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प्राचीनतम जैन कलारत्न
-शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी
साहित्य, धर्म, इतिहास एवं कला जगत में मथुरा नक का रहस्योद्घाटन होता है । नगरी का गौरवमय अतीत रहा है। इसी नगरी से पुरातात्विक सामग्री से ओत प्रोत टीला था
अब सिरदल के संयुक्त रूप से जे. जे. 354 तथा जिसे कंकाली टीले के रूप में पहचानते हैं। इस
जे. 609 : सात प्राकृतियां नर्तकी एवं वादकों की विशिष्ट स्थली से ई.प. द्वितीय शताब्दी से लेकर हैं। इनमें एक झोपड़ी के खम्बे से बाहर है । बाद सम्वत् 1134 अर्थात 1077 ई. तक की कला. दो बैठी एक खड़ी नीचे और ऊपर चार खड़ी कृतियां प्राप्त हुई है। इनमें विशेष है जैन प्रति- पुरुषाकृतियां नृत्य देखने के तल्लीन बनी है। इन्हीं माए', पायागपट, वेदिका स्तम्भ, इन पर अकित के साथ नीचे अचेलक, कमन्डल और पीछी लिये यक्षियां तथा एकमात्र शंखलिपि में उत्कीणित साधु तदुपरान्त केवल वस्त्रखड व बांयी टांग शिलालेख उल्लेखनीय कलावशेष है ।
जिसकी शेष है ऐसा एक अर्धफलक का अंकन बचा
है। क्योंकि बाद में यहीं पर एक खांचा काटा इस कलाराशि में एक ऐसा स्तम्भ खंड भी था गया था जिससे ऐसा लगता है कि इस सिरदल को जिस पर खपरलों से बनी झोपड़ी के नीचे एक बाद में वेदिका स्तम्भ का रूप दिया गया क्योंकि नृत्यांगना नृत्य कर रही है, इसी के पास नीचे दूसरे खांचे का कुछ अंश अगले भाग पर भी देखा वादक वाद्य बजा रहे हैं। कुछ दर्शक झोपड़ी के जा सकता है । दोनों और इस मोहक नृत्य का प्रानन्द लेते हुए उकेरे गये हैं । कभी इस दृश्य को बुद्ध जन्म से यहां पर निरूपित दो तीर्थकरों की पल्थी जोड़ा गया था। कालान्तर में एक अन्य टुकड़ा ढीली है, भूमि पर बैठे हैं। हाथ भी गोद में रक्खे मेरे पूर्ववर्ती तथा अल्मोडा संग्रहालय के निदेशक हैं। चंवरधारी एक धोती व हार पहने हैं। दूसरे श्री वीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव महोदय को सौभाग्य का हार तो स्पष्ट है किन्तु निचला अंश विनीष्ट से मिला जिस पर दो ढीली पल्थी लगाये बैठी हो चुका है। बादवाली ध्यानस्थ प्रतिमा के वक्ष प्राकृतियां तथा इनके प्रथम वाले के बांयी ओर पर हल्का सा सकरपाला बना है जो आगे चलकर तथा दूसरी बैठी मूर्ति के बांयी ओर चवर लिये श्रीवत्स का रूप धारण कर लेता है. और तीर्थकरों पुरुष खड़े हैं। जब इस टुकड़े को पूर्व वरिंगत की पहचान करने का मुख्य लांछन बन जाता है । टुकड़े से जोड़ने का प्रयास किया गया तो संयोग यहां तीर्थकरों की चौकी : पायागपट्ट जे. 253 : से इसी का भाग निकला। यह खोज उसी प्रकार या सिंहासन पर नहीं बैठाकर भूमि पर बैठे बनाया हई मानो पार्कमीडीज ने गुरुत्वाकर्षण को खोज इनके बालों को मोटी लट के रूप में बांयी ओर लिया हो क्योंकि इससे एक महत्वपूर्ण जैन कथा- धुमाकर दर्शाया गया है। बांयी प्रोर की तीर्थकर
2/21 नोट- माता - s/9 PM
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