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जैन सिद्धान्त और हम
-प. राजकुमार शास्त्री नवाई
प्रसिद्ध समाज सेवी विद्वान की कलम से लिखा एक एक शब्द जैन सिद्धान्त की गरिमा को पाठक के हृदय में उकेरता है। पर हमारे युवक और युवतियां इससे बेखबर है । दोष हमारा ही है। हम उन्हें धार्मिक शिक्षा से संस्कारित करने हेतु क्या कर रहे है ? लेखक ने बड़े दर्द के साथ हमें हमारे कर्त्तव्य की याद दिलाई है. पर क्या हम अपने कर्तव्य को कुछ ठोस साकार रूप देंगे ?
प्र. सम्पादक
जैन धर्म एक विश्व कल्याण परक सर्वोदयी देवी देवताओं के समक्ष पशु बलि चढ़ाना अमानधर्म है। विश्व की सभी आर्थिक, राजनैतिक और वीय कृत्य की संज्ञा दी थी। सामाजिक समस्याए सुलझाने में पूर्ण सक्षम है। न इसमें हठवाद को स्थान है और न एकान्तवाद श्री ऋषदेव जो इस युग में प्रथम तीर्थकर थे। को। इसके सभी सिद्धान्त, तर्क शक्ति एवं प्रागम उनके योग व तपस्याधारण की भरि-भरि प्रशंसा से सम्मत हैं। इसके अधिकांश सिद्धान्त व मान्य- और गुणानुवाद श्रीमद्भागवतादि शास्त्रों में और ताये प्राधनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध व सही साबित वेदों में किया गया हैं। इन्हीं के परंपरा में 23 कर दिया है। यह हम ही नहीं, विश्व के सभी तीर्थकर हुये हैं। अन्तिम तीर्थकर भगवान महाबीर विचारकों एवं प्रबुद्ध विद्वानों ने एक मत से स्वी- 24 वें तीर्थकर तो अभी अभी ढाई हजार वर्ष पूर्व कार किया है। जैनधर्म के विषय में अनेकों पूर्ण ही हुए हैं, जिनका 2500 वां निर्वाण दिवस 5 विद्वान अपने अपने विचार प्रगट कर जैनधर्म की वर्ष पूर्व ही सारे देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने सार्वभौमिकता एवं सर्वोदयता और प्राचीनता मक्त और सभी वर्ग की जनता ने बिना भेद भाव के स्वर से मान ली हैं। (देखो जैनधर्म के सम्बन्ध में जिस श्रद्धा, भक्ति और लगन के साथ मनाया था, प्रजैन विद्वानों को सम्मतियां) विश्व में आज वह अभूत पूर्व ही था, जो अब ऐतिहासिक श्रृंखला समाजवाद, समन्वयता की आवश्यकता महसूस की में जुड़ गया है। जा रही है । जैनधर्माचार्यों ने उन्हें प्राज से लाखों वर्षों पहले अनेकान्तवाद, व अपरिग्रहवाद सिद्धान्तों अभी इसी वर्ष 1981 की 9 फरवरी से 15 का प्ररूपण कर उद्घोषित कर दिया था। इसी मार्च तक कर्नाटक राज्य स्थित श्रवणबेलगोला में तरह यज्ञों में पशुओं का होमना, धर्म के नाम पर अद्भुत विशाल अनोखी प्रशान्त मूर्ति (जिसे विश्व
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