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भावस्स पत्थि नासो पत्थि प्रभावस्स चेव उप्पादो की विचारधारा प्रादि कई बातों को विशुद्ध रूप गुणपज्जयेसु भावा उत्पादवए पकुव्वंति ॥ 15 ।। से जान जाता है। जैन दार्शनिक कहते हैं कि
पंचास्ति काय संग्रह इस वैविध्य का कारण उनकी अपनी प्रात्मगत अर्थ-भाव का नाश नहीं होता तथा अभाव की ज्ञान योग्यता है। जैसे-जैसे उनके ज्ञानावरणीय कर्मों उत्पत्ति नही होती । गुण पर्याय रूप भाव वा द्रव्य की हानि बढ़ती चली जाएगी वैसे वैसे ज्ञान की निरन्तर उत्पाद व्यय करते रहते हैं।
सूक्ष्म अर्थों में प्रवृत्ति भी बढ़ती चली जायेगी' . ज्ञान प्रात्मा का गुण है। प्रात्मा निरन्तर तथा इनका पूर्ण क्षय होने पर सभी द्रव्यों की पूर्व ज्ञान पर्याय की छोड़ती हुई उत्तर ज्ञान पर्याय त्रैकालिक पर्यायें युगपत् प्रत्यक्ष होने लगेंगी। धारण कर रही है पर वह कभी ज्ञान रहित नहीं मति आदि ज्ञानों का कहीं प्रत्यक्षीभूत ढ़ेर हो सकती। गहन निद्रा तथा सुप्तावस्था में भी नहीं लगा है जिनको ढंक देने से मत्यावरण
आदि कहे जाते हों, किन्तु मत्यावरण प्रादि के संक्लेश अथवा शांत परिणाम उसके ज्ञान के विषय उदय से प्रात्मा में मति ज्ञान रूप पर्याय उत्पन्न रहते हैं।
नहीं होती इसलिये इन्हें प्रावरण संज्ञा दी गयी ___ज्ञान प्रात्मा का स्वभाव है। जिस प्रकार है।........ावरण के उदय से प्रात्मा में ज्ञान अग्नि दहन स्वभाव युक्त होनेके कारण प्रतिबन्धकों सामर्थ्य लुप्त हो जाती है। वह स्मृति शून्य तथा के अभाव में सभी वाह्य पदार्थों को जलाती है धर्म श्रवण के प्रति निरुत्सुक हो जाता है। 8 उसी प्रकार प्रतिबन्धकों के अभाव में प्रात्मा सभी
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि जिस प्रकार शेष पदार्थों को जानता है। ज्ञान की उत्पत्ति में
__ अाकाश के स्वच्छ होने पर सूर्य पृथ्वी के सभी विप्रकर्ष और प्रत्यासत्ति बाधक नहीं है, क्योंकि पदार्थों को, जो उसके समक्ष पाते हैं, प्रकाशित इनका परोक्ष ज्ञान होता है। अतः ये प्रत्यक्ष ज्ञान करता है उसी प्रकार प्रात्मा भी शुद्ध अवस्था के विषय भी हो सकते हैं और होते हैं; तथा में होने पर सभी ज्ञेय पदार्थों को जानती है । जिस इन्द्रियां और पदार्थ ज्ञान के कारण नहीं हैं क्योंकि प्रकार सर्य के प्रकाश के मार्ग में सघनतम बादलों इनका ज्ञान के साथ अन्वय व्यतिरेक सम्बन्ध नहीं का अवरोध होने पर भी रात जैसा अंधेरा नहीं है। सुप्तावस्था और स्वप्न तथा भ्रम इसके ।
हो सकता कुछ न कुछ मात्रा में तो प्रकाश अवश्य उदाहरण हैं।
ही रहेगा उसी प्रकार आत्मा की अशुद्धतम - प्रश्न उठता है कि जब ज्ञान प्रात्मा का ।
अवस्था में भी पूर्ण ज्ञानाभाव नहीं हो सकता। स्वभाव है तो उसके समक्ष बहुत से पदार्थ अज्ञात ज्ञान का अन्यतम अंश सदैव अनावृत रहता है। रहते हैं तथा विभिन्न व्यक्तियों के ज्ञान में जमीन
ज्ञान के विषय बदलते रहने पर भी प्रात्मा कभी प्रासमान का अन्तर क्यों पाया जाता है ? एक
ज्ञान रहित नहीं होती। इसलिये ज्ञान प्रात्मा का व्यक्ति एक श्लोक को सुनकर उसके शब्दार्थ तक ।
गुण है। ही पहुंच पाता है जबकि दूसरा उसके भावार्थ, उससे निगमित होने वाले सिद्धान्तों तथा श्लोककार 7. क्षायोपशमिक ज्ञान प्रकर्ष परमं ब्रजेत ।
सूक्ष्म प्रकर्षमाणत्वादर्थे तादिदमीरितम ।।5।। 5. विप्रकर्प - सूक्ष्म, 6. प्रत्यासत्ति-दसा प्रतीत अनागत पदार्थों की 8. तत्वार्थ श्लोक वार्तिक 4/1/28/68 काल प्रत्यासति तथा सदूरवर्ती पदार्थों की देश
बिल्टीवाला भवन प्रत्या-सत्रि है।
अजबघर का रास्ता, जयपुर
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