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की स्थापना करते हैं । इन्द्र स्तुति करते हुए उनके संख्या 106(255) से सूचित होता है कि मायण्ण लिए लोकहितकारी, (लोगहियाग) लोक में प्रकाश- ने बेलगुल के गंग समुद्र नामक सरोवर की दो मान दीपक लोगपईवाणं, शरणदाता तरण- खण्डुग भूमि खरीद कर उसे गोम्मट स्वामी के ढयाणं, धर्म के उपदेशक धम्यदेसयाणं, धर्म के अष्टविध पूजन के लिए दान की । लेख संख्या नायक (धम्मनायगाणं), धर्म के सारथी (धम्म- 107 (256) के अनुसार चन्द्रमोलि की पत्नी तारहीणं) रागद्वेष के विजेता और दूसरों को प्राचलदेवी की प्रार्थना पर वीर बल्लाल नप ने जीतने वाले (जिणाणं, जावयारणं), स्वयं तिरने बेक्क नामक ग्राम का दान गोम्मट नाथ के पूजन वाले और दूसरों को तिराने वाले (तिन्नाणं, तार- के हेतु किया। लेख संख्या 137 (345) के .अनयाणं), स्वयं बोध प्राप्त और दूसरों को बोध देने सार होयसल वंशी नारसिंह के मन्त्री हुल्लराज ने वाले) बुद्धाणं, (बोहयारणं), स्वयं मुक्त और दूसरों मन्दिर की रक्षा के लिए सवणेरू ग्राम का दान को मुक्त करने वाले (मुत्ताणं, मोयगाणं) आदि किया। विशेषणों का प्रयोग करते हैं।
यह भूमि दान सब प्रकार के करों से मुक्त
करके दिया जाता था। लेख संख्या 84 (250) में श्रवणबेलगोला क्षेत्र के शिलालेखों से लोक
उल्लेख है कि बेलगूल मन्दिर की जमीन प्रादि कल्याण सम्बन्धी विविध कार्यों का पता चलता
बहुत दिनों से रहन थी। महाराजा चामराज है। इनमें मुख्य हैं --मन्दिर निर्माण, मूर्ति प्रतिष्ठा,
प्रोडेयर ने चेन्नल आदि रहनदारों को बुलाकर दानशाला, वाचनालय, मन्दिर के दरवाजे, परकोटे,
कहा कि तुम मन्दिरों की भूमि को मुक्त कर दो । सीढ़ियाँ, रंगशालाएँ, तालाब, कुण्ड, उद्यान, जीर्णो
हम तुम्हारा रुपया देते हैं । यह अलग बात है कि द्वार, पूजा, अभिषेक आदि । इन कार्यों के लिए
रहनदारों ने बिना कुछ लिए ही भूमि रहन से मुक्त दिए जाने वाले दान-भूमि, ग्राम व अन्य प्रकार की
कर दी । लेख संख्या 140 (352) से सूचित होता राशि प्रादि के लेख पर्याप्त संख्या में उत्कीर्ण हैं।
है कि आगे के लिए राजा ने ऐसी आज्ञा निकाल विभिन्न धर्माचार्यों और विद्वानों ने ग्रन्थ निर्माण
दी कि जो कोई स्थानक दान सम्पत्ति को रहन और ज्ञानदान के जो महान कार्य किये हैं, उनके
करेगा व जो महाजन ऐसी सम्पत्ति पर कर्ज देगा, उल्लेख भी यथाप्रसंग मिलते हैं।
वे दोनों समाज से बहिष्कृत समझे जावेंगे । जिस
राजा के समय में ऐसा कार्य हो उसे उसका न्याय जैन धर्म में दान का बड़ा महत्त्व है। गृहस्थ के
करना चाहिए। जो कोई इस शासन का उल्लंघन लिए विधान है कि वह अपनी धन-सम्पत्ति की मर्यादा कर अतिरिक्त धन का सदुपयोग लोकहित
करेगा, वह बनारस में एक सहस्र कपिला गायों के लिए करे । इसके लिए चार दानों को विशेष
और ब्राह्मणों की हत्या का भागी होगा। महत्त्व दिया गया है। वे हैं- आहार दान, औषध दान में दी गई वस्तु या भूमि का दुरुपयोग दान, ज्ञान दान और अभयदान । श्रवणबेलगोला के करने पर उसके दुष्परिणामों और पाप बंधन का शिलालेखों से सूचित होता है कि यहाँ राजा, कई जगह संकेत किया गया है। लेख संख्या सामन्त और मन्त्री ही नहीं, मध्यम वर्ग और निम्न 486 (397) में उल्लेख है कि गंगराज ने विष्णावर्ग के लोग भी अपने सामर्थ्य के अनुसार धार्मिक वर्धन से गोविन्दवाड़ी ग्राम को पाकर उसे पार्श्वदेव और अन्य लोकहितकारी कार्यों में अपने धन का और कुकटेश्वर की पूजा हेतु दान कर दिया। जो सदुपयोग करते रहे हैं। उदाहरण के लिए लेख इसका विच्छेद करेगा उसे कुरू क्षेत्र व बनारस में
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