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शासन देव पूजा मिथ्यात्व
आज जिनेन्द्र की भक्ति छोड़कर ऐहिक चमत्कारों के लोभ में (तथाकथित) शासन देवी देवताओं की पूजा की ओर प्रवृत्ति बढ़ रही है । अन्य देवी देवताओं की पूजा तो जैन धर्म सम्मत है ही नहीं स्वयं जिनेन्द्र की पूजा में भी लौकिक चमत्कार की दृष्टि जैन दृष्टि में मिथ्यात्व है । माननीय सेठी जी जीवन के प्राठवे दशक में किस तत्परता से हमारे धार्मिक जीवन में आये विकारों का शोधन करने में प्रयत्नशील है यह अपने श्राप में प्रेरणास्वरूप है । -सम्पादक
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जैन धर्मानुसार, हमारी आत्माएं स्वयं ही अपने भाग्य की निर्माता हैं । हम जैसे कर्म करेंगे वैसे फल भोगना ही पड़ेगा । कोई भी बाहरी शक्ति न हमें कुछ दे सकती है, न हमारे दुःख दूर कर सकती है । तीर्थकरों ने वीतराग होकर अपने कषाय रूपी मैल को स्वयं धोकर संसार के दुःखों से मुक्ति पाई थी । अतः उनसे केवल कषाय मुक्ति के लिए प्रेरणा लेने के लिए ही हम उनकी उपासना करते हैं तांकि कषाय तीव्र से मंद व मंदतर हों हममें समता भाव जगे और उसमें वृद्धि हो । पूर्वकृत कर्मानुसार इष्ट वियोग व अनिष्ट संयोग के दुःख तो आते ही हैं, उन्हें कोई देवता दूर नहीं कर सकता । धार्मिक व्यक्ति उन्हें अपने पूर्वकृत कर्मों का फल मानता है, उनके लिए दूसरों को दोष नहीं देता । श्रतः उसमें समताभाव पूर्वक दुःख सहन की शक्ति पैदा हो जाती है, दुःख नहीं प्रतीत होता । अरहंत भगवान की उपासना से दुःख नाश होने का यही आशय है ।
★ श्री बिरधीलाल सेठी
कथित शासन देवों के समर्थन में कहा जाता है कि वे जिन शासन के रक्षक हैं और धर्म व धर्मात्मा पर आने वाले विघ्न व संकट को दूर करने में सदा तत्पर रहते हैं । परन्तु जैन सिद्धांतानुसार तो सबको अपने-अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है । अतः यह कल्पना ही मिथ्या है कि धर्म और धर्मात्मानों के रक्षक कोई शासन देव हैं । जो व्यक्ति यह समझते हैं कि अरहंतों या किसी शासन देव की पूजा भक्ति से उनके दुःख दूर हो जावेंगे या धन या पुत्र प्रादि की प्राप्ति हो जावेगी, वे भ्रम में | जन्म से ही अतुल्य बलशाली तीर्थकरों पर भी मुनि अवस्था में उपमर्ग प्राते रहे हैं, भगवान आदिनाथ को मुनि अवस्था में छः मास तक आहार में अंतराय आया, सुकुमाल मुनि को स्यालनी खाती रही व अन्य अनेक धर्मात्मानों पर संकट आये, चन्द्रगुप्त मौर्य के समय 12 वर्ष का अकाल पड़ा । तब जैन धर्म व जैन साधुत्रों पर बड़ा भारी संकट आया, बाद में धार्मिक असहिष्णुता
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