________________
ज्ञान आत्मा का गुण
2 सुश्री राजकुमारी जैन, शोध छात्रा
विश्व का प्रत्येक पदार्थ ध्र व होते हुए भी
प्रात्मा और ज्ञान द्रवणशील है, इसलिए उसे द्रव्य कहते है । द्रव्य की ध्रुवता उसका अपना निश्चित कालिक
___ आत्मा ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य, द्रव्यत्व,
अस्तित्व, वस्तुत्व आदि अनन्त गुणों का अखण्ड स्वरूप है । वह अपने निश्चित गुरगों का अखण्ड
पिण्ड है । एक आत्मा के गुणों में संख्या,संज्ञा,लक्षण पिण्ड है । कुछ दार्शनिक जैसे नैयायिक तथा लॉक
और प्रयोजन की अपेक्षा भेद होते हुए भी प्रदेशाद्रव्य का गुरणों का प्राश्रय तथा द्रव्य और गण
त्मक तादात्म्य है। इसके सभी गुण समान प्रदेशों को भिन्न-भिन्न मानते हैं। जैन दार्शनिक कहते हैं कि गुण से भिन्न द्रव्य की सत्ता किसी भी प्रमाण
में रह रहे हैं तथा कभी पृथक पृथक नहीं किये जा
सकते। उनमें से किसी भी गुण का प्रभाव से सिद्ध नही होती। द्रव्य अपने निश्चित गुणों
मानना द्रव्य का ही प्रभाव मानना है । की अखण्ड एकता के अतिरिक्त कुछ नहीं है ।। गुण वह है जो द्रव्य के सम्पूर्ण प्रदेशों तथा उसकी
__ ज्ञान प्रात्मा का असाधारण गुण है । कुन्दसभी अवस्थाओं में समान रूप से व्याप्त हो।
कुन्दाचार्य कहते हैं :कुन्दकुन्दाचार्य कहते हैं :
णाणं अप्प ति मदं वट्टदि गाणं विणा ण अप्पारणं
तम्हा गाणं अप्पा अप्पा गाणं व अण्णं वा ।। 27 अत्थो खलु दवाणो दव्वाणिगुणप्पगाणि । तेहि पुरणो पज्जाया पज्जयमूड़ा हि पर समया ।।
प्रवचन सार ज्ञान ही प्रात्मा है क्योंकि ज्ञान बिना आत्मा नहीं प्रवचनसार
होती तथा प्रात्मा ज्ञान गुण के कारण ज्ञान रूप भावार्थ-पदार्थ द्रव्य स्वरूप है। द्रव्य गुणात्मक
भी है तथा अन्य गुणों के कारण अन्य रूप भी है। कहे गये हैं तथा द्रव्य और गणों से पर्यायें होती हैं। ... विश्व का प्रत्येक द्रव्य अपने निश्चित गुणों के
चार्वाक ज्ञान की उत्पत्ति के लिए किसी कारण अपने स्वरूप को नहीं छोडते हए तथा अन्य चेतन प्रात्मा की सत्ता स्वीकार नहीं करते । वे सभी सजातीय तथा विजातीय पदार्थों से प्रसंकर
__कहते हैं कि जिस प्रकार किण्व प्रादि (मादक रहते हुए निरन्तर परिणमन कर रहा है । गुण ऐसे
___ द्रव्यों) से मादक शक्ति उत्पन्न होती है अथवा
पान, चूने, कत्थे आदि के संयोग से लाल रंग सामान्य तत्व हैं जो उस द्रव्य की प्रत्येक पर्याय में पाये जाते हैं तथा उनका कभी अभाव नहीं होता।
उत्पन्न होता है। उसी प्रकार पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु के शरीर रूप से विशिष्ट संयोग होने
पर उसमें चेतना की उत्पत्ति होती है । 1. स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा पृ० 173 2. न्याय दीपिका 3/678
3. सर्व दर्शन संग्रह पृ० 4-5
1/54
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org