________________
शल्य के कारण 'ज्ञान' पर से श्रावरण हट नही पा रहा था। भरत को भगवान ऋषभदेव से इस तथ्य का ज्ञान हुआ। वे साधनारत बाहुबली के पास गये और निवेदन किया- बाहुबली ! भूमि यदि तुम्हारी नहीं है तो मेरी भी तो नहीं है । हम इस धरती पर हमेशा नही रहेंगे तब किसका राज्य ? कैसा राज्य ? स्वात्म से उसका कैसा सरोकार ? आधिपत्य का विचार छोड़ो, अपने सर्वोच्च लक्ष्य की बात सोचो। मान की शल्य गल गई, साधना सफल हुई, कैवल्य की प्राप्ति हो गई और बाहुबली आत्मबली हो गये ।
आज उनकी जीवन-गाथा जन जन को प्रेरणा दे रही है । उनकी जीवन गाथा सिखा रही है कि कर्तव्यों की सीमा में रहकर अपने अधिकारों की रक्षा करना हमारा धर्म है । स्वाधीन स्वभावी आत्मा को पराधीनता में सुख की प्राप्ति नहीं होती, वह स्वाधीन होकर ही सुख की प्राप्ति कर सकती है ।
ईस्वी सन् 981 में तलवनपुर के सेनापति चामुण्डराय ने कर्नाटक प्रदेश के श्रवणबेलगोल ग्राम में विंध्यगिरि पर अपनी म कालला देवी की प्रेरणा से प्रतिष्ठाचार्य सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य के सान्निध्य में उन्हीं अजितवीर्य बाहुबली की 58 फिट 8 इंच की विशाल प्रतिमा की प्रतिष्ठापना करवाई। यह प्रतिमा लौकिक व पारमार्थिक दोनों ही क्षेत्रों में जन जन के लिये प्रेरणा स्रोत है । प्रतिमा की प्रतिष्ठापना को एक सहस्र वर्ष पूर्ण हुये । चिन्तकों, मनीषियों व एलाचार्य मुनिश्री विद्यानन्द जी को एक सहस्र वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में इस पवित्र व महान् प्रतिमा के महा मस्तकाभिषेक का एक पवित्र विचार, एक पवित्र कल्पना, एक पवित्र भावना उत्पन्न हुई, जिसे हमने साकार रूप में देखा ।
हम सब इस प्रतिष्ठापना सहस्राब्दी एवं महा
Jain Education International
मस्तकाभिषेक महोत्सव के अवसर पर एकत्रित हुये थे । इतिहास की पुनरावृति हो रही थी, इतिहास स्वयं को दोहरा रहा था । सन् 981 में प्रतिमा की प्रतिष्ठापना के अवसर पर अनेकों त्यागी-व्रती. ऋषि-मुनि, विद्वद्गण, श्रावक उपस्थित थे और साथ में थे सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्राचार्य, जिनके सान्निध्य में ही प्रतिष्ठापना का कार्य सम्पन्न हुआ था और इस सहस्राब्दी एवं महामस्तकाभिषेक के अवसर पर भी हमारे समक्ष विशाल जन समूह के साथ अनेकों त्यागी, ऋषि-मुनि संघ, विद्वद्गण विद्यमान थे और साथ में थे सिद्धान्त चक्रवर्ती एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी जिनके पवित्र विचार को, पवित्र भावना को जैनमठ - श्रवरण बेलगोल के भट्टारक स्वस्ति श्री चारुकीति स्वामी जी व समाज के अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने साकार किया तथा जिनके सान्निध्य में यह महोत्सव सम्पन्न हो रहा था ।
ग्यारह फरवरी - आयुर्वेदिक चिकित्सालय आरोग्य - भारती' श्रवणबेलगोल शाखा का शुभारंभ हुप्रा । पूज्य आचार्य विमलसागर जी, आचार्य आर्यनन्दी जी, स्वस्ति श्री चारुकीति स्वामी जी एवं समस्त साधु-साध्वी संघ के सान्निध्य समाज के गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में पूज्य एलाचार्य मुनिश्री विद्यानन्द जी के शुभाशीर्वाद से इसका शुभारंभ हुआ । वैद्य सुशील कुमार जी साह, जयपुर की देखरेख में इस चिकित्सालय का कार्य चलेगा । इस चिकित्सालय के माध्यम से वैद्य जी द्वारा उपचार रुग्ण, त्यागी - व्रति व साधु संघ की वैयावृत्ति व शास्त्रोक्त विधि से निर्मित शुद्ध ओषधियां प्राप्त हो सकेंगी।
बीस फरवरी - इस दिन श्राचार्य देशभूषण का जन्म दिन था, उन्होंने जीवन के 90 बसन्त पूर्ण कर 91 वें में पदार्पण किया। इस उपलक्ष में चामुण्डराय में मण्डप एक प्रवचन सभा का आयोजन किया गया। उसी सभा में प्राचार्य श्री
2/13
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org