीन पर चिपक गये। इस पर भट्टारक जी की पालकी उनकी मंत्र शक्ति के प्रभाव से बिना भोइयों के हवा में उड़ती हुई चली भट्टारक जी ने यह भी करामात दिखाई कि पीर साहब पेट के दर्द के मारे तड़फने लगे और उन्होंने आकर भट्टारक जी को सिर झुकाया तथा ताम्रपत्र अंकित किया कि आगे किसी जैन साधु या भट्टारक की सवारी दरगाह के धागे से बिना रोक टोक के गुजरेगी। भक्त लोग मंत्र शक्ति के चमत्कारों के विषय में इस कदर प्राश्वस्य थे तथा इसका वर्णन इतने तपाक से करते थे जैसे यह घटना उनकी आंखों के सामने घटित हुई हो । कई वर्ष पहिले मैने तत्कालीन भट्टारक जी से इम घटना का उल्लेख करते हुए उन्हें उक्त ताम्रपत्र
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दिखलाने के लिये निवेदन किया । इस पर भट्टारक जी महाराज बोले- "बाबू साहब, जिशा न आप सुणता माया हो, विज्ञान ही म्हे भी सुणता श्राया हाँ | जद म्हे ही बै ताम्रपात्र श्राँख्याँ से नहीं देख्या तो थाने कठाऊँ बतावाँ ।" (" जैसे आप सुनते श्राये हो वैसे ही हम भी सुनते प्राये हैं । जब हमने ही वे ताम्रपत्र घाँखों से नहीं देखे तो आपको कहीं से बतावें । )
शास्त्रीजी महोदय ने एक स्थल पर लिखा है कि "यदि जैन मंत्रों से धर्मायतनों और धार्मिक जनों की रक्षा होती है तो दूमरे मांत्रिकों की शरण में जाने के बजाय तो अपने मंत्रों की शरण क्यों न की जाये ?” दूसरे शब्दों में शास्ली जी स्वीकार करते है कि जैनेतर मंत्रों में भी शक्ति है ।
बम्बई के एक सुप्रसिद्ध अनुसंधान रत संस्थान ने कई वर्ष पहिले मांत्रिकों को ग्राहवान किया था कि वे जहरीले सर्पों से विष निकाल कर बंदर को उसका इंजैक्शन लगा कर मूर्छित करते हैं झौर मांत्रिक उस बंदर को अपनी मंत्रशक्ति से निर्विष किया। कर दें । लेकिन इसे किसी मांत्रिक ने स्वीकार नहीं
हम लोगों में अतिशय, चमत्कार, मंत्रशक्ति, व्यंतर जाति के देव आदि के विषय में कल्पित किंवदंतियाँ इस कदर भरी हुई हैं कि हम सहसा उन पर विश्वास कर बैठते हैं और यही कारण है कि जैनियों में भी पीरूलाल, मीरूलाल खाजूलाल, भैरूलाल, गणेशीलाल, बालावस्थ प्रादि व्यक्ति मिल सकते है जिनके बुजुर्गों ने किसी समय पीर साहब, मीर साहब, ख्वाजा साहब, भैरूजी, गणेशजी, बालाजी आदि की मिन्नत मानी थी । स्पष्ट ही यह जैन मान्यता के विपरीत है |
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